आचार्य रामचन्द्र
शुक्ल ग्रंथावली -5
हिंदी साहित्य का इतिहास
विषय सूची
प्रथम
संस्करण का वक्तव्य
संशोधित और प्रवर्धित संस्करण के संबंध में दो बातें
कालविभाग
आदिकाल
प्रकरण 1 - सामान्य परिचय
प्रकरण 2 - अपभ्रंश काव्य
वीरगाथा काल
(संवत् 1050-1375)
प्रकरण 3 - देशभाषा काव्य
प्रकरण 4 - फुटकल रचनाएँ
पूर्व मध्यकाल : भक्तिकाल
(संवत् 1375 - 1700)
प्रकरण 1 -
सामान्य परिचय
प्रकरण 2 - निर्गुण धारा : ज्ञानाश्रयी शाखा
प्रकरण 3 -
निर्गुण धारा : प्रेममार्गी (सूफी) शाखा
प्रकरण 4 -
सगुण धारा : रामभक्ति शाखा
प्रकरण-5 -
सगुण धारा :
कृष्णभक्ति
शाखा
प्रकरण 6 -भक्तिकाल
की फुटकल रचनाएँ
उत्तर मध्यकाल : रीतिकाल
(संवत् 1700 - 1900)
प्रकरण 1 - सामान्य परिचय
प्रकरण 2 -
रीति
ग्रंथकार कवि
प्रकरण 3 -
रीतिकाल के अन्य कवि
आधुनिक
काल : गद्य खंड (संवत् 1900 - 1925)
प्रकरण 1 - सामान्य परिचय : गद्य का विकास
प्रकरण 2 - गद्य साहित्य का आविर्भाव
आधुनिक
गद्य साहित्य परंपरा का प्रवर्तन प्रथम उत्थान ( संवत 1925 - 1950)
प्रकरण 1 - सामान्य परिचय
प्रकरण 2 -गद्य साहित्य परंपरा का प्रवर्तन प्रथम उत्थान
-
मौलिक ( अनुवाद)
- समझदार की मौत है
- मनोयोग
- कल्पना
- आत्मनिर्भरता
- परिपूर्ण पावस
- प्रचारकार्य
गद्य साहित्य का प्रसार: द्वितीय
उत्थान ( संवत् 1950 - 1975
)
प्रकरण 3 -सामान्य परिचय
प्रकरण 4 -गद्य साहित्य
का प्रसार
- नाटक:
अनूदित
- मौलिक नाटक
- उपन्यास: अनूदित
- मौलिक उपन्यास
- छोटी कहानियाँ
- निबन्ध
- साधारण गद्य का नमूना
- काव्यमय गद्य का नमूना
- आचरण की सभ्यता
- मजदूरी और प्रेम
- समालोचना
गद्य
साहित्य की वर्तमान गति :
तृतीय उत्थान ( संवत् 1975
)
प्रकरण 5 - सामान्य परिचय
- उपन्यास,
कहानी
- छोटी कहानियाँ
- नाटक
- निबन्ध
- समालोचना और काव्यमीमांसा
काव्यखंड
(संवत् 1900 -1925)
प्रकरण 1 -
पुरानी धारा
-पुरानी धारा के अन्य कवि
काव्यखंड (संवत् 1925
-1950)
प्रकरण 2 - नई धारा, प्रथम उत्थान
काव्यखंड (संवत् 1950
-1975)
प्रकरण 3 -सामान्य परिचय
- नई धारा, द्वितीय उत्थान
- द्विवेदीमंडल के बाहर की काव्यभूमि
काव्यखंड (संवत् 1975)
प्रकरण 4 - नई धारा :
तृतीय उत्थान : वर्तमान काव्यधाराएँ
-ब्रजभाषा काव्यपरंपरा
-
द्विवेदीकाल में
प्रवर्तित खडी बोली की काव्यधारा
- छायावाद
इस भाग में
इस भाग में आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का 'हिन्दी साहित्य का इतिहास' दिया जा
रहा है। सर्वविदित तथ्य है कि शुक्ल जी ने इतिहास लेखन का कार्य कई चरणों
में पूरा किया था। सबसे पहले उन्होंने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में
छात्रों को पढ़ाने हेतु साहित्य के इतिहास पर संक्षिप्त नोट तैयार किया था।
इस संक्षिप्त नोट के बारे में शुक्लजी ने खुद लिखा है, 'जिनमें (नोट में)
परिस्थिति के अनुसार शिक्षित जनसमूह की बदलती हुई प्रवृत्तियों को लक्ष्य
करके हिन्दी साहित्य के इतिहास के कालविभाग और रचना की भिन्न-भिन्न शाखाओं
के निरुपण का एक कच्चा ढाँचा खड़ा किया गया था।'इसी समय के आसपास हिन्दी
शब्दसागर का कार्य पूर्ण हुआ और यह निश्चय किया गया कि भूमिका के रूप में
'हिन्दी भाषा का विकास'और 'हिन्दी साहित्य का विकास' दिया जाएगा। आचार्य
शुक्ल ने एक नियत समय के भीतर हिन्दी साहित्य का विकास लिखा। कहना न होगा
कि इस कार्य में उन्होंने संक्षिप्त नोट से भरपूर मदद ली। इस तरह हिन्दी
साहित्य के इतिहास का एक कच्चा ढाँचा तैयार तो हो गया पर शुक्ल जी इससे
पूरी तरह सन्तुष्ट न थे।
आचार्य शुक्ल द्वारा लिखी गई शब्दसागर की भूमिका से पूर्व
साहित्येहितासनुमा कुछ पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी थीं। गार्सा द तासी,
शिवसिंह सेंगर, ग्रियर्सन आदि इस क्षेत्र में हाथ-पाँव चला चुके थे। नागरी
प्रचारिणी सभा ने 1900 से 1913 ई. तक पुस्तकों की खोज का कार्य व्यापक
पैमाने पर किया था। इस कार्य से अनेक ज्ञात-अज्ञात रचनाओं और रचनाकारों का
पता चला था। इस सामग्री का उपयोग कर मिश्रबन्धुओं ने 'मिश्रबंधुविनोद'
तैयार किया था। रीतिकालीन कवियों के परिचयात्मक विवरण देने में शुक्ल जी ने
मिश्र बन्धुविनोद का भरपूर उपयोग किया था। एक तरह से देखा जाये तो आचार्य
शुक्ल के साहित्येतिहास लेखन से पूर्व दो प्रकार के साहित्यिक स्रोत मौजूद
थे। एक तो खुद शुक्लजी द्वारा तैयार की गई नोट और भूमिका तथा दूसरे, अन्य
विद्वानों द्वारा लिखी गई पुस्तकें। इन सबकी मदद से आचार्य शुक्ल ने
'हिन्दी साहित्य का इतिहास लिखा' जो 'शब्द सागर' की भूमिका के छह महीने बाद
1929 ई. में प्रकाशित हुआ।
'हिन्दी साहित्य का इतिहास' का संशोधित और प्रवर्धित संस्करण सन् 1940 में
निकला। यह संस्करण प्रथम संस्करण से भिन्न था। इस संस्करण में अन्य चीजों
के अलावा 1940 ई. तक के साहित्य का आलोचनात्मक विवरण भी दे दिया गया था।
कहने का आशय यह कि अब यह साहित्येतिहास की पुस्तक एक मुकम्मल पुस्तक का रूप
ले चुकी थी।
यह भाग आचार्य शुक्ल के 'हिन्दी साहित्य का इतिहास' के संशोधित और प्रवर्धित
रूप की पुन:प्रस्तुति है। सभी चीजें ज़स की तस हैं, केवल कुछ वाक्यों की चूल
कस दी गई हैं। जहाँ कहीं शब्दों की अशुद्धियाँ मिलीं उन्हें भूमिका और
प्रथम संस्करण से मिलाकर ठीक कर लिया गया है। यह कोशिश की गई है कि पुस्तक
में गलत पाठ न जाने पाए।
ओमप्रकाश सिंह
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