अष्टोत्तर सत कमल फल, मुष्टी तीनि प्रमान।
सप्त सप्त तजि सेष को, राखे सब बिलगान।।
प्रथम सर्ग जो सेष रह, दूजे सप्तक होइ।
तीजे दोहा जानिए, सगुन बिचारब सोइ।।
प्रथम सर्ग
सप्तक-1
बानि बिनायकु अंब रबि गुरु हर रमा रमेस।
सुमिरि करहु सब काज सुभ, मंगल देस बिदेस॥१॥
गुरु सरसइ सिंधूर बदन ससि सुरसरि सुरगाइ।
सुमिरि चलहु मग मुदित मन, होइहि सुकृत सहाइ॥२॥
गिरा गौरा गुरु नगप हर मंगल मंगल मूल।
सुमित करतल सिद्धि सब, होइ ईस अनुकुल॥३॥
भरत भारती रिपु दवनु गुरु गनेस बुधवार।
सुमिरत सुलभ सधर्म फल, बिद्या बिनय बिचार॥४॥
सुरगुरु गुरु सिय राम गन राउ गिरा उर आनि।
जो कछु करिय सो होय सुभ, खुलहिं सुमंगल खानि॥५॥
सुक्र सुमिरि गुरु सारदा गनपु लखनु हनुमान।
करिय काजु सब साजु भल, निपटहिं नीक निदान॥६॥
तुलसी तुलसी राम सिय, सुमिरि लखनु हनुमान।
काजु बिचारेहु सो करहु, दिनु दिनु बड़ कल्यान॥७॥
सप्तक-2
दसरथ राज न ईति भय, नहिं दुख दुरित दुकाल।
प्रमुदित प्रजा प्रसन्न सब, सब सुख सदा सुकाल॥१॥
कौसल्या पद नाइ सिर, सुमिरि सुमित्रा पाय।
करहु काज मंगल कुसल. बिधि हरि संभु सहाय॥२॥
बिधिबस बन मृगया फिरत दीन्ह अन्ध मुनि साप।
सो सुनि बिपति बिषाद बड़, प्रजहिं सोक संतोष॥३॥
सुतहित बिनती कीन्ह नृप, कुलगुरु कहा उपाउ।
होइहि भल संतान सुनि प्रमुदित कोसल राउ॥४॥
पुत्र जागु करवाइ रिषि राजहि दीन्ह प्रसाद।
सकल सुमंगल मूल जग भूसुर आसिरबाद॥५॥
राम जनम घर घर अवध मंगल गान निसान।
सगुन सुहावन होइ सत मंगल मोद निधान॥६॥
राम भरतु सानुज लषन दसरथ बालक चारि।
तुलसी सुमिरत सगुन सुभ मंगल कहब पचारि॥७॥
सप्तक-3
भूप-भवन भाइन्ह सहित रघुबर बाल बिनोद।
सुमिरत सब कल्यान जग, पग पग मंगल मोद॥१॥
करन बेध चूड़ा करन, श्रीरघुबर उपबीत।
समय सकल कल्यानमय, मंजुल मंगल गीत॥२॥
भरत सत्रुसूदन लषन सहित सुमिरि रघुनाथ।
करहु काज सुभ साज सब, मिलहिं सुमंगल साथ॥३॥
राम लखनु कौसिक सहित सुमिरहु करहु पयान।
लच्छि लाभ जय जगत जसु, मंगल सगुन प्रमान॥४॥
मुनिमखपाल कृपाल प्रभु चरनकमल उर आनु।
तजहु सोच, संकट मिटिहि, सत्य सगुन जियँ जानु॥५॥
हानि मीचु दारिद आदि अंत गत बीच।
राम बिमुख अघ आपने गये निसाचर नीच॥६॥
सिला साप मोचन चरन सुमिरहु तुलसीदास।
तजहु सोच, संकट मिटहि, पूजिहि मन कै आस॥७॥
सप्तक-4
सीय-स्वयंबर समउ भल, सगुन साध सब काज।
कीरति बिजय बिबाह विधि, सकल सुमंगल साज॥१॥
राजत राज समाज महँ राम भंजि भव चाप।
सगुन सुहावन, लाभ बड़, जय पर सभा प्रताप॥२॥
लाभ मोद मंगल अवधि सिय रघुबीर विवाहु।
सकल सिद्धि दायक समउि सुभ सब काज उछाहु॥३॥
कोसल पालक बाल उर सिय मेली जयमाल।
समउल सुहावन सगुन भल, मुद मंगल सब काज॥४॥
हरषि बिबुध बरषसिं सुमन, मंगल गान निसान।
जय जय रबिकुल कमल रबि मंगल मोद निधान॥५॥
सतानंद पठये जनक दसरथ सहित समाज।
आये तिरहुत सगुन सुभ, भये सिद्ध सब काज॥६॥
दसरथ पुरन परम बिधू, उदित समय संजोग।
जनक नगर सर कुमुदगन, तुलसी प्रमुदित लोग॥७॥
सप्तक-5
मन मलीन मानी महिप कोक कोकनद बृंद।
सुहृद समाज चकोर चित प्रमुदित परमानंद॥१॥
तेहि अवसर रावन नगर असगुन असुभ अपार।
होहिं हानि भय मरन दुख सूचक बारहिं बार॥२॥
मधु माधव दसरथ जनक, मिलब राज रितुराज।
सगुन सुवन नव दल सुतरु, फुलत फलत सुकाज॥३॥
बिनय पराग सुप्रेम रस, सुमन सुभग संबाद।
कुसुमित काज रसाल तरु सगुन सुकोकिल नाद॥४॥
उदित भानु कुल भानु लखि लुके उलूक नरेस।
गये गँवाई गरूर पति, धनु मिस हये महेस॥५॥
चारि चारु दसरथ कुँवर निरखि मुदित पुर लोग।
कोसलेस मथिलेस को समउ सराहन जोग॥६॥
एक बितान बिबाहि सब सुवन सुमंगल रूप।
तुलसी सहित समाज सुख सुकृत सिंधु दोउ भूप॥७॥
सप्तक-6
दाइज भयउ अनेक बिधि, सुनि सिहाहिं दिसिपाल।
सुख संपति संतोषमय, सगुन सुमंगल माल॥१॥
बर दुलहिनि सब परसपर मुदित पाइ मनकाम।
चारु चारि जोरी निरखि दुहूँ समाज अभिराम॥२॥
चारिउ कुँवर बियाहि पुर गवने दसरथ राउ।
भये मंजु मंगल सगुन गुर सुर संभु पसाउ॥३॥
पंथ परसु धर आगमन समय सोच सब काहु।
राज समाज विषाद बड़, भय बस मिटा उछाहु॥४॥
रोष कलुष लोचन भ्रुकुटि, पानि परसु धनु बान।
काल कराल बिलोकि मुनि सब समाज बिलखान॥५॥
प्रभुहि सौपि सारंग मुनि दीन्ह सुआसिरबाद।
जय मंगल सूचक सगुन राम राम संबाद॥६॥
अवध अनंद बधावनो, मंगल गान निसान।
तुलसी तोरन कलस पुर चँवर पताका बितान॥७॥
सप्तक-7
साजि सुमंगल आरती, रहस बिबस रनिवासु।
मुदित मात परिछन चलीं उमगत हृदयँ हुलासु॥१॥
करहिं निछावरि आरती, उमगि उमगि अनुराग।
बर दुलहिन अनुरूप लखि सखी सराहहिं भाग॥२॥
मुदित नगर नर नारि सब, सगुन सुमंगल मूल।
जय धुनि मुनि दुंदुभी बाजहिं बरषहिं फुल॥३॥
आये कोसलपाल पुर, कुसल समाज समेत।
समउ सुन सुमिरत सुखद, सकल सिद्धि सुभ देत॥४॥
रूप सील बय बंस गुन, सम बिबाह भये चारि।
मुदित राउ रानी सकल, सानुकूल त्रिपुरारि॥५॥
बिधि हरि हर अनुकुल अति दशरथ राजहि आजु।
देखि सराहत सिद्ध सुर संपति समय समाजु॥६॥
सगुन प्रथम उनचास सुभ, तुलसी अति अभिराम।
सब प्रसन्न सुर भूमिसूर, गोगन गंगा राम॥७॥
द्वितीय सर्ग
सप्तक-1
समय राम जुबराज कर, मंगल मोद निकेतु।
सगुन सुहावन संपदा, सिद्धि सुमंगल हेतु॥१॥
सुर माया बस केकई, कुसमयँ किन्हि कुचालि।
कुटिल नारि मिस छलु, अनभल आजु कि कालि॥२॥
कुसमय कुसगुन कोटि सम, राम सीय बन बास।
अनरथ अनभल अवधि जग, जानब सरबस नास॥३॥
सोचत पुर परिजन सकल, बिकल राउ रनिवास।
छल मलीन मन तीय मिस, बिपति बिषाद बिनास॥४॥
लषन राम सिय बन गमनु, सकल अमंगल मूल।
सोच पोच संताप बस, कुसमय संसय सूल॥५॥
प्रथम बास सुरसरि निकट, सेवा कीन्ही निषाद।
कहब सुभासुभ सगुन फल, बिसमय हर्ष बिषाद॥६॥
चले नहाइ प्रयाग प्रभु, लषन सीय रघुराय।
तुलसी जानब सगुन फल, होइहि साधुसमाज॥७॥
सप्तक-2
सीय राम लोने लषनु, तापस वेष अनुप।
तप तीरथ जप जाग हित, सगुन सुमंगल रूप॥१॥
सीता लषन समेत प्रभु, जमुना उतरि नहाइ।
चले सकल संकट समन, सगुन सुमंगल पाइ॥२॥
अवध सोक संताप बस, बिकल सकल नर नारि।
बाम बिधाता राम बिनु, माँगत मीचु पुकारि॥३॥
लषन सीय रघुबंस मनि, पथिक पाय उर आनि।
चलहु अगम मग सुगम सुभ, सगुन सुमंगल खानि॥४॥
ग्राम नारि नर मुदित मन, लषन राम सिय देखि।
होइ प्रीति पहिचान बिनु, मान बिदेस बिसेषि॥५॥
बन मुनि गन रामहि मिलहिं, मुदित सुकृत फल पाइ।
सगुन सिद्ध साधम दरस, अभिमान होइ अघाइ॥६॥
चित्रकुट पय तीर प्रभु, बसे भानु कुल भानु।
तुलसी तप जप जोग हित, सगुन सुमंगल जानु॥७॥
सप्तक-3
हंसबंस अवतंस जब, कीन्ह बास पय पास।
तापस साधम सिद्ध मुनि, सब कहँ सगुन सुपास॥१॥
बिटप बेलि फुलहिं फलहिं, जल थल बिमल बिसेषि।
मुदित किरात बिहंग मृग, मंगल मूरति देखि॥२॥
सींचति सीय सरोज कर, बयें बिटप बट बेलि।
समय सुकाल किसान हित, सगुन सुमंगल केलि॥३॥
हय हाँके फिरी दखिन दिसि, हेरि हेरि हिहिनात।
भये निषाद बिषाद बस, अवध सुमंतहि जात॥४॥
सचिव सोच ब्याकुल सुनत, असगुन अवध प्रबेस।
समाचार सुनि सोक बस, माँगी मीचु नरेस॥५॥
राम राम कहि राम सिय, राम सरन भये राउ।
सुमिरहु सीताराम अब, नाहिन आन उपाउ॥६॥
राम बिरहँ दसरथ मरनु, मुनि मन आगम सुमीचु।
तुलसी मंगल मरन तरु, सुचि सनेह जल सींचु॥७॥
सप्तक-4
धीर बीर रघुबीर प्रिय, सुमिरि समीर कुमारु।
अगम सुगम सब काज करु, करतल सिद्धि बिचारु॥१॥
सुमिरि सत्रु सूदन चरन, सुमंगल मानि।
परपुर बाद बिबाद जय, जूझ जुआ जय जानि॥२॥
सेवक सखा सुबंधु हित, सगुन बिचारु बिसेषि।
भरत नाम गुनगन बिमल, सुमिरि सत्य सब लेखि॥३॥
साहिब समरथ सीलनिधि, सेवत सुलभ सुजान।
राम सुमिरि सेइअ सुप्रभ, सगुन कहब कल्यान॥४॥
सुकृत सील सोभा अवधि, सीय सुमंगल खानि।
सुमिरि सगुन तिय धर्म हित, कहब सुमंगल जानि॥५॥
ललित लषन मूरति हृदयँ, आनि धरें धनु बान।
करहु काज सुभ सगुन सब, मुद मंगल कल्यान॥६॥
राम नाम पर रामते, प्रीति प्रतीति भरोस।
सो तुलसी सुमिरत सकल, सगुन सुमंगल कोस॥७॥
सप्तक-5
गुरु आयुस आये भरत, निरखि नगर नर नारि।
सानुज सोचत पोच बिधि, लोचन मोचत बारि॥१॥
भूप मरनु प्रभु बन गवनु, सब बिधि अवध अनाथ।
रीवत समुझि कुमात कृत्त, मीजि हाथ धुनि माथ॥२॥
बेदबिहित पितु करम करि, लिये संग सब लोग।
चले चित्रकूटहि भरत, ब्याकुल राम बियोग॥३॥
राम दरस हियँ हरषु बड़, भूपति मरन बिषादु।
सोचत सकल समान सुनि, राम भरत संबादु॥४॥
सुनि सिख आसिष पाँवरी, पाइ नाइ पद माथ।
चले अवध संताप बस, बिकल लोग सब साथ॥५॥
भरत नेम ब्रत धरम सुभ, राम चरन अनुराग।
सगुन समुझि साहस करिय, सिद्ध होइ जप जाग॥६॥
चित्रकुट सब दीन बसत, प्रभु सिय लषन समेत।
राम नाम जप जापकहि, तुलसी अभिमत देत॥७॥
सप्तक-6
पय पावनि, बन भुमि भलि, सैल सुहावन पीठ।
रागिहि सीठ बिसोषि थलु बिषय बिरागिहि मीठ॥१॥
फटिक सिला मन्दाकिनी, सिय रघुबीर बिहारा।
राम भात हित सगुन सुभ, भूतल भगति भँडार॥२॥
सगुन सकल संकट समन, चित्रकूट चलि जाहु।
सीता राम प्रसाद सुभ, लघु साधन बड़ लाहु॥३॥
दिए अत्रि तिय जानकिहिं, बसन बिभुषन भूरि।
राम कृपा संतोष सुख, होहिं सकल दुख दुरि॥४॥
काक कुचालि बिराध बध, देह तजी सरभंग।
हानि मरन सूचक सगुन, अनरथ असुभ प्रसंग॥५॥
राम लषन मुनि गन मिलन, मंजुल मंगल मूल।
सत समाज तब होइ जब, रमा राम अनुकुल॥६॥
मिले कुंभसंभव मुनिहिं, लषन सीय रघुराज।
तुलसी साधु समाज सुख, सिद्ध दरस सुभ काज॥७॥
सप्तक-7
सुनि मुनि आयसु प्रभु कियो, पंचबटी बर बास।
भइ महि पावनि परसि पद, भा सब भाँति सुपात॥१॥
सरित सरोबर सजल सब, जलज बिपुल बहु रंग।
समउत सुहावन सगुन सुभ, राजा प्रजा प्रसंग॥२॥
बिटप बेलि फुलहि फलहिं, सीतल सुखद समीर।
मुदित बिहँग मृग मधूप गन बन पालक दोउ बीर॥३॥
मोदाकर गोदावरी, बिपिन सुखद सब काल।
निर्भय मुनि जप तप करहिं, पालक राम कृपाल॥४॥
भेंट गीध रघुराज सन, दुहूँ दिसि हॄदयँ हुलासु।
सेवक पाइ सुसाहिबहि, साहिब पाइ सुदासु॥५॥
पढहिं पढा़वहिं मुनि तनय, आगम निगम पुरान।
सगुन सुबिद्या लाभ हित, जानब समय समान॥६॥
निज कर सींचित जानकी, तुलसी लाइ रसाल।
सुभ दूती उनचाल भलि, बरषा कृषी सुकाल॥७॥
तृतीय सर्ग
सप्तक-1
दंडकबन पावन करन, चरन सरोज प्रभाउ।
ऊसर जामहि, खल तरहिं, होइँ रंक तें राउ॥१॥
कपट रूप मन मलिन गइ, सुपनखा प्रभु पास।
कुसगुन कठिन कुनारि कृत, कलह कलुष उपहस॥२॥
नाक कान बिनु बिकल भइ, बिकट कराल कुरूप।
कुसगुन पाउ न देब मग, पग पग कंटक कूप॥३॥
खर दूषन देखी दुखित, चले साजि सब साज।
अनरथ असगुन अघ असुभ, अनभल अखिल अकाज॥४॥
कटु कुठायँ करटा रटहिं, केंकरहिं फेरु कुभाँति।
नीच निसाचर मीच बस, अनी मोह मद माति॥५॥
राम रोष पावक प्रबल, निसिचर सलभ समान।
लरत परत जरि जरि मरत, भए भसम जगु जान॥६॥
सीता लषन समेत प्रभु, सोहत तुलसीदास।
हरषत सुर बरषत सुमन सगुन, सुमंगल बास॥७॥
सप्तक-2
सुभट सहस चौदह सहित, भाइ काल बस जानि।
सूपनखा लंकहि चली, असुभ अमंगल खानि॥१॥
बसन सकल सोनित समल, बिकट बदन गत गात।
रोवति रावन की सभा, तात मात हा भ्रात॥२॥
काल कि मुरति कालिका, कालराति बिकराल।
बिनु पहिचाने लंकपति, सभा सभय तेहि काल॥३॥
सूपनखा सब भाँति गत, असुभ अमंगल मूल।
समय साढ़साती सरिस, नृपहि प्रजहि प्रतिकूल॥४॥
बरबस गवनत रावनहि, असगुन भए अपार।
नीचु गनत नहिं मीचु बस मिलि मारीच बिचार॥५॥
इत रावन उत राम कर, मीचु जानि मारीच।
कनक कपट मृग बेस तब, कीन्ह निसाचर नीच॥६॥
पंचबटी बट बिटप तर, सीता लषन समेत।
सोहत तुलसीदास प्रभु, सकल सुमंगल देत॥७॥
सप्तक-3
मायामृग पहिचानि प्रभु, चले सीय रुचि जानि।
बंचक चोर प्रपंच कृत, सगुन कहब हित मानि॥१॥
सीय हरन अवसर सगुन, भय संसय संताप।
नारि काज हित निपट गत, प्रगट पराभव पाप॥२॥
गीधराज रावन समर, घायल बीर बिराज।
सूर सुजसु संग्राम महि, मरन सुसाहिब काज॥३॥
राम लषनु बन बन बिकल, फिरत सीय सुधि लेत।
सूचत सगुन बिषादु बड़, असुभ अरिष्ट अचेत॥४॥
रघुबर बिकल बिहंग लखि, सो बिलोकि दोउ बीर।
सिय सुधि कहि सिय राम कहि तजी देह मतिधीर॥५॥
दसरथ ते दसगुन भगति, सहित तासु करि काज।
सोचत बंधु समेत प्रभु, कृपासिंधु रघुराज॥६॥
तुलसी सहित सनेह नित, सुमिरहु सीताराम।
सगुन सुमंगल सुभ सदा, आदि मध्य परिनाम॥७॥
सप्तक-4
सकल काज सुभ समउ भल सगुन सुमंगल जानु।
कीरति बिजय बिभूति भलि, हियँ हनुमानहिं आनु॥१॥
सुमिरि सत्रुसूदन चरन चलहु करहु सब काज।
सभु-पराजय निज बिजय, सगुन सुमंगल साज॥२॥
भरत नाम सुमिरत मिटहिं, कपट कलेस कुचालि।
नीति प्रीति परतीति हित, सगुन सुमंगल सालि॥३॥
राम नाम कलि कामतरु, सकल सुमंगल कंद।
सुमिरत करतल सिद्धि जग, पग पग परमानंद॥४॥
सीता चरन प्रनाम करि, सुमिरि सुनाम सनेम।
सुतिय होहिं पतिदेवता, प्राननाथ प्रिय प्रेम॥५॥
लषन ललित मूरति मधुर, सुमिरहु सहित सनेह।
सुख संपति कीरति बिजय, सगुन सुमंगल गेह॥६॥
तुलसी तुलसी मंजरीं, मंगल मंजुल मूल।
देखत सुमिरत सगुन सुभ, कलपलता फल फूल॥७॥
सप्तक-5
खलबल अंध कबंध बस, परे सुबंधु समेत।
सगुन सोच संकट कहब, भूत प्रेत दुख देत॥१॥
पाई नीच सुमीचु भलि, मिटा महा मुनि साप।
बिहँग मरन सिय सोच मन, सगुन सभय संताप॥२॥
काहि सबरी सब सीय सुधि, प्रभु सराहि फल खात।
सोच समयँ संतोष सुनि, सगुन सुमंगल बात॥३॥
पवनसुवन सन भेंट भइक, भुमि सुता सुधि पाइ।
सोच बिमोचन सगुन सुभ, मिला सुसेवक आइ॥४॥
राम लषन हनुमान मन, दुहूँ दिसि परम उछाहु।
मिला सुसाहिब सेवकहि, प्रभुहि सुसेवक लाहु॥५॥
कीन्ह सखा सुग्रीव प्रभु, दीन्हि बाँह रघुबीर।
सुभ सनेह हित सगुन फल, मिटइद सोच भय भीर॥६॥
बली बालि बलसलि दलि, सखा कीन्ह कपिराज।
तुलसी राम कृपाल को, बिरद गरिब निवाज॥७॥
सप्तक-6
बंधु बिरोध न कुसल कुल कुसगुन कोटि कुचालि।
रावन रबि को राहु सो, भयो काल बस बालि॥१॥
कीन्ह बास बरषा निरखि, गिरिबर सानुज राम।
काज बिलंबित सगुन फल, होइहि भल परिनाम॥२॥
सीय सोध कपि भालु सब, बिदा किए कपिनाथ।
जतन करहु आलस तजहु, नाइ राम पद माथ॥३॥
हनुमान हियँ हरषि तब, राम जोहारे जाइ।
मंगल मूरति मारुतिहि, सादर लीन्ह बुलाइ॥४॥
डाँटे बानर भालु सब, अवधि गये बिन काज।
जो आइहि सो काल बस, कोपि कहा कपिराज॥५॥
जान सिरोमनि जानि जियँ, कपि बल बुद्धि निधानु।
दीन्हि मुद्रिका मुदित प्रभु, पाइ मुदित हनुमानु॥६॥
तुलसी करतल सिद्धि सब, सगुन सुमंगल साज।
करि प्रनाम रामहि चलहु, साहस सिद्ध सुकाज॥७॥
सप्तक-7
नाथ हाथ माथे धरेउ प्रभु मुदरी मूँह मेलि।
चलेउ सुमिरि सारंगधर, आनिहि सिद्धि सकेलि॥१॥
संग नील नल कुमुद गद, जामवंत जुबराज।
चले राम पद नाइ सिर, सगुन सुमंगल साज॥२॥
पैठि बिबर मिलि तापसिहि, अँचइक पानि फलु खाइ।
सगुन सिद्ध साधक दरस, अभिमत होइ अघाइ॥३॥
बनचर बिकल बिषाद बस, देखि उदधि अवगाह।
असमंजस बढ़ सगुन गत, बिधि बस होइ निबाह॥४॥
सब सभीत संपाति लखि, हहरे हृदयँ हरास।
कहत परस्पर गीध गति, परिहरि जीवन आस॥५॥
नव तनु पाइ देखाइ प्रभु, महिमा कथा सुनाइ।
धरहु धीर साहस करहु, मुदित सीय सुधि पाइ॥६॥
तुलसी राम प्रभाउ कहि, मुदित चले संपाति।
सुभ तीसर उनचास भल, सगुन सुमंगल पाँति॥७॥
चतुर्थ सर्ग
सप्तक-1
राम जनम सुभ सगुन भल, सकल सुकृत सुख सारु।
पुत्र लाभ कल्यानु बड़, मंगल चारु बिचारु॥१॥
दसरथ कुल गुरु की कृपा, सुत हित जाग कराइ।
पायस पाइ बिभाग करि, रानिन्ह दीन्ह बुलाइ॥२॥
सब सगरभ सोहहिं सदन, सकल सुमंगल खानि।
तेज प्रताप प्रसन्नता, रूप न जाहिं बखानि॥३॥
देखि सुहावन सपन सुभ, सगुन सुमंगल पाइ।
कहहिं भूप सन मुदित मन, हर्ष न हृदयँ समाइ॥४॥
सपन सगुन सुनि राउ कह, कुलगुरु आसिरबाद।
पूजिहि सब मन कामना, संकर गौरि प्रसाद॥५॥
मास पाख तिथि जोग सुभ, नखत लगन ग्रह बार।
सकल सुमंगल मूल जग, राम लीन्ह अवतार॥६॥
भरत लषन रिपुदवन सब, सुवन सुमंगल मुल।
प्रगट भए नृप सुकृत फल, तुलसी बिधि अनुकुल॥७॥
सप्तक-2
घर घर अवध बधावने, मुदित नगर नर नारि।
बरषि सुमन हरषहिं बिबुध, बिधि त्रिपुरारि मुरारि॥१॥
मंगल गान निसान नभ, नगर मुदित नर नारि।
भूप सुकृत सुरतरु निरखि, फरे चारु फल चारि॥२॥
पुत्र काज कल्यान नृप, दिए बहु भाँति।
रहस बिबस रनिवास सब, मुद मंगल दिन राति॥३॥
अनुदिन अवध बधावने, नित नव मंगल मोद।
मुदित मातु पितु लोग लखि, रघुबर बाल बिनोद॥४॥
करनबेध चूडा़करन, लौकिक बैदिक काज।
गुरु आयसु भूपति करत, मंगल साज समाज॥५॥
राज अजिर राजत रुचिर, कोसल पालक बाल।
जानु पानि चर चरित बर, सगुन सुमंगल माल॥६॥
लहे मातु पितु भाग बस, सुत जग जलधि ललाम।
पुत्र लाभ हित सगुन सुभ, तुलसी सुमिरहु राम॥७॥
सप्तक-3
बाल बिभुषन बसन धर, धूरि-धूसरित अंग।
बालकेलि रघुबर करत, बाल बंधु सब संग॥१॥
राम भरत लछिमन ललित, सत्रुसमन सुभ नाम।
सुमिरत दसरथ सुवन सब, पूजिहिं सब मन काम॥२॥
नाम ललित लीला ललित, ललित रूप रघुनाथ।
ललित बसन भूषन ललित, ललित अनुज सिसु साथ॥३॥
सुदिन साधि मंगल किए, दिए भूप ब्रतबंध।
अवध बधाव बिलोकि सुर, बरषत सुमन सुगंध॥४॥
भूपति भूसुर भाट नट, जाचक पुर नर नारि।
दिए दान सनमानि सब, पूजे कुल अनुहारि॥५॥
सखीं सुआसिनि बिप्रतिय, सनमानीं सब रायँ।
ईस मनाय असीस सुभ, देहिं सनेह सुभायँ॥६॥
राम काज कल्यान सब, सगुन सुमंगल मूल।
चिर जीवहु तुलसी सब, कहि सुर बरषहिं फुल॥७॥
सप्तक-4
रामजनम सुभकाज सब, कहत देवरिषि आइ।
सुनि सुनि मन हनुमान के, प्रेम उमँग न अमाइ॥१॥
भरतु स्यामतन राम सम, सब गुन रूप निधान।
सेवक सुखदायक सुलभ, सुमिरत सब कल्यान॥२॥
ललित लाहु लोने लखनु, लोयन लाहु निहारि।
सुत ललाम लालहु ललित, लेहु ललकि फल चारि॥३॥
मंगल मूरति मोद निधि, मधुर मनोहर बेष।
राम अनुग्रह पुत्र फल, होइहि सगुन बिसेष॥४॥
सोधत मख महि जनकपुर, सीय सुमंगल खानि।
भूपति पुन्य पयोधि जनु, रमा प्रगट भइ आनि॥५॥
नाम सत्रुसुदन सुभग, सुषमा सील निकेत।
सेवत सुमिरत सुलभ सुख, सकल सुमंगल देत॥६॥
बालक कोसलपाल के सेवक पाल कॄपाल।
तुलसी मन मानस बसत, मंगल मंजु मराल॥७॥
सप्तक-5
जनकनंदिनी जनकपुर, जब तें प्रगटीं आइ।
तब तें सब सुखसंपदा, अधिक अधिक अधिकाइ॥१॥
सीय स्वयंबर जनकपुर, सुनि सुनि सकल नरेस।
आए साज समाज सजि, भूषन बसन सुदेस॥२॥
चले मुदित कौसिक अवध, सगुन सुमंगल साथ।
आए सुनि सनमानि गृह, आने कोसलनाथ॥३॥
सादर सोरह भाँति नृप पूजि पहुनई कीन्हि।
बिनय बडा़ई देखि मुनि, अभिमत आसिष दीन्हि॥४॥
मुनि माँग दसरथ दिए, रामु लखनु दोउ भाइ।
पाइ सगुन फल सुकृत फल, प्रमुदित चले लेवाइ॥५॥
स्यामल गौर किसोर बर, धरें तुन धनु बान।
सोहत कौसिक सहित मग, मुद मंगल कल्यान॥६॥
सैल सरित सर बाग बन, मृग बिहंग बहुरंग।
तुलसी देखत जात प्रभु, मुदित गाधिसुत संग॥७॥
सप्तक-6
लेत बिलोचन लाभु सब, बड़भागी मग लोग।
राम कृपाँ दरसनु सुगम, अगन जाग जप जोग॥१॥
जलद छाँह मृदु मग अवनि सुखद पवन अनुकूल।
हरषत बिबुध बिलोकि प्रभु, बरषत सुरतरु फूल॥२॥
दले मलिन खल राखि मख, मुनि सिष आसिष दीन्ह।
बिद्या बिस्वामित्र सब, सुथल समरपित कीन्हि॥३॥
अभय किए मुनि राखि मख, धरें बान धनु हाथ।
धनु मख कौतुक जनकपुर, चले गाधिसुत साथ॥४॥
गौतम तिय तारन चरन, कमल आनि उर देखु।
सकल सुमंगल सिद्धि सब, करतल सगुन बिसेषु॥५॥
जनक पाइ प्रिय पाहुने, पूजे पूजन जोग।
बालक कोसलपाल के, देखि मगन पुर लोग॥६॥
सनमाने आने सदन, पूजे अति अनुराग।
तुलसी मंगल सगुन सुभ, भूरि भलाई भाग॥७॥
सप्तक-7
कौसिक देखन धनुष मख, चले संग दोउ भाइ।
कुँअर निरखि पुर नारि नर, मुदित नयन फल पाइ॥१॥
भूप सभाँ भव चाप दलि, राजत राजकिसोर।
सिद्धि सुमंगल सगुन सुभ, जय जय जय सब ओर॥२॥
जयमय मंजुल माल उर, मंगल मुरति देखि।
गान निसान प्रसुन झरि, मंगल मोद बिसोषि॥३॥
समाचार सुनि अवधपति, आए सहित समाज।
प्रीति परस्पर मिलत मुद, सगुन सुमंगल साज॥४॥
गान निसान बितान बर, बिरचे बिबिध बिधान।
चारि बिबाह उछाह बड़, कुसल काज कल्यान॥५॥
दाइज पाइ अनेक बिधि, सुत सुतबधुन समेत।
अवधनाथु आए अवध, सकल सुमंगल लेत॥६॥
चौथ चारु उनचास पुर, घर घर मंगलचार।
तुलसिहि सब दिन दाहिने, दसरथ राजकुमार॥७॥
पंचम सर्ग
सप्तक-1
रामनाम कलि कामतरु, राम भगति सुरधेनु।
सगुन सुमंगल मूल जग, गुरु पद पंकज रेनु॥१॥
जलधि पार मानस अगम, रावन पालित लंक।
सोच बिकल कपि भालु सब, दुहुँ दिसि संकट संक॥२॥
जामवंत हनुमान बलु, कहा पचारि पचारि।
राम सुमिरि साहसु करिय, मानिय हिएँ न हारि॥३॥
राम काज लगि जनमु जग, सुनि हरषे हनुमान।
होइ पुत्र फलु सगुन सुभ, राम भगतु बलवान॥४॥
कहत उछाहु बढा़इ कपि, साथी सकल प्रबोधि।
लागत राम प्रसाद मोहिं, गोपद सरिस पयोधि॥५॥
राखि तोषि सबु साथ सुभ, सगुन सुमंगल पाइ।
हरषि सुमन बरषत बिबुध, सगुन सुमंगल होत।
तुलसी प्रभु लंघेउ जलधि, प्रभु प्रताप करि पोत॥७॥
सप्तक-2
राहुमातु माया मलिन, मारी मरुत पूत।
समय सगुन मारग मिलहिं, छल मलीन खल धूत॥१॥
पूजा पाइ मिनाक पहिं, सुरसा कपि संबादु।
मारग अगम सहाय सुभ, होइहि राम प्रसादु॥२॥
लंका लोलुप लंकिनी, काली काल कराल।
काल करालहि कीन्हि बलि, कालरूप कपि काल॥३॥
मसक रूप दसकंध पुर, निसि कपि घर घर देखि।
सीय बिलोकि असोक तर, हरष बिसाद बिसेषि॥४॥
फरकत मंगल अंग सिय, बाम बिलोचन बाहु।
त्रिजटा सुनि कह सगुन फल, प्रिय सँदेस बड़ लाहु॥५॥
सगुन समुझि त्रिजटा कहति, सुनु अबहीं आजु।
मिलिहि राम सेवक कहिहि, कुसल लखनु रघुराजु॥६॥
तुलसी प्रभु गुन गन बरनि, आपनि बात जनाइ।
कुसल खेम सुग्रीव पुर, रामु लखनु दोउ भाइ॥७॥
सप्तक-3
सुरुष जानकी जानि कपि, कहे सकल संकेत।
दीन्हि मुद्रिका लीन्ही सिय, प्रीति प्रतीति समेत॥१॥
पाइ नाथ कर मुद्रिका, सिय हियँ हरषु बिषादु।
प्राननाथ प्रिय सेवकहि, दीन्ह सुआसिरबादु॥२॥
नाथ सपथ पन रोपि कपि, कहत चरन सिरु नाइ।
नाहिं बिलंब जगदंब! अब आइ गए दोउ भाइ॥३॥
समाचार कहि सुनत प्रभु, सानुज सहित सहाय।
आए अब रघुबंस मनि, सोचु परिहरिय माय॥४॥
गए सोच संकट सकल, भए सुदिन जियँ जानु।
कौतुक सागर सेतु करि, आए कृपा निधानु॥५॥
सकुल सदन जमराजपुर, चलन चहत दसकंधु।
काल न देखत काल बस, बीस बिलोचन अंधु॥६॥
आसिष आयसु पाय कपि, सीय चरनु सिर नाइ।
तुलसी रावन बाग फल, खात बराइ बराइ॥७॥
सप्तक-4
सुर सिरोमनि साहसी, सुमति समीर कुमार।
सुमिरत सब सुख संपदा, मुद मंगल दातार॥१॥
सत्रुसमन पदपंकरुह, सुमिरि करहु सब काज।
कुसल खेम कल्यान सुभ, सगुन सुमंगल साज॥२॥
भरत भलाई की अवधि, सील सनेह निधान।
धरम भगति भायप समय, सगुन कहब कल्यान॥३॥
सेवकपाल कृपाल चित, रबि कुल कैरव चंद।
सुमिरि करहु सब काज सुभ, पग पग परमानंद॥४॥
सिय पद सुमिरि सुतीय हित, सगुन सुमंगल जानु।
स्वामि सोहागिल भाग बड़, पुत्र काजु कल्यानु॥५॥
लछिमन पद पंकज सुमिरि, सगुन सुमंगल पाइ।
जय बिभूति कीरति कुसल, अभिमत लाभु अघाइ॥६॥
तुलसी कानन कमल बन, सकल सुमंगल बास।
राम भगत हित सगुन सुभ, सुमिरत तुलसीदास॥७॥
सप्तक-5
रुख निपातत खात फल, रक्षक अक्ष निपाति।
कालरूप बिकराल कपि, सभय निसाचर जाति॥१॥
बनु उजारि जारेउ नगर, कूदि कूदि कपिनाथ।
हाहाकार पुकारि सब, आरत मारत माथ॥२॥
पूँछ बुताइ प्रबोधि सिय, आइ गहे प्रभु पाइ।
खेम कुसल जय जानकी, जय जय जय रघुराइ॥३॥
सुनि प्रमुदित रघुबंसमनि, सानुज सेन समेत।
चले सकल मंगल सगुन, बिजय सिद्धि कहि देत॥४॥
राम पयान निसान नभ, बाजहिं गाजहिं बीर।
सगुन सुमंगल समर जय, कीरति कुसल सरीर॥५॥
कृपासिंधु प्रभु सिंधु सन, मागेउ पंथ न देत।
बिनय न मानहिं जीव जड़, डाटे नवहिं अचेत॥६॥
लाभु लाभु लोवा कहत, छेमकरी कह छेम।
चलत बिभीषन सगुन सुनि, तुलसी पुलकत प्रेम॥७॥
सप्तक-6
पाहि पाहि असरन सरन, प्रनतपाल रघुराज।
दियो तिलक लंकेस कहि, राम गरिब नेवाज॥१॥
लंक असुभ चरचा चलति हाट, बाट घर घाट।
रावन सहित समाज अब, जाइहि बारह बाट॥२॥
ऊकपात दिकादाह दिन, फेकरहिम स्वान सियार।
उदित केतु, गतहेतु महि ,कंपाति बारहि बार॥३॥
राम कृपाँ कपि भालु करि, कौतुक सागर सेतु।
चले पार बरसत बिबुध, सुमन सुमंगल हेतु॥४॥
नीच निसाचर मीचु बस, चले साजि चतुरंग।
प्रभु प्रताप पावक प्रबल, उडि़ उडि़ परत पतंग॥५॥
साजि साजि बाहन चलाहिं, जातुधानु बलवानु।
असगुन असुभ न गगहिं गत, आइ कालु नियरानु॥६॥
लरत भालु कपि सुभट सब, निदरि निसाचर घोर।
सिर पर समरथ राम सो, साहिब तुलसी तोर॥७॥
सप्तक-7
मेघनादु, अतिकाय भट, परे महोदर खेत।
रावन भाइ जगाइ तब कहा प्रसंगु अचेत॥१॥
उठि बिसाल बिकराल बड़, कुंभकरन जमुहान।
लखि सुदेस कपि भालु दल, जनु दुकाल समुहान॥२॥
राम स्याम बारिद सघन, बसन सुदामिनि माल।
बरषत सर हरषत बिबुध, दला दुकालु दयाल॥३॥
राम रावनहीं परसपर, होति रारि रन घोर।
लरत पचारि पचारि भट, समर सोर दुहूँ ओर॥४॥
बीस बाहु दस सीस दलि, खंड खंड तनु कीन्ह।
सुभट सिरोमनि लंकपति, पाछे पाउ न दीन्ह॥५॥
बिबुध बजावत दुंदुभी, हरषत बरषत फूल।
राम बिराजत जीति रन, सुत सेवक अनुकुल॥६॥
लंका थापि बिभीषनहि, बिबुध बसाइ सुबास।
तुलसी जय मंगल कुसल, सुभ पंचम उनचास॥७॥
षष्ठ सर्ग
सप्तक-1
रघुबर आयसु अमरपति, अमिय सींचि कपि भालु।
सकल जिआए सगुन सुभ, सुमरहु राम कृपालु॥१॥
सादर आनी जानकी, हनुमान प्रभु पास।
प्रीति परस्पर समउु सुभ, सगुन सूमंगल बास॥२॥
सीता सपथ प्रसंग सुभ, सीतल भयउ) कृसानु।
नेम प्रेम ब्रत धरम हित, सगुन सुहावनु जानु॥३॥
सनमाने कपि भालु सब, सादर साजि बिमानु।
सीय सहित, सानुज सदल, चले भानु कुल भानु॥४॥
हरषत सुर, बरषत सुमन, सगुन सुमंगल गान।
अवधनाथु गवने अवध, खेम कुसल कल्यान॥५॥
सिंधु, सरोवर, सरित, गिरि, कानन, भूमि बिभाग।
राम दिखावत जानकिहि उमगि उमगि अनुराग॥६॥
तुलसी मंगल सगुन सुभ, कहत जोरि जुग हाथ।
हंस बंस अवतंस जय, जय जय जानकि नाथ॥७॥
सप्तक-2
अवध अनंदित लोग सब, ब्योम बिलोकि बिमानु।
नमहूँ कोकनद कोक मन, मुदित उदित लखि भानु॥१॥
मिले गुरुहि जन परिजनहि, भेंटत भरत सप्रीति।
लषन राम सिय कुसल पुर, आए रिपु रन जीति॥२॥
उदबस अवध अनाथ सब, अंब दसा दुख देखि।
रामु लखनु सीता सकल, बिकल बिषाद बिसेषि॥३॥
मिली मातु हित, गुरु, सनमाने सब लोग।
सगुन समय बिसमय हरष, प्रिय संजोग बियोग॥४॥
अमर अनंदित, मुनि मुदित, मुदित भुवन दस चारि।
घर घर अवध बधावने ,मुदित नगर नर नारि॥५॥
सुदिन सोधि गुरु बेद बिधि, कियो राज अभिषेक।
सगुन सुमंगल सिद्धि सब, दायक दोहा एक॥६॥
भाँति भाँति उपहार लेइ, मिलत जुहारत भूप।
पहिराए सनमानि सब, तुलसी सगुन अनूप॥७॥
सप्तक-3
जय धुनि गान निसान सुर, बरषत सुरतरु फूल।
भए राम राजा अवध, सगुन सुमंगल मूल॥१॥
भालु बिभीषन, कीसपति, पूजे सहित समाज।
भली भाँति सनमानि सब, बिदा किए रघुराज॥२॥
राम राज संतोष सुख, घर बन सकल सुपास।
तरु सुरतरु सुरधेनु महि, अभिमत भोग बिलास॥३॥
राम राज सब काम कहँ, नीक एकही आँक।
सकल सगुन मंगल कुसल, होइहि बारु न बाँक॥४॥
कुंभकरन रावन सरिस, मेघनाद से बीर।
ढहे समूल बिसाल तरु, काल नदी के तीर॥५॥
सकुल सदल रावन सरिस, कवलित काल कराल।
पोच सोच असगुन असुभ, जाय जीव जंजाल॥६॥
अबिचल राज बिभीषनहि दीन्ह राज रघुराज।
अजहुँ बिराजत लंक पुर, तुलसी सहित समाज॥७॥
सप्तक-4
मंजुल मंगल मोद मय, मूरति मारुत पूत।
सकल सिद्धि कर करल तल, सुमिरत रघुबर दुत॥१॥
सगुन समय सुमिरत सुखद, भरत आचरनु चारु।
स्वामि धरम ब्रत पेम हिए, नेम निबाहनिहारु॥२॥
ललित लषन लघु बंधु पद, सुखद सगुन सब काहु।
सुमिरत सुभ कीरति बिजय, भूमि ग्राम गृह लाहु॥३॥
रामचन्द्र मुख चंद्रमा, चित चकोर जब होइ।
राम राज सब काज सुभ, समउच सुहावन सोइ॥४॥
भूमि नंदिनी पद पदुम, सुमिरत सुभ सब काज।
बरषा भलि खेती सुफल, प्रमुदित प्रजा सुराज॥५॥
सेवक, सखा, सुबंधु हित, नाइ लषन पद माथु।
कीजिय प्रीति प्रतीति सुभ, सगुन सुमंगल साथु॥६॥
राम नाम रति, राम गति, राम नाम बिस्वास।
सुमिरत सुभ मंगल कुसल, तुलसी तुलसीदास॥७॥
सप्तक-5
बिप्र एक बालक मृतक, राखेउ राम दुआर।
दंपति बिलपत सोक अति, आरत करत पुकार॥१॥
राम सोच संकोच बस, सचिव बिकल संताप।
बालक मीचु अकाल भइ, राम राज केहि पाप॥२॥
बिबुध बिमल बानी गगन, हेतु प्रजा अपचारु।
राम राज परिनाम भल, कीजिय बेगि बिचारु॥३॥
कोसल पाल कृपाल चित, बालक दीन्ह जिआइ।
सगुन कुसल कल्यान सुभ, रोगी उठै नहाइ॥४॥
बालकु जिया बिलोकि सब, कहत उठा जनु सोइ।
सोच बिमोचन सगुन सुभ, राम कृपाँ भल होइ॥५॥
सिला सुतिया भइम गिरि तरे, मृतक जिए जग जान।
राम अनुग्रहँ सगुन सुभ, सुलभ सकल कल्यान॥६॥
केवट निसिचर बिहँग मृग, किए साधु सनमानि।
तुलसी रघुबन की कृपा, सगुन सुमंमगल खानि॥७॥
सप्तक-6
रामराज राजत सकल, धरम निरत नर नारि।
राग न रोष न दोष दुख, सुलभ पदारथ चारि॥१॥
खग उलूक झगरत गए, अवध जहाँ रघुराउ।
नीक सगुन, बिबरिहि झगर, होइहि धरम निआउ॥२॥
जती-स्वान संबाद सुनि, सगुन कहब जियँ जानि।
हंस बंस अवतंस पुर, बिलग होत पय पानि॥३॥
राम कुचरचा करहिं सब, सीतहि लाइ कलंका।
सदा अभागी लोग जग, कहत सकोचु न संक॥४॥
सती सिरोमनी सीय तजि, राखि लोग रुचि राम।
सहे दुसह दुख सगुन गत, प्रिय बियोगु परिनाम॥५॥
बरन धरम आश्रम धरम, निरत सुखी सब लोग।
राम राज मंगल सगुन, सुफल जाग जप जोग॥६॥
बाजिमेध अगनित किए, दिए दान बहु भाँति।
तुलसी राजा राम जग, सगुन सुमंगल पाँति॥७॥
सप्तक-7
असमंजसु बड़ सगुन गत, सीता राम बियोग।
गवन बिदेस, कलेस कलि, हानि पराभव रोग॥१॥
मानिय सिय अपराध बिनु, प्रभु परिहरि पछितात।
रुचै समाज न राज सुख, मन मलीन कृस गात॥२॥
पुत्र लाभ लवकुस जनम, सगुन सुहावन होइ।
समाचार मंगल कुसल, सुखद सुनावइन कोइ॥३॥
राज-सभाँ लवकुस ललित, किए राम गुन गान।
राज समाज सगुन सुभ, सुजस लाभ सनमान॥४॥
बालमीकि लव कुस सहित, आनी सिय सुनि राम।
हृदयँ हरषु जानब प्रथम, सगुन सोक परिनाम॥५॥
अनरथ असगुन अति असुभ, सीता अवनि प्रबेसु।
समय सोक, संताप, भय, कलह, कलंक कलेसु॥६॥
सुभग सगुन उनचास रस, राम चरित मय चारु।
राम भगत हित सफल सब, तुलसी बिमल बिचारु॥७॥
सप्तम सर्ग
सप्तक-7
राम लखनु सानुज भरत, सुमिरत सुभ सब काज।
साहित प्रीति प्रतीति हित, सगुन सकल सुभ काज॥१॥
सुख मुद मंगल कुमुद बिधु, सगुन सरोरुह भानु।
करहु काज सब सिद्धि सुभ, आनि हिएँ हनुमानु॥२॥
राज काज मनि हेम, हय राम रूप रबि बार।
कहब नीक जय लाभ सुभ, सगुन समय अनुहार॥३॥
रस गोरस खेती सकल, बिप्र काज सुभ साज।
राम अनुग्रहँ सोम दिन, प्रमुदित प्रजा सुराज॥४॥
मंगल मंगल भूमि हित, नृप हित जय संग्राम।
सगुन बिचारब समय सम, करि गुरु चरन प्रनाम॥५॥
बिपुल बनिज बिद्या बसन, बुध बिसेषि गृह काजु।
सगुन सुमंगल कहब सुभ, सुमिरि सीय रघुराजु॥६॥
गुरु प्रसाद मंगल सकल, राम राज सब काज।
जज्ञ, बिबाह उछाह, ब्रत, सुभ तुलसी सब साज॥७॥
सप्तक-2
सुक्र सुमंगल काज सब, कहब सगुन सुभ देखि।
जंत्र मंत्र मनि औषधि, सहसा सिद्धि बिसेषि॥१॥
रामकृपा थिर काज सुभ, सनि-बासर बिस्त्राम।
लोह महिष, गज, बनिज भल, सुख सुपास गृह ग्राम।।२।।
राहु केतु उलटे चलहिं, असुभ अमंगल मूल।
रुंड मुंड पाषंड-प्रिय, असुर अमर प्रतिकूल ।।३॥
समउ राहु रवि-गहनु-मत, राजहिं प्रजहिं कलेस।
सगुन सोच संकट बिकट, कलह कलुष दुःख देस ।।४।।
राहु सोम संगमु विषमु, असगुन उदधि अगाधु।
ईति भीति खल दल प्रबल, सीदहिं भू सुर साधु।।५।।
सात पाँच-ग्रह एक थल, चलहिं बाम गति घाम।
राज बिराजिय समउ गत, सुभहित सुमिरहु राम॥६ ।।
खेती बनि विद्या बनिज, सेवा सिलिप सुकाज।
तुलसी सुरतरु सरिस सब, सुफल राम के राज।।७।।
सप्तक-3
सुघा, साधु, सुरतरु, सुमन, सुफल सुहावनि बात।
तुलसी सीतापति-भगति, सगुन सुमंगल सात।। १।।
सिद्ध समागम संपदा, सदन सरीर सुपास।
सीतानाथ-प्रसाद सुभ, सगुन सुमंगल बास।।२।।
कौसल्या कल्यानमय, मूरति करत प्रनामु।
सगुन सुमंगल काज सुभ, कृपा करहिं सियरामु।।३।।
सुमिरि सुमित्रा नाम जग, जे तिय लेहिं सुनेम।
सबन लषन रिपुदवनु से, पावहिं पति-पद-प्रेम।।४।।
दसरथ नाम सुकामतरु, फलइ सकल कल्यान।
धरनि धाम धन धरम सुख, सुत गुन-रूप-निधान।।५।।
कलह कपट कलि कैकई, सुमिरत काज नसाइ।
हानि मीचु दारिद दुरित, असगुन असुभ अघाइ।।६।।
राम बाम दिसि जानकी, लषनु दाहिनी ओर।
ध्यान सकल कल्यानमय, सुरतरु तुलसी तोर।। ७ ।।
सप्तक-4
मध्यम दिन, मध्यम दसा, मध्यम सकल समाज ।
नाइ माध रमुनाथपद, जानव मध्यम काज ।।१ ।।
हित पर बढ़इ बिरोधु जब, अनहित पर अनुराग ।
रासबिमुख बिधि बामगत, सगुन अघाइ अभाग ।२ ॥
कृपनु देह, पाइय परो, बिन साधन सिधि होइ।
सीतापति सनमुख समुझि, जो कीजिय सुभ सोइ॥३॥
पहिले हित परिनामगत, बीच बीच मल पोच।
सगुन कहब अस रामगति, कहबि समेत संकोच ॥४॥
रमा रमापति गौरि हरु, सीताराम सनेहु।
दंपति-हित, संपति सकल, सगुन सुमंगल गेहु।।५।।
प्रीति प्रतीति न रामपद, बड़ी आस, बड़ लोभ।
नहिं सपनेहुँ संतोष सुख, जहाँ तहाँ मन क्षोभ।।६॥
पय नहाइ, फल खाइ, जपु, रामनाम षट मास।
सगुन सुमंगल सिद्धि सब, करतल तुलसीदास॥७॥
सप्तक-5
बड़ कलेस, कारज अलप, बड़ी आस, लहु लाहु।
उदासीन सीतारमन, समय सरिस निरबाहु।।१।।
दस दिसि दुख दारिद दुरित, दुसह दसा दिन दोष।
फेरे लोचन राम अब, सनमुख साज सरोष।।२।॥
खेती बनिज न, भीख भलि, अफल उपायकदंब।
कुसमय जानब, बाम बिधि, रामनाम अवलंब॥३॥
पुरुषारथ स्वारथ सकल, परमारथ परिनाम।
सुलभ सिद्धि सब सगुन सुभ, सुमिरत सीताराम॥४ ॥
भागु भाग तजि भालथलु, आलस ग्रसे उपाउ।
असुभ अमंगल सगुन सुनि, सरन राम के आउ।।५।।
गइ बरषा करषक बिकल, सूखत सालि सुनाज।
कुसमउ कुसगुन कलह कलि, प्रजहिं कलेसु कुराजा।६।।
तुलसी तुलसी राम सिय, सुमिरहु लषन समेत।
दिन दिन उदउ अनंद अब, सगुन सुमंगल देत।।७।।
सप्तक-6
उदबस अवध नरेस बिनु, देस दुखी नर नारि।
राजभंग कुसमाज बड़, गत ग्रह-चालि बिचारि।।१।।
अवध-प्रवेस अनंदु बड़, सगुन सुमंगल माल।
राम-तिलक-अवसर कहब, सुख संतोष सुकाल।।२।॥
राम-राज-बाधक बिबुध, कहब सगुन सति भाउ।
देखि देवकृत दोष दुख, कीजिय उचित उपाउ।।३।।
मंद मंथरा मोहबस, कुटिल कैकई कीन्ह।
व्याधि बिपति सब देवकृत, समय सगुन कहि दीन्ह॥४॥
रामबिरह दसरथ दुखित, कहति कैकई काकु।
कुसमय जाय उपाय सब, केवल करमबिपाकु।।५।।
लषन राम सिय बसत वन, बिरह-बिकल पुरलोग।
समय सगुन कह करमबस, दुख सुख जोग वियोग।।६॥
तुलसी लाइ रसाल तरु निज कर सींचति सीय।
कृषी सफल भल सगुन सुभ, समउ कहब कमनीय।।७।।
सप्तक-7
सुदिन साँझ पोथी नेवति, पूजि प्रभात सप्रेम।
सगुन बिचारब चारुमति, सादर सत्य सनेम।।१।।
मुनि गनि, दिन गनि, धातु गनि, दोहा देखि बिचारि।
देस, करम, करता, बचन, सगुन समय अनुहारि।।२।।
सगुन सत्य ससि नयन गुन, अवधि अधिक नयवान।
होइ सुफल सुभ जासु जसु, प्रीति प्रतीति प्रमान।।३।।
गुरु गनेस हरु गौरि सिय, रामु लषनु हनुमानु।
तुलसी सादर सुमिरि सब, सगुन बिचारु बिधानु।।४।।
हनूमान सानुज भरत, राम सीय उर आनि।
लषन सुमिरि तुलसी कहत, सगुन बिचारु बखानि।।५।।
जो जेहि काजहिं अनुहरइ, सो दोहा जब होइ।
सगुन समय सब सत्य सब, कहब रामगति गोइ।।६।।
गुन बिस्वास, विचित्र मनि, सगुन मनोहर हारु।
तुलसी रघुबर-भगत-उर, बिलसत बिमल बिचारु ।।७।।