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					तुम्हारी मौत के दो महीने पूरे होने जा रहे हैं 
					और मैं आज भी कह रहा हूँ, 'शुभप्रभात माँ' 
					उस कमरे के दरवाजे को बंद करते हुए जो तुम्हारा हुआ करता था 
					(शुरू शुरू में अँधेरा हुआ करता था, अब वसंत की लंबी शामों से भरा है) 
					 
					'शुभ रात्रि' 
					संभवतया मौत वही है 
					जहाँ वक्त रुक जाया करता है जिससे मौत के बाद की जिंदगी 
					भूत और वर्तमान को एक साथ एक कमरे में बंद देख सके 
					मैं तुम्हें फिर से देखने को तड़प रहा हूँ 
					 
					लेकिन तब हम अपने आप से क्या करेंगे 
					हमारे अधिकतर बंधुजन इधर या उधर घूम रहे हैं 
					एक दूसरे पर अनंत प्रेम की किरणें पसारे 
					जब कि कायनात अलग अलग हो टिमटिमाते रहें? 
					 
					यहाँ ऐसा लगता है कि यह वैसा ही है जैसा 
					हम इसे कहना पसंद करते हैं 
					हम सब को छोड़ देगा, कोई बात नहीं, जरा कोई 
					संकेत तो दो, यदि हो सके तो, एक गीत, या मुस्कान ही सही 
					 
					किसी बीतते स्वप्न में, और जब मैं मरने लगूँ तो 
					मैं मूर्ख... जोर जोर से हाथ हिलाते हुए खड़े रहना 
					दरवाजे भीतर ऐसे बने हैं कि रोशनी से 
					भरपूर रहते हैं सूक्ष्मदर्शी सुरंगों के सिरे 
					आखिरी सनसनाते स्नायु के अंत, फिर मिलेंगे 
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