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					मात्र श्लाघा है तुझे समुद्र कहना,ओ विल्युई समुद्र,
 तू जंगलों का कब्रिस्तान है
 कब्रिस्तान है सुंदरताओं का।
 
 समुद्र है तू जैसे जहर का प्याला
 जैसे पानी का काढ़ा।
 तू हमारे अर्थतंत्र की अराजकता है,
 नियंता है हमारी नियति का।
 
 रबीनिया और चीड़ जैसे हरे मनके
 छिपे पड़े हैं कहीं गुप्त जगहों में,
 जैसे डूब कर मरे आदमी
 नाव के तले में।
 
 पानी के नीचे यह कंजूसी कैसी !
 पलटे खाता यह प्रतिरूप है हमारा,
 पन्ने पड़े हैं वहाँ पानी के नीचे
 डूबी हुई हमारी पुस्तकों के।
 
 पानी के नीचे छिपी पड़ी हैं वे चीजें
 किसी की बेअक्ल मनमर्जी के चलते,
 संभव है वे किम्बरलाइट हों
 या हों शायद हम और तुम।
 
 फिर भी झुकते नहीं हैं पेड़
 अपने अधिकारों की रक्षा करते हुए,
 जड़ें भले ही सड़ रही हों
 पर ऊपर उठ रहे हैं पेड़।
 
 चलती हुई नाव में
 बनते जा रहे हैं छेद
 जैसे प्रकृति
 दिखा रही हो घूँसे
 
					(विल्युई समुद्र : साइबेरिया स्थित जगह जहाँ कैदी भेजे जाते थे) |  
	       
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