तोताराम सनाढ्य का जन्म 1876 में हिरनगी (फीरोजाबाद) में हुआ था। पिता की असामयिक मृत्यु के कारण उनका बचपन बहुत गरीबी में बीता। वे 1904 में गिरमिटिया मजदूर के रूप में फिजी गए थे। वहाँ उन्होंने भारतीय मजदूरो की जो दशा देखी, उससे बहुत विचलित हुए और उनके कल्याण के लिए काम करने लगे। 'फिजीद्वीप में मेरे 21 वर्ष' पुस्तक इसी प्रयोजन से लिखी गई थी।
तोताराम की मृत्यु पर महात्मा गांधी ने लिखा, 'वयोवृद्ध तोताराम जी किसी से भी सेवा लिए बगैर ही गए। वे साबरमती आश्रम के भूषण थे। विद्वान तो नहीं, पर ज्ञानी थे। भजनों के भंडार थे, फिर भी गायनाचार्य थे। अपने एकतारे और भजनों से आश्रमवासियों को मुग्ध कर देते थे। ... "परोपकाराय सतां विभूतयः" तोताराम जी में यह अक्षरशः सत्य रहा।'
फिजी द्वीप में गिरमिटिया प्रथा 1 जनवरी 1920 को समाप्त हो गई। इसमें अन्य लोगों के अलावा तोताराम सनाढ्य तथा उनकी इस पुस्तक की महत्वपूर्ण भूमिका रही।
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