दंगों से बेघर हुए परिवार की
	नवेली दुल्हन के
	बहुत सारे स्वप्न
	ध्वस्त हो जाते एक झटके में
	धमाके के बाद
	खंडहर में तब्दील हुए
	आलीशान महल-से।
	लपालप निकलकर
	लील लेती है उसके परिवेश को
	हादसों की लंबी जीभ,
	लपेटकर पकड़ती है
	उसके रंगीले संसार
	और आधी रात को अधूरे चाँद में
	देखी हुई प्रिय की छवि को
	और उस नीरवता को
	जिसे प्रतीक्षा की घड़ियों में
	लगाए रहती वह हृदय से, गले से,
	रोती अक्सर लिपटकर
	और अल्हड़पन में खेलती
	लुका-छिपी जिससे।
	...घर ही दुनिया जिसकी
	एक क्षण पहले
	और अब दुनिया में कोई घर नहीं
	जिसे घर कह सके वह,
	देख सके अधूरा चाँद
	जिसके चौड़े झरोखे से
	कानों पर एक फूल रख
	इठला सके
	अकेले में जिससे।