बच्चों को गीत गाने कह
	बड़े ऊँघ रहे कुरसी पर
	देश बूढ़ा हो रहा
	हवाएँ न थकने तक
	कुछ बदलने वाला नहीं सभ्यता का
	
	टिफिन बक्से में बासी होने लगे
	रोटी और तली सब्जी
	फेंके हुए पानी में पाउच
	सड़क के किनारे अंकुरने लगे
	
	एक परछाईं बैठी है मेड़ पर, देखो
	शायद दब गई है वह
	उस लंबे सिग्नल टावर तले
	
	हिंसा और मधुमेह के संग तालमेल रख
	बढ़ते जा रहे मंदिर और मिठाई की दुकानें
	
	सड़क के किनारे
	
	मशीन कर रही हैं देखभाल हमारी
	मशीन तैयार कर रही बाल-बच्चे,
	बर्गर और पीजा
	
	मवाद भरे ब्रण को दबाने की तरह
	अब आम बात हो गई
	मारकाट, खींचतान प्रेम कारोबार
	
	देश कराहता है
	मैं बैठा उसके पास
	कब क्या हो जाय
	मुझे सिर्फ एंबुलेंस के नंबर दो
	रख लूँ अभी से सीने की जेब में