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कविता संग्रह

अलंकार-दर्पण

धरीक्षण मिश्र

अनुक्रम 45 विचित्र अलंकार पीछे     आगे

विचित्र अलंकार
लक्षण (ताटंक) :-
इच्छित फल खातिर उपाय यदि उलटा केहु अपनावेला॥
विचित्र नाम के अलंकार तब उहवाँ कवि सब पावेला॥
 
उदाहरण (वीर) :-
घर के डेहरी भरि जाये के करत कृषक बा इहे उपाय।
डेहरी के अनाज खेतन का माटी में बा देत मिलाय॥
जवना धरती के किसान बा हर से चीरत बारम्‍बार।
जहवाँ हर न पहुँचि पावत बा कोड़त ले के उहाँ कुदार॥
भू के रक्षक जे मिलि जाता दूबि और कुछ दोसर घास।
चला चला ओके पीटत बा , ले हाथे कुदार के पास ॥
इंच इंच करि देता निज धती के घायल और उघार।
ओही धरती से बिनवत बा ''माता भरऽ बखार हमार''
पिसियस बनि के सुख भोगे के जेकरा मन में उठे बिचार।
ऊ आरंभ करो दुख देबे वाला कठिन कार दुइ चार॥
आजादी आ सुखमय जीवन दुओ नदी में दे दहवाइ।
तेली का बैल सरिस एके अथान पर चित्त रहे घुरियाइ॥
बरिस अठारह तक अनुशासित हो के पढ़त रहत दिनरात।
ढेर पुस्‍तकन का चक्‍की से देह दिमाग दुओ पिस जात॥
जे जनेवधारी जतिया बा ऊ हो जात उहाँ लाचार।
जब आरक्षण का पहाड़ के करि ना पावत बाटे पार॥
पिसियस वाली कठिन परीक्षा पास करत करत बाटे जे लोग।
जीवन के सुख भोगे खातिर ऊहे पावत बा शुभ योग॥
 
लावनी छन्‍द :-
गाछ बने के चाह आम के गुठली जब अपनावेले।
तब अपना के नाश करे के पहिले कार लगावेले॥
कोइली समेत गुठली पूरा सरि के माटी में गलि जाला।
तब बनि जाए के गाछ अमोला अंकुर एक निकलि जाला॥
 


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