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कविता संग्रह

अलंकार-दर्पण

धरीक्षण मिश्र

अनुक्रम 22 दीपक अलंकार पीछे     आगे

लक्षण (दोहा) :-
क्रिया एक कारण कई कारक बहु कृति एक।
दीपक के लक्षण इहे जेकर भेद अनेक॥
तुल्‍ययोगिता के हवे दीपक एगो भेद।
कुछ कविवर ईहो कहें जे कम करें कुरेद॥
 
उदाहरण :-
किछु अर्थ के संग्रह ना कबहूँ करें और सजी रस के परित्‍यागें
अनलंकृत हो के रहें , सगरे विषयो से सुदूर निरन्‍तर भागें
यदि कानन में चलि जाय त आगे बढ़ें न कबे उहवें अनुरागें
सब बन्‍धन से मिले मुक्ति इहे विधि से यती आ कविता नयी माँगें।
छप्‍पय :-
पंडित परम प्रवीन और अतिशय अभिमानी।
आ थौसल पशु बृद्ध खात ना उठि के सानी॥
दूनूँ आपन ठाँव छोडि़ कतहीं ना जाला।
यदि न मिले केहु आन भार के रोके वाला॥
दूनूँ के सेवा कइल मानल पुण्‍य महान बा।
माघ मेघ में दुहुन के जीवन के अवसान बा॥
 
अछन्‍द :-
खेती के कमाई से , इसकूल के पढ़ाई से
आ होमोपैथ के दवाई से , धनी विद्वान आ
स्‍वस्‍थ होखे में अधिक देर लागेला।
ससुराल का ठिठोली , धूर्त का बोली आ
होमोपैथ का गोली में मिठास जरुर होला।
नानी यजमानी आ बेईमानी के धन टिकाऊ कम होला॥
* * * *
लोक के ना लाज बा कानून के ना डर बा
आमदनी बा अथाह किन्‍तु ओपर ना कर बा।
चरि चूरि अइला पर आराम करे खातिर
जेकरा सरकारे बनवा दिहले पक्‍का के घर बा।
जिन्‍दगी निश्चिन्‍त बाटे माछी बा ना मोस बा
आन ही का सम्‍पत्ति के सब दिन भरोस बा।
चोर और नेता सब ओटे के कमाई खाला
जीवन में आवे के ना कहियो संतोष बा॥
 
आवृत्ति दीपक
उदाहरण (सरसी छन्‍द) :-
केहु बा खात भखत केहु बाटे केहु बा लेत अहार।
केहु मुहावँ बा करत और केहु करत हवे जेवनार॥
केहु बा भोग लगावत आ केहु पावत हवे प्रसाद।
केहु बा फले भकोसत आ केहु कचरत ले ले स्‍वाद॥
 
अर्थावृत्ति दीपक
 
उदाहरण :- कूदत फानत छपत आ छरकत लेत कुलाँच।
बानर बाग बिनासहीं भहरावहिं फल काँच॥
सवैया :-
जेकरा बदे भोजन बस्‍त्र मकान हजामत भी जिनके बनवावल।
सरकार के जिम्‍में रहेला सजी जिनका सदा स्‍वास्‍थ्‍य के जाँच करावल।
परि जायँ बिमारत कीमती आ बढि़या पथ और दवाई जुटावल।
सरकार का दाम से होत सजी कबे जात न एमें बिलम्‍ब लगावत॥
जिनके सतकार करे बदे आ के पुलीस के लोग खड़ा रहेला।
बन्‍हले चपरास तथा पगड़ा पहरा बहुते तगड़ा रहेला।
बइठे के न साँस मिले मन में करतव्‍य के भाव कड़ा रहेला।
उतरें अपना यदि क्षेत्र में ऊ तब तऽ मन व्‍यग्र बड़ा रहेला॥
जेकरा ढंग गाल बजावे के आवे अराजकता भी पसन्‍द रहेला।
घर फोरे के जाने विशेष कला भहरावे में भीति आनन्‍द रहेला।
दुसरा के कमाई से मौज उड़ावे के चाव सुभाव दुचन्‍द रहेला।
जनता रहे चैन से दस्‍यु आ नेता जो जेल का अन्‍दर बन्‍द रहेला॥
 
पदार्थावृत्ति दीपक
उदाहरण (दोहा) :-
भइल चाह सिगरेट के भइल चाय के चाह।
भइल गरीबी दूर बा भइल लोग धनिकाह॥
रोग बढ़त डाक्‍टर बढ़त औषधि बढ़त नवीन।
बढ़त दवा के दाम बा कहीं एक के तीन॥
चलत सवारी पर सभे चलत रेल बस कार।
कहीं चलत हड़ताल आ चलत चुनाव प्रचर॥
लूटत डाकू धन सजी लूटत जीवन प्रान।
लूटत शान पुलीस के लूटत डाकू का न?॥
छप्‍पय :-
बढ़त जात इसकूल बढ़त संख्‍या छात्रन के।
पाठ्य पुस्‍तको बढ़त बढ़त प्रथा ट्यूशन के।
वेतन बढ़ते जात दिनों दिन सब गुरुजन के।
युनियन बढ़ते जात बढत ताकत युनियन के।
उच्‍छृंखलता छात्र के दिन दूना बढ़ते रहत।
चिन्‍ता बुधजन के बढ़त का भविष्‍य होई कहत॥
 
कवित्त्‍ मनहरण छन्‍द :-
मारि दिये ताडुका के तारि दिये मुनि नारि
जारि दिये लंका बीर धावन पठाइ के।
शिक्षा दिये सिन्‍धु के कौवा के प्राण भिक्षा दिये
बल के परीक्षा दिये धनुष उठाइ के।
मछुवा के मान दिये लक्ष्‍मण के त्राण दिये
तप्पिन के सुख दिये दण्‍डक में जाइ के।
भक्‍तन के मुक्ति दिये मुक्ति दिये पापिन के
सूक्ति दिये राम परिजन के बुलाइ के॥
 
 
पदावृत्ति दीपक
उदाहरण (सरसी छंद) :-
हर से माँगीं सुखमय जीवन हर से जोतीं खेत।
मन हरसे बाहर से यश सुनि अइसन रहीं सचेत॥
नदी लहर से और सहर से रहीं सर्वदा दूर।
पानी मिले नहर से सूखत खेतन का भरपूर ॥
सिर पर पैर सुनात न खग का सिर पर पैर सुहात।
परसे ना अहार केहु आके ना जाने का खात॥
भू पर से तरु का ऊपर से पर से उडि़ के जात।
पर से नभ के जाइ अकेले पर से करे न बात॥
बाजत बाजा जोर सोर से बाजत जब दुइ सूर।
करत मद्य के काम सरत जब महुवा चाउर गूर॥
 
उल्‍लाह :- अल्‍लाह कहर से और जहर से रहे सुरक्षित गात।
पदावृत्ति दीपक के इहवाँ बाटे ज्‍योति ओरात॥
 
दोहा :- पाप दहे सुर सरित में चिता दहे मृत गात।
मनई सुरपुर जात तब भवबन्‍धन सब जात॥
 
माला दीपक
उदाहरण (चौपई) :- श्रम से कृषि कृषि से सब अन्‍न। और अन्‍न से घर सम्‍पन्‍न॥
घर सम्‍पन्‍न रहे से तेज। और तेज से बढ़त दहेज॥
देह शक्ति से देशोत्‍थान। जैसे होत सकल कल्‍यान॥
कवित्त :- विद्या में अरुचि से बनत छात्र यूनियन
जे से अनुशासन बनत कमजोर बा।
एही कमजोरी से बनत गुरू लोग मौन
जेसे छात्र उत्‍पात बढ़त घनघोर बा।
एही उत्‍पात से बनत ना शिक्षा कार्य ठीक
पूँजी छात्र ज्ञान के बनत अति थोर बा।
थोर ज्ञान से ना बनत उत्तर परीक्षा में
जे से छात्र बनत नकल हेतु चोर बा॥
ताटंक छंद :-
उच्‍च वर्ग कांग्रेस के चाहे , कांग्रेस हरिजन के चाहे।
हरिजन चाहें बास्‍पा बास्‍पा पति पर अर्जन के चाहें॥
 
सवैया :- बरसात का भूमि में आवत केंचुवा जन्‍मत बाढ़त खात मोटात बा।
धइ के केंचुवा के खड़े खड़े घोंटत बेंग बा बेंग के लीलत साँप बा।
साँप से नेउर बाजि के ओके मुवाइ के आ टुकियाई के खात बा।
मनई भखें नेउर के मनई अपने मरि माटिये में मिलि जात बा॥
 
कारक दीपक
उदाहरण (दोहा) :-
सुर्ती शराब के बानि आ रक्‍त चाप के रोग।
छूटत ना ता जिन्‍दगी कहत अनुभवी लोग॥
रहर मटर लउकी लता कमल फूल आ पात।
डाढि़ पात अंगूर के पाला से जरि जात॥
ओझा नेता ज्‍योतिषी अगुवा सुकवि दलाल।
सत्‍य बचन के रहत बा छव के पास अकाल॥
रबड़ छंद :-
कटाव करे वाली नदी का अड़ार के।
हथिया नक्षत्र में घर का दीवार के।
यदि पहिले सई ना लागे त हैजा का बीमार के।
विधवा मेहरारू का आम मुखतार के।
आन्‍ही में परि जा त पेड़ के या डार के।
काई वाली धरती पर जे ना चले सम्‍हार के।
आ कई दल के बनल एगो खिंचड़ी सरकार के।
धराशायी होत देर ना लागेला॥
 
कारक दीपक (कई क्रिया के एक कर्त्ता)
उदाहरण (कुण्‍डलिया) :-
आवत काँड़े क्‍लास निज , घर के छात्र सहर्ष।
वोट लेत युनियन रचत , करत इहाँ संघर्ष।
आपुस में संघर्ष करें आ छुरा भोंके।
अथवा गोल बनाइ रेल के रस्‍ता रोकें।
लूटत बस के माल और बस कहीं जरावत।
करत इहें सब कार छात्र जब घर से आवत॥
 
कारक दीपक- कई कर्त्ता के एक क्रिया
 
उदाहरण :- उल्‍लू चोर ओर चमगादुर करइत बड़का मच्‍छर।
होत सदा गतिमान रात में पाँचों अत: निशाचर॥
जुगनू जोन्‍हीं बिजुली बत्ती दीपक आ केंचुवा के।
ए पाँचों के चमक बढ़ेला रात अन्‍हरिया पा के॥
 
 
देहरी दीपक
 
लक्षण :- बीच में एक पद रहे आ ऊ दूनूँ ओर
लागूहो त ऊ देहरी दीपक कहाबेला।
उदाहरण : लावनी (16 , 14 मात्रा) :-
रामचंद्र के जंगल दिहली अपना सुत के राज बड़ा।
मनमानी रानी कइली देवता लोगन के काज बड़ा॥
डाकुन के बैरी रहले जन साधारण के हितकारी।
वीर मृत्‍यु पाण्‍डेय अनिल पवले दुनिया में यश भारी॥
दोहा :-
खेतन में यदि हर बहे कृषक देह में स्‍वेद।
जीवन में सुख हो सदा दूर दीनता खेद॥
 
सवैया :-
घर फूलन देवी जी छोड़ली आपन नारि सुभाव के भीरुता भारी।
बन बीहड़ में निज गोल बना बसली तब औखिन में सरकारी।
अब छाया से फिल्‍म करेली सुशोभित काया से जेल के चार दिवारी।
अति ध्‍यान से जेल प्रबन्‍धक बात सुनें अखबार के लेखक गारी॥
 
लोक के लाज न बा न समाज के भी जेकरा तनिको डर बाटे।
आमदनी बा अथाह तबो सरकार के ओपर ना कर बाटे।
रोक न बा कतहीं जेकरा चरि आबे के छूट सभत्तर बाटे।
कौरी करे के चरला पर से सरकारे बना दिहले घर बाटे॥
 
अपना घरे कार न बा करे के जेकरा कबे लागत माछी न मोस बा।
सदा खाये के ओट के बाटे कमाई सदा पर सम्‍पतिये के भरोस बा।
श्रम के न विशेष जरूरत बा जेकरा निज आय के आगम ठोस बा।
मन में केहु लीडर या केहु चोर का आवे के ना कहियो परितोष बा॥
 
सार : - गान्‍धी गोरा राज हटौले भारत के बदनामी।
नेहरू जी प्रधान मंत्री भइले जन प्रिय नेता नामी॥
शास्‍त्री विजयी भइले मुदई खातिर जमुना भाई।
श्री राव सदा चुप्‍पी सधले सूत द्वारा निजी भलाई॥
 
सवैया :- रहि जाय न लाज निहाज किछू अब नेतन के इहे त्‍याग कहाला।
हरिश्‍चंद्र समान यशस्‍वी बने बदे साथ कबे मन में जो समाला।
तब ऊ जस काशी में जे विकले तस कौन्सिल में इहो लोग विकाला।
कबे जे.पी. नरायन होखे बदे बिनु कारन हुल्‍ल मचावल जाला॥
 
श्‍लेषमय देहरी दीपक
उदाहरण (दोहा) :- पातक गंगा में दहे चिता बीच मृत गात।
मनई सुर पुर जात सब भवबन्‍धन संघात॥
 
क्रिया दीपक
उदाहरण (ताटंक) :- कुर्सी के प्रत्‍याशी पहिले पर्चा दाखिल करेला।
तब चुनाव वैतरनी हेले का चिन्‍ता में परेला।
प्रतिद्वन्‍द्वी के वोट काटि के अपना में सब जोरेला।
जातिवाद के जहर रातिदिन जनता खातिर घोरेला।
सरल टमाटर आपुरान चप्‍पल के बरखा सहेला।
भूख पियास भुला जाला पी चाय घूमते रहेला॥
कुछ दिन खातिर अपना के राजा बलि आ कर्णब नावेला।
सुखमय भविष्‍य के आस बँधा के बोट सजी हथियावेला॥
* * * *
मुसरदेव आ लगन के मिठकी गारी।
बर कनियाँ के धूमधाम से सजल सवारी।
बेटहा समधी के चेट पेट बरियाती जन के।
लहर लोभ के बार बार बेटहा का मन के।
आँगन में कुछ दिन शुभ संझा और पराती।
बेटिहा के रक्षित सुता और सम्‍पति दुई थाती।
मंगलमय पीयर अक्षत बहुतन का हाथे।
ऊपर कथित समस्‍त उठत बा क्रम से साथ॥
 
दोहा :- लघुता निज दिनमान तरु पत्ता पियर पुरान।
कुहरा गगन बसन्‍त में तजें कुण्‍डली श्‍वान॥
 
कर्त्ता दीपक
उदाहरण (सवैया) :-
पिय विक्रम का बध के बदला लिहली बधि बीस जवानन के।
बनि के बहुरूपिया बागी बड़ा भइली शरणागत कानन के।
पकड़े केहु आइल ओके हवा खियवा दिहली ऊ मसानन के।
अबला उहे फूलन हो सबला झुठला दिहली चतुरानन के॥
 


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