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कविता

अधलेटा सा पड़ा पीपल

मनोज तिवारी


पोखर के बांध पर
अधलेटा सा पड़ा पीपल
आज बिल्कुल दुखी था
उसकी डाल पर
चिड़ियाँ गपशप करती थीं
अंडे सेती थी घोंसले में
कुछ चिड़ियाँ तो सुस्ताने
व अपनी थकान मिटाने ही
बैठती थी उसकी डालियों पर
खेतों से छूटे बैल
आजमाइश करते थे अपनी
ताकत या खुजली मिटाने
के लिए पीपल के तने से
रगड़ते थे अपनी खाल
एक समय था जब
वासंती बल्लरियाँ सीने से लग
इठलाती थी अपने भाग्य पर
उसकी सफेद हँसी से
पास के पोखर के ठंडे जल
में भी तरंगें उठने लगती थी
घंटोंऽऽऽ बैठ
किसान दुख-सुख की
बातें बतियाते थे
उभर आई जड़ों पर बैठ कर
एक पूरी दुनिया होती थी
आसपास उसके
अब कोई नहीं जाता
पास उसके
वह ठूँठ सा अधलेटा
देखता रहता था
सूने आकाश की ओर।
पास आता देख मुझे
होठों पर हल्की मुस्कान लिए
स्वागत किया जब उसने मेरा
तो कहते-कहते कुछ
कह न सका उस पीपल से
सिर्फ बैठ ही सका
आलथी-पालथी लगाकर
उसके तने से लगकर।


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