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राष्ट्रीय ब्लॉगर गोष्ठी एवं कार्यशाला - 9-10 अक्तूबर, 2010

र्धा । महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा में 9 अक्टूबर को 'हिंदी ब्लॉगिंग की आचार-संहिता' विषयक दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला एवं संगोष्ठी का उद्‍घाटन विश्वविद्यालय के कुलपति श्री विभूति नारायण राय ने किया। कार्यक्रम की औपचारिक शुरूआत पर इसके औचित्य व पृष्ठभूमि के संबंध में विश्वविद्यालय के आंतरिक संपरीक्षा अधिकारी व कार्यक्रम के संयोजक श्री सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी ने प्रकाश डाला

अपने स्वागत भाषण में विश्वविद्यालय के प्रति कुलपति डॉ. ए. अरविंदाक्षन ने कहा कि "इस कार्यक्रम में यूजीसी (विश्वविद्यालय अनुदान आयोग) और मानव संसाधन विकास मंत्रालय के प्रतिनिधियों/अधिकारियों को भी आमंत्रित करना चाहिए, जिससे वे जान सकें कि यह विश्वविद्यालय केवल साहित्यधर्मिता और उत्सव का ही केंद्र नहीं है, बल्कि यह हिंदी को दुनिया की नवीनतम तकनीक से भी जोड़ने हेतु प्रयासरत है। अतिथियों ने उनके द्वारा ‘हृदय की भाषा में’ किये गये स्वागत पर जोरदार ताली बजाकर प्रसन्नता व्यक्त की"

कुलपति श्री विभूति नारायण राय ने अपने उद्‍घाटन वक्तव्य में कहा कि "इंटरनेट ने राज्यों की बंदिशों को तोड़ दिया है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में यह जो विस्फोट हुआ है, वो इंटरनेट से ही संभव हो सका है। लेकिन हम यहाँ 2 दिनों के लिए इसलिए भी उपस्थित हुए हैं कि हम इस बात पर बहस कर सकें कि इस माध्यम ने हमें एक ख़ास तरह की स्वच्छंदता तो नहीं दे दी है! अपनी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में कहीं हम यह तो नहीं भूल रहे हैं कि हम सारी सीमाएँ तोड़ रहे हैं और दूसरों की भावनाओं को ठेस पहुँचा रहे हैं। कहीं हम तथ्यों को तोड़-मरोड़कर तो नहीं पेश कर रहे हैं। हमें ऐसा लगता है कि हर एक ब्लॉगर को अपनी लक्ष्मण-रेखा ख़ुद बनानी होगी ।"

संगोष्ठी में विषय-प्रवर्तन जोधपुर, राजस्थान से पधारीं प्रसिद्ध साहित्यकार और ब्लॉगर डॉ.(श्रीमती) अजित गुप्ता ने किया। उद्‌घाटन सत्र की अध्यक्षता दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा के विश्वविद्यालय विभाग के हैदराबाद केंद्र के विभागाध्यक्ष और प्रोफ़ेसर डॉ. ऋषभ देव शर्मा ने की। इनके अतिरिक्त मंच पर वरिष्ठ कवि श्री आलोकधन्वा, जनसंचार विभाग के अध्यक्ष प्रो. अनिल राय ‘अंकित’ तथा प्रमुख ब्लॉगर और प्रवासी कवयित्री डॉ. कविता वाचक्नवी आदि उपस्थित थे।

श्रीमती अजित गुप्ता  ने विषय प्रवर्तन करते हुए  कहा कि किसी भी देश के सफल संचालन के लिए एक संविधान की आवश्यकता होती है, लेकिन किसी भी समाज के श्रेष्ठ जीवनमूल्यों को गति देने के लिए आचार-संहिता की आवश्यकता है। संविधान का पालन करना हम अपना कर्तव्य समझते हैं जबकि आचार-संहिता का पालन करना हम अपना धर्म समझते हैं। संविधान का पालन कानून से होता है इसलिए हम इसके पालन को अपना कर्तव्य मानते हैं लेकिन आचार-संहिता के लिए हमें अपने स्वभाव में कुछ गुणों को धारण करना होता है इसलिए इसे हम धर्म कहते हैं। उन्होंने आगे कहा कि जब हम आचार-संहिता की बात करते हैं तब व्यक्ति को संस्कारित करने की बात करते हैं। भारत में सदियों से ही आचार-संहिता की पालना रही है। हम 1950 से पूर्व हजारों वर्षों से आचार-संहिता के माध्यम से ही समाज को नियंत्रित करते आए हैं। इसलिए ब्लागिंग की आचार-संहिता पर अवश्य विचार होना चाहिए।

प्रसिद्ध कवयित्री और करीब डेढ़ दर्जन ब्लॉग्स की संचालिका डॉ. कविता वाचक्नवी ने आचार संहिता की आवश्यकता क्यों है पर अपने विचार रखें और कहा कि चिट्‍ठाकारी रूपी माध्यम के विस्तार के साथ साथ शायद आनेवाले समय में आचार संहिता की आवश्यकताएँ बढ़ेंगी। उन्होंने यह भी कहा कि किसी खराब व्यक्‍ति को अच्छी से अच्छी चीज का आधिपत्य दे दीजिए तो वह उसे खराब कर देगा, और एक अच्छे व्यक्‍ति को खराब से खराब चीज दे दीजिए वह उसे अच्छा कर देगा। डॉ.वाचक्नवी ने भी साफ तौर पर माना कि आचार-संहिता को किसी के ऊपर आरोपित नहीं किया जा सकता और यह सुझाव दिया कि आप यह कर सकते हैं कि अनाचार पर दंड का विधान कर दें। उन्होंने कहा कि वे ब्लॉगरों से संयम और उदात्तता की उम्मीद करती हैं ताकि स्वच्छंदता और अराजकता न फैले। सस्ती लोकप्रियता और निरंकुशता से बचने की सलाह देते हुए डॉ. कविता वाचक्नवी ने याद दिलाया कि हमारे लिए ब्लॉग मनोविलास नहीं बल्कि अपनी भाषा, लिपि, साहित्य और संस्कृति को बचाने का युद्ध है.
 

इस अवसर पर प्रख्यात कवि और संस्कृतिकर्मी आलोकधन्वा ने ब्लॉगिंग को एक विस्मयकारी विधा बताया। श्री आलोकधन्वा ने ब्लॉगिंग की तुलना रेल के प्रारम्भिक चलन से करते हुये बताया कि शुरुआत में जैसे रेल यात्रा करने से लोग डरते थे लेकिन आज यह हमारी आवश्यकता बन गयी है वैसे ही शायद अभी ब्लॉगिंग के शुरुआती दौर में इसके प्रति हिचक है लेकिन आने वाले समय में यह जन समुदाय की अभिव्यक्ति का बड़ा माध्यम बनेगी। आलोकधन्वा ने अपने वक्‍तव्य में आगे कहा कि हम आजकल सबसे कठिन दौर से गुजर रहे हैं। इतना कठिन समय, पहले कभी नहीं रहा; द्वितीय विश्‍व युद्ध और अन्य संकटों से भी अधिक कठिन समय के दौर से हम गुजर रहे हैं जिसमें लोकतंत्र के लिए बहुत कम जगह बची है। आचार संहिता की बात करते हुए उन्होंने कहा कि समय और समाज की नैतिकता ही अभिव्यक्‍ति की नैतिकता हो सकती है। दुनिया कैसे बेहतर बने, इस दिशा में प्रयास करने वाली आचार संहिता ही ब्लॉगिंग की आचार संहिता हो सकती है। उन्होंने इस बात पर संतोष जताया कि ब्लॉगिंग सबसे कम पाखंडवाली विधा है।

‘चिट्ठा चर्चा’ के संचालक व लोकप्रिय ‘फुरसतिया’ ब्लॉग के लेखक अनूप शुक्ल ने कहा कि ब्लॉगिंग की आचार संहिता की बात करना खामख्याली है क्योंकि समय और समाज की जो आचार संहिताएँ होंगी वे ही ब्लॉगिंग पर भी लागू होंगी। उन्होंने जोर देकर कहा कि अलग से कोई आचार संहिता कम से कम ब्लॉगिंग पर लागू न हो सकेगी क्योंकि यह ऐसा माध्यम है जिसमें किसी भी अनुशासन को लाँघने की संभावना निहित है। ब्लॉगिंग को अद्‍भुत विधा बताते हुए अनूप शुक्ल ने कहा कि यह अकेला ऐसा माध्यम है जिसमें त्वरित दुतरफा संवाद संभव है। ब्लॉग एक तरह से रसोई गैस की तरह है जिस पर आप हर तरह का पकवान बना सकते हैं अर्थात साहित्य, लेखन, फोटो, वीडियो, ऑडियो हर तरह की विधा में इसमें अपने को अभिव्यक्‍त कर सकते हैं।

भड़ास4मीडिया डॉट कॉम’ के यशवंत सिंह ने भी आचार संहिता की अवधारणा का विरोध किया और अनामी तथा बेनामी ब्लॉगरों के समर्थन में अपनी बात रखी। उन्होंने यहाँ तक कहा कि हमें आज आचार-संहिता बनाने वालों की आचार संहिता पर विचार करना चाहिए।

उद्घाटन सत्र के अंत में सत्राध्यक्ष प्रो. ॠषभ देव शर्मा ने सभी वक्ताओं के विचारों का संक्षिप्त अंश पेश करते हुये अपनी बात कही। प्रो.शर्मा ने आचार संहिता, नैतिकता, बेनामी ब्लॉगर और संबंधित मसलों पर अपने विचार व्यक्‍त किए। बेनामी ब्लॉगरों के बारे में अपनी राय व्यक्‍त करते हुए उन्होंने कहा कि छद्‍म पहचान को ब्लॉग जगत में प्रोत्साहित करना पाखंड को प्रोत्साहित करने के समान है। उन्होंने बताया कि ब्लॉग जगत की आचार संहिता की जगह इंटरनेट की नैतिकता पर व्यापक परिप्रेक्ष्य में चर्चा होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि नैतिकता का स्वर्णिम सिद्धांत यह है कि जैसा व्यवहार हम दूसरों से चाहते हैं, हम भी वैसा ही व्यवहार दूसरों से करें। उन्होंने इंटरनेट की दुनिया को विशुद्ध आभासी दुनिया मानने से इनकार करते हुए कहा कि यह आभासी दुनिया वास्तव में वास्तविक दुनिया का विस्तार है। प्रो.शर्मा ने कहा कि मेरी चिंता का कारण बच्चे हैं जो झूठी पहचान बनाकर इंटरनेट और ब्लॉग के माध्यम से गलत आचरण कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि बेनामी बड़े बड़े काम करते होंगे, मैं उनका अभिनंदन करता हूँ, लेकिन इसे नियम नहीं बनाया जाना चाहिए क्योंकि पाखंड हर जगह निंदनीय है। ब्लॉगिंग कोई खिलवाड़ नहीं है, सामाजिक और नैतिक कर्म है। अतः जिस बात को सार्वजनिक रूप से नहीं कह सकते वह ब्लॉग पर भी कहने का हक हमें नहीं है। हममें यह हिम्मत होनी चाहिए कि जिसे हम सही समझते हैं उसे कह सकें। प्रो.शर्मा ने उदाहरण सहित बताया कि यदि कमेंट व्यक्‍तिगत आक्षेप, अश्‍लीलता और अनैतिकता वाले हों तो उन्हें हटाने का अधिकार होना चाहिए लेकिन स्वस्थ आलोचना को सम्मान मिलना चाहिए भले ही वह कटु हों। ब्लॉग को संवाद का माध्यम बनाया जाए, अखाड़ा नहीं। पारस्परिक शिष्टाचार जो हम अपने आम जीवन में बरतते हैं , उसे ब्लॉगजगत में भी अपनाना चाहिए । डॉ. शर्मा ने यह भी ध्यान दिलाया कि ब्लॉग को समाज सुधार और नैतिकता के अतिरिक्‍त बोझ से लादने के बजाय उसे अपने भीतर की उदात्तता का दर्पण बनाना आवश्‍यक है।

इस अवसर पर हिंदी विश्वविद्यालय के जनसंचार विभाग के प्रो.अनिल कुमार राय ने सभी आगंतुकों को धन्यवाद ज्ञापित करते हुए कहा कि जहाँ आधुनिक संचार माध्यम समाप्‍त होते हैं वहाँ से नव माध्यम के रूप में ब्लॉग संचार की शुरुआत होती है जिसमें कोई संपादक नहीं होता अतः यदि पाठकों की टिप्पणियों को माडरेशन किया जाएगा तो वह एक संपादक की उपस्थिति के समान ही होगा।

दूसरे सत्र में विश्वविद्यालय द्वारा पंजीकृत प्रतिभागियों को हिंद युग्म के शैलेश भारतवासी तथा अहमदाबाद से आये संजय वेंगाणी ने ब्लॉग बनाने की मौलिक तकनीक के बारे में प्रशिक्षित किया और उन्हें ब्लॉगिंग के गुर सिखाये। इस कार्यशाला में विश्वविद्यालय के छात्रों के अलावा बाहर से आये पंजीकृत प्रतिभागियों ने भी प्रशिक्षण प्राप्त किया और कम्प्यूटर लैब में जाकर प्रायोगिक अभ्यास भी किया। करीब तीस अभ्यर्थियों ने अपने नये ब्लॉग बनाये।

दोपहर के खाने के बाद आमंत्रित ब्लॉगर्स के चार समूह बना दिए गयेइन चारो समूहों द्वारा चार अलग-अलग विषयों पर समूह चर्चा की गयी और अगले दिन समूह प्रतिनिधि द्वारा सभागार में मंच से समूह के निष्कर्षों को प्रस्तुत किया गया। समूहों का संघटन निम्नानुसार किया गया था:

1- ब्लॉगिंग में नैतिकता व सभ्याचरण (etiquettes)

श्री सुरेश चिपलूनकर, श्री विवेक सिंह, श्री संजीत त्रिपाठी, डॉ.महेश सिन्हा, डॉ. (श्रीमती) अजित गुप्ता,

2- हिंदी ब्लॉग और उद्यमिता (व्यावसायिकता)

श्री हर्षवर्धन त्रिपाठी, श्री शैलेश भारतवासी, श्री संजय वेंगाणी, श्री अविनाश वाचस्पति, श्री अशोक कुमार मिश्र, श्रीमती रचना त्रिपाठी, श्री सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी, श्री विनोद शुक्ल

3-आचार संहिता क्यों व किसके लिए?

- श्री रवीन्द्र प्रभात, श्रीमती अनिता कुमार, श्री प्रवीण पांडेय, प्रो. ऋषभदेव शर्मा, डॉ कविता वाचक्नवी, डॉ. प्रियंकर पालीवाल

4- हिंदी ब्लॉग और सामाजिक सरोकार

-श्री जय कुमार झा, श्री यशवंत सिंह, श्री अनूप शुक्ल, श्री जाकिर अली रजनीश, सुश्री गायत्री शर्मा

सायं 7 बजे से अन्तराष्ट्रीय छात्रावास में आलोक धन्वा की अध्यक्षता में काव्य पाठ हुआ जिसमें लगभग सभी ब्लॉगर्स ने भाग लिय। कविता सत्र के बाद लखनऊ से पधारे रंगकर्मी और गायक रवि नागर जी के द्वारा महाप्राण निराला, अज्ञेय, शमशेर आदि की कविताओं की संगीतद्ध प्रस्तुति की गयी ।

दूसरे दिन सुबह 7 बजे सभी आगंतुक राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की सेवा स्थली सेवाग्राम और आचार्य बिनोबा भावे की तप:स्थली पवनार आश्रम गए और वहाँ की गतिविधियों का विश्लेषण किया ।

सुबह 9 बजे आश्रम से वापस आने के पश्चात दूसरे सत्र का आरंभ हुआ। चारो समूहों से ब्लॉगिंग एथिक्स पर चर्चा हेतु नामित क्रमशः श्री सुरेश चिपलूनकर, श्री हर्षवर्धन त्रिपाठी, श्री रवीन्द्र प्रभात, सुश्री गायत्री शर्मा, ने अपने अध्ययन पत्र व समूह के विचार सभा के समक्ष प्रस्तुत किए। इसके अतिरिक्त जिन ब्लॉगर्स ने अपने अध्ययन पत्र अलग से प्रस्तुत किए उनमें श्री अविनाश वाचस्पति, श्री अशोक कुमार मिश्र, श्री प्रवीण पांडेय, आदि प्रमुख थे। संचालक सिद्धार्थ शंकर त्रिपाथी ने बताया कि कुछ आमंत्रित अतिथि अंतिम समय में किंचित बाधा के कारण नहीं आ पाये किंतु उन्होंने अपना अध्ययन पत्र प्रेषित कर दिया था। लखनऊ के गिरिजेश राव द्वारा नवोदित ब्लॉगर्स के लिए अनेक सूत्र संकलित करके भेजे गये थे जिसके लिए उनका आभार व्यक्त किया गया। वाराणसी के डॉ.अरविंद मिश्र ने साइंस ब्लॉगिंग के संदर्भ में आचार संहिता विषयक अपना पत्र भेजा था। संयोजक ने बताया कि सभी अध्ययन पत्रों व आलेखों को संकलित कर यथास्थान प्रकाशित करने का प्रयास किया जाएगा।

दूसरे दिन के प्रथम सत्र में समूह की ओर से विषय की प्रस्तुति के क्रम में महाजाल पर स्वनाम से संचालित ब्लॉग के लेखक सुरेश चिपलूनकर ने एक अच्छे ब्लॉगर के लिए जरूरी सभ्याचरण की बातें गिनाते हुए कहा कि -"दूसरे के ब्लाग पर टिप्पणी करना सबसे अच्छा तरीक़ा है ज़्यादा से ज़्यादा लोगों तक पहुँचने के लिये। तत्थात्मक बातें लिखनी चाहिये। सामग्री स्रोत का लिंक देना चाहिये। मॉडरेटर के बारे में उन्होंने बताया कि विरोधी बातों का शालीलना से जबाब देना चाहिये। उन्होंने विनोदपूर्ण शैली में कहा कि बहुत गुस्सा आये तो आप साले की जगह भाईसाहब शब्द का इस्तेमाल करते हुये कह सकते हैं- भाई साहब आप बहुत हरामी हैं।"

इसके बाद दिल्ली से पधारे पी-सेवेन न्यूज चैनेल के प्रोड्यूसर और ‘बतंगड़’ नामक लोकप्रिय ब्लॉग के लेखक हर्षवर्धन ने कहा कि "आप जो भी लिखें पूरी बात पक्की जानकारी से लिखे। उन्होंने विस्फ़ोट, मोहल्ला, भड़ास, अर्थकाम.काम का उदाहरण देते हुये बताया इन्हें ब्लाग में उद्यमिता के मॉडल के रूप में लिया जाना चाहिये। हम समय और आवश्यकता के साथ बदलते हैं। आज यशवंत सिंह उतने ही आक्रामक नहीं हैं जितने शुरुआती दिनों में थे। वे आज ज़्यादा समझदार हुये हैं। यह वित्तीय ज़रूरत से पैदा समझ है। अनामी ब्लागर के बारे में अपनी राय रखते हुये हर्षवर्धन ने कहा कि व्यक्तिगत हिसाब निपटाने के लिये बेनामी ब्लाग लिखना अनुचित है लेकिन जनहित में संस्थागत लड़ाइयाँ लड़ने के लिये बेनामी की आवश्यकता पड़ सकती है। उनका मानना है कि ब्लाग पर विश्वनीयता बनाये रखे के लिये ख़बरें तथ्यात्मक होनी चहिये।"

इसके बाद लखनऊ से पधारे रवीन्द्र प्रभात ने चिट्ठा संहिता क्यों, किसके लिए और कैसे ? विषय पर आधारित अपना वक्तव्य प्रस्तुत कियाउन्होंने ब्लॉग जगत की दिशा, दशा और दृष्टि पर चर्चा करते हुए कहा कि "जब कोई परिवार अथवा समाज बड़ा स्वरुप लेने लगता है, तो वहाँ कुछ अवांछित लोगों की सक्रियता भी बढ़ने लगती है ! ऐसे में समाज के ज़िम्मेदार लोगों का यह कर्तव्य बनता है कि समाज को विसंगतियों और विभेद से दूर रखा जाए ! यही वह कारण है जब हमें ब्लॉगिंग इथिक्स पर बात करने की आवश्यकता महसूस हो रही है ! उन्होंने आशा जतायी कि हिंदी चिट्ठाकारिता का भविष्य उज्ज्वल है और आने वाले दिनों में अँग्रेज़ी की तरह इसका भी एक बड़ा और समृद्ध संसार होगा, इसमें कोई संदेह नहीं है! ज़रूरत केवल इस बात की है सकारात्मक लेखन को बढ़ावा दिया जाए और नकारात्मक लेखन को महत्व न दिया जाए, क्योंकि हिंदी चिट्ठाकारिता में ऐसे लोगों की तादाद अधिक है जो घबराहट और कम आत्मविश्वास की वजह से अपने अनुभवों को साझा करने से डरते हैं कि कहीं कोई हिंदी ब्लॉगजगत का तथाकथित मठाधीश नाराज़ न हो जाए ! हमें इस ओर विशेष ध्यान देना होगा !

रवीन्द्र प्रभात ने एक सूक्तिवाक्य कहा कि आप रातोरात अपनी पत्नी को नहीं बदल सकते, अपने बच्चों को नहीं बदल सकते, अपने सहयोगियों/सहकर्मियों अथवा मित्रों को नहीं बदल सकते मगर स्वयं को बदल सकते हैं ...कोशिश करके देखिये आप बदलेंगे तो अपने आप चिट्ठाकारों का यह समूह भी बदल जाएगा।

इस अवसर पर दिल्ली के अविनाश वाचस्पति ने कहा कि आचार संहिता की बात अगर न भी मानें तो मन की बात माननी चाहिये और ऐसी बातें करने से बचना चाहिये जिससे लोगों को बुरा लग सकता है। उन्होंने अपना विस्तृत आलेख पढ़कर सुनाया।

‘न दैन्यं न पलायनम्‌’ नामक लोकप्रिय ब्लॉग के लेखक बंगलौर के श्री प्रवीण पाण्डेय ने अपना और अपने ब्लॉग का परिचय देते हुये दुविधा ज़ाहिर की वे उन लोगों के सामने अपनी बात कहने आये हैं जिनको पढ़ते हुये उन्होंने ब्लॉगिंग शुरु की। इसे वे अपना सम्मान समझे या यह कि उनको कठिन इम्तहान में खड़ा कर दिया गया है। प्रवीण ने अपनी ब्लॉग यात्रा के बारे में बताया कि टिप्पणियों और ‘मानसिक हलचल’ पर वुधवासरीय पोस्ट से शुरु कर के वे अब अपने ब्लाग पर लिखने लगे हैं- न दैन्यम न पलायनम।" उन्होंने ब्लॉग जगत की तुलना एक सतत प्रवाहमान नदी से करते हुए इसके दो किनारों के अस्तित्व को स्वीकारने की बात की। अपने तटों की सीमा में आबद्ध नदी निरन्तर आगे चलती रहती है तो सबको लाभान्वित करती है, लेकिन जब तटबंध टूटते हैं तो अव्यवस्था फैल जाती है।

हिंदी ब्लॉगिंग विषय की शोध छात्रा और नयी दुनिया दैनिक-इंदौर की उप-संपादक सुश्री गायत्री शर्मा ने अपने ग्रुप का प्रस्तुतिकरण करते हुये ब्लॉगिंग की सामाजिक उपयोगिता पर समूह के विचार पेश किये। उन्होंने सुनामी ब्लॉग का उदाहरण देते हुये ब्लॉग की सामाजिक उपयोगिता के बारे में अपनी बात कही। उन्होंने कहा कि जहाँ हमें ब्लॉग के माध्यम से इंटरनेट पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रतता का अधिकार है, वहीं इस 'स्वतंत्रतता' को 'स्वच्छंदता' में परिवर्तित होने से रोकने के लिए एक जिम्मेदार ब्लॉगर के रूप में हमें कुछ महत्वपूर्ण बातों को जेहन में रखना भी बेहद जरूरी है। जिसे हम ब्लॉगिंग की आचार-संहिता भी कह सकते हैं। यह आचार-संहिता हम पर किसी ने आरोपित नहीं की है पर इसका स्वपालन कर हम एक जिम्मेदार ब्लॉगर के रूप में अपना व समाज का भला कर सकते हैं। हमें ब्लॉग पर कोई ऐसी बात या टिप्पणी नहीं करनी चाहिए जिससे किसी व्यक्ति, समाज या धर्मावलंबी की धार्मिक व सामाजिक भावनाएँ आहत हो। यदि कोई ब्लॉगर अपने ब्लॉग पर किसी अन्य व्यक्ति के ब्लॉग पर प्रकाशित सामग्री, चित्र, लिंक या कोई अन्य सामग्री प्रकाशित करता है तो उसकी यह नैतिक जिम्मेदारी होती है कि वह अपनी उस पोस्ट पर चित्र या जानकारी हेतु संबंधित व्यक्ति या साइट के साभार या संदर्भ का उल्लेख अवश्य करें। साथ ही किसी सुनी-सुनाई बातों पर यकीन कर उसे प्रकाशित करने की बजाय खबर, समाचार या आलेख की विश्वसनीयता पर विचार करने के उपरांत ही उसे अपने ब्लॉग पर प्रकाशित करना चाहिए।

अंत में भड़ास ब्लॉग के संचालक यशवंत सिंह ने चिट्ठाकारी में अपने अनुभव बाँटते हुए कहा कि "हम हिंदी पट्टी के लोग अतियों में जीते हैं। या तो हम अराजक हो जाते हैं या फ़िर बेहद भावुक। अँगरेज़ी के लोग तार्किक होते हैं इसलिये वे गाली और गप्प को कम तथ्य को ज़्यादा तरजीह देते हैं। हम हिंदी वाले गाली और गप्पों पर ज़्यादा ध्यान देते हैं, तथ्य पर कम। यशवंत ने अपनी यादों का ज़िक्र करते हुये यह कहा कि शायद पिछले समय में उन्होंने भी एक आम हिंदी ब्लॉगर की तरह अतियों पर रहते हुये तमाम बेवजह बातें और दूसरों को दुख पहुँचाने वाली पोस्टें लिखीं। लेकिन अब समय के साथ हमारी सोच में बदलाव आया है और अब उन्होंने  इस तरह की दूसरों को दुख पहुँचाने वाली बेवजह की पोस्टें लिखना बंद कर दिया है।"

दूसरे दिन सबसे खास बात थी, देश के प्रख्यात साइबर लॉ एक्सपर्ट व सुप्रीम कोर्ट के वकील पवन दुग्गल के व्याख्यान की प्रस्तुति पवन दुग्गल ने अपने वक्तव्य में कई उदाहरण दिए जिसमें किसी कंपनी के खिलाफ कोई अज्ञात बेनामी ब्लॉगर उसके उत्पाद के बारे में अंट-शंट लिखे जा रहा था। कोर्ट में मामला ले जाया गया। उस ब्लॉगर के खिलाफ फैसला आया लेकिन दिक्कत यह थी कि वह ब्लॉग नार्वे से संचालित था। फिर इसके लिए भारतीय कमीशन के माध्यम से नार्वे के कमीशन से संपर्क किया गया तब जाकर उस व्यक्ति तक पहुंचा जा सका। उन्होंने मार्के की बात यह कही कि ब्लॉग धीरे-धीरे लेकिन जल्दी असर दिखाता है, लोग उसे पढ़कर एक धारणा कायम करते हैं। उन्होंने कारगिल हमले के दौरान बरखा दत्त पर ब्लॉग में लिखे जाने का भी हवाला दिया। जो सबसे बड़ी जानकारी उन्होंने दी वह यह कि "देश के इंफर्मेशन टेक्नॉलजी एक्ट-2000 में 2008 में संशोधन पारित किया गया जो कि 27 अक्तूबर 2009 से लागू हो चुका है। इस एक्ट के तहत अब ब्लॉग, ब्लैकबेरी यहां तक कि सेटेलाइट फोन भी आ चुके हैं

उज्जैन के चर्चित ब्लॉगर सुरेश चिपलूनकर ने पवन दुग्गल से पूछा कि “यदि हम किसी अखबार या पत्रिका में छपी किसी बात को अपने ब्लॉग पर संदर्भ सहित प्रकाशित कर दें और उस सामग्री से किसी नियम का उल्लघन होता हो तो क्या उस अखबार/पत्रिका के साथ हम भी दोष के भागी होंगे?"। साइबर लॉ एक्स्पर्ट ने ‘हाँ’ में उत्तर देते हुए कहा कि अभी इतनी राहत है कि सूचित किए जाने के फ़ौरन बाद यदि आप उक्त सामग्री अपने ब्लॉग से हटा देते हैं तो आपको कोई नुकसान होने की संभावना नहीं है।" ब्लॉगिंग ने आपको पूरी स्वतंत्रता नहीं दी है कि किसी के बारे में कुछ भी जो मन में आया लिख दें, बिना किसी सबूत के। ब्लॉग कानून के दायरे में आ चुका है। किसी आपत्तिजनक सामग्री के रचयिता और उससे दुष्प्रभावित व्यक्ति के बीच ब्लॉगर कानूनन इंटरमीडियरी (मध्यस्थ कड़ी) की भूमिका निभाता है। धारा 79 कहता है कि जिम्मेदारी ब्लॉग, ब्लॉगर व ब्लॉगिंग प्लेटफार्म पर है। किसी जुर्म या कमीशन में भागीदार हैं तो पूरे तौर पर जिम्मेदार। तीन साल की सजा व पांच लाख का जुर्माना। पांच करोड़ तक का हर्जाना (6 माह के भीतर) भी हो सकता है"।

इसी दिन अंतिम सत्र में भोपाल में बैठकर फोन के माध्यम से सेमीनार के दौरान कंप्यूटर पर पावरप्वाइंट पर टेलीप्रेजेंटेशन देते हुए ब्लॉग जगत के एक अन्य पुरोधा रवि रतलामी ने यह स्पष्ट कर दिया कि "ब्लॉगिंग के लिए आचार संहिता संभव नहीं है। उन्होंने बतौर उदाहरण देते हुए बताया कि विकिलिक्स एक उदाहरण है कि कैसे इसके माध्यम से घोटालों को भी उजागर किया जा सकता है"। उन्होंने यह भी जानकारी दी कि "जिसे कानून का उल्लंघन करना ही होगा उसके लिए इंटरनेट पर कई साफ्टवेयर मौजूद हैं जैसे कि टॉर जिनका उपयोग करते हुए वह बेनामी ब्लॉगिंग कर सकता है"। "टॉके नवीनतम प्रयोग और ब्लोगिंग के आवश्यक पहलूओं पर टेली कॉन्फ्रेसिंग के ज़रिये रखी गयी बात को उपस्थित श्रोताओं के द्वारा काफ़ी सराहा गया। संचालक श्री त्रिपाठी ने रवि रतलामी से श्रोताओं की ओर से कुछ सवाल से भी पूछे और भोपाल में घर बैठे उन्हें श्रोताओं की तालियाँ सुनाकर धन्यवाद ज्ञापित किया।

इस अवसर पर डॉ.(श्रीमती) अजीत गुप्ता के लघुकथा-संग्रह “प्रेम का पाठ” का लोकार्पण कुलपति विभूति नारायण राय के द्वारा किया गया, तत्पश्चात नए चिट्ठाकारों से मुख़ाति होते हुए लकनऊ के जाकिर अली रजनीश ने कहा कि नए ब्लॉगर्स को विषय आधारित ब्लॉग के बारे में बताया जाना चाहिए इससे जागरूकता बढ़ेगी ।

इस अवसर पर विश्वविद्यालय का एक सामूहिक ब्लॉग हिंदी-विश्व के नाम से कुलपति जी द्वारा उद्‍घाटित किया गया। स ब्लॉग के संचालन का दायित्व साहित्य विद्यापीठ की एसोसिएट प्रोफ़ेसर डॉ. प्रीति सागर को दिया गया है जिसमें विश्वविद्यालय के शिक्षकों, विद्यार्थियों और अन्य अधिकारियों व कर्मचारियों द्वारा अपना योगदान दिया जाएगा। इस ब्लॉग को तैयार करने में लंदन से पधारी डॉ.कविता वाचक्नवी का योगदान उल्लेखनीय है।

अंत में विश्वविद्यालय के कुलपति विभूति नारायण राय के द्वारा सभी आगंतुकों को प्रमाण पत्र देकर सम्मानित किया गया

शेष बातें जानने के लिए इन लिंक्स पर जाना उपयोगी होगा-

  1. कई अनुत्तरित प्रश्नों को छोड़ गयी वर्धा में आयोजित संगोष्ठी (रवीन्द्र प्रभात)
  2. कैमरे में कैद वर्धा में आयोजित संगोष्ठी की सच्चाई (रवीन्द्र प्रभात)
  3. अविस्मरणीय रहा वर्धा में आयोजित संगोष्ठी का दूसरा दिन (रवीन्द्र प्रभात)
  4. वर्धा में केवल विचार मंथन ही नहीं मस्ती की पाठशाला भी (रवीन्द्र प्रभात)
  5. हिन्दी ब्लॉगिंग पर आधारित दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला और संगोष्ठी पूरी भव्यता के साथ संपन्न(रवीन्द्र प्रभात)
  6. वर्धा सम्मेलन: कुछ खट्टा कुछ मीठा (जाकिर अली रजनीश)
  7. वर्धा यात्रा ने बना दिया गाय, वर्ना आदमी तो हम भी थे काम के.(अनीता कुमार)
  8. बर्धा ब्लॉगर सम्मेलन की रिपोर्ट “जरा हटके” (सुरेश चिपलूनकर)
  9. स्वतंत्र वार्ता हैदराबाद: ब्लॉगरों को अपनी लक्ष्मण रेखा खुद बनानी पड़ेगी- विभूति नारायण राय
  10. वी.एन.राय, ब्लॉगिंग और मेरी वर्धा यात्रा (भड़ास पर यशवंत)
  11. वर्धा की शानदार तस्वीरें (पिकासा पर सुरेश चिपलूनकर)
  12. वर्धा में दो दिवसीय राष्‍ट्रीय कार्यशाला एवं संगोष्‍ठी संपन्न (डॉ.कविता वाचक्नवी)
  13. वर्धा ब्लॉगर मिलन से वापसी, बाल बाल बचे (डॉ. महेश सिन्हा)
  14. ब्लोगिंग के जरिये गणतंत्र को आगे बढाने का एक अभूतपूर्व आयोजन का सार्थक प्रयास..(जय कुमार झा)
  15. ब्लोगर संगोष्ठी वर्धा चित्रों क़ी नजर से ..(जय कुमार झा)
  16. वर्धा संगोष्ठी और कुछ अभूतपूर्व अनुभव व मुलाकातें ....(जय कुमार झा)
  17. ब्लोगिंग का उपयोग सामाजिक सरोकार तथा मानवीय मूल्यों को सार्थकता क़ी ओर ले जाने केलिए किये जाने क़ी संभावनाएं बढ़ गयी है .....(जय कुमार झा)
  18. वर्धा में मिले ब्लॉगर (विवेक सिंह)
  19. वर्धा के गलियारों से (कुछ झूठ कुछ सच ) (विवेक सिंह)
  20. "ब्‍लोगिंग की कार्यशाला – अभी छाछ को बिलौना बाकी है – डॉ. (श्रीमती)अजित गुप्‍ता
  21. वर्धा सम्‍मेलन की तीन अविस्‍मरणीय बातें (संजय बेंगाणी)
  22. साला न कहें भाई साहब कहें चर्चाकारः अनूप शुक्ल
  23. ब्लॉगिंग सबसे कम पाखंड वाली विधा है चर्चाकारः अनूप शुक्ल
  24. ब्लॉगिंग की आचार संहिता की बात खामख्याली है चर्चाकारः अनूप शुक्ल
  25. वर्धा में भाषण जारी चर्चाकारः अनूप शुक्ल
  26. वर्धा में ब्लागर सम्मेलन चर्चाकारः अनूप शुक्ल
  27. नदी उदास नहीं थी  (डॉ. कविता वाचक्नवी)
  28. गांधी जी सफलतम ब्लॉगर हुए होते : वर्धा आयोजन का भरत वाक्य  (डॉ.ऋषभदेव शर्मा)
  29. "वर्धति सर्वम् स वर्धा – 1 (प्रवीण पांडेय)
  30. वर्धा ब्लोगर संगोष्ठी के पर्दे के पीछे के असल हीरो ... (जय कुमार झा)
  31. वर्धा संगोष्ठी में उपस्थित थे गांधी, निराला, शमशेर और अज्ञेय भी ... (रवीन्द्र प्रभात)
  32. हिंदी ब्लॉगिंग-आचार संहिता-देश के ब्लॉगर और कुछ बातें, एक रपट जैसा कुछ (संजीत त्रिपाठी)
  33. महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय,वर्धा से लौटकर .... हिन्‍दी ब्‍लॉगरों की एक महारैली का आयोजन देश की राजधानी दिल्‍ली के इंडिया गेट पर करें (अविनाश वाचस्पति)
  34. तनिक रुको भाई, आ रहे हैं बताते हैं बताते हैं (अनीता कुमार)
  35. वर्धा और बिरयानी घर (राम त्यागी)
  36. वर्धा से आप लोग क्यों चले गये… ? (मास्टर सत्यार्थ)
  37. ...अथ वर्धा ब्लॉगर सम्मेलन कथा (भाग-१) अनूप शुक्ल ‘फुरसतिया’

(संयोजक)


 

 

 

 

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