hindisamay head


अ+ अ-

अन्य

ड्योढ़े दर्जे में

शिवरानी देवी


सन 1929 की बात है। मैं प्रयाग से लौट रही थी। मेरे साथ बन्‍नू था, आप (प्रेमचंद) थे। हम तीनों इंटर क्‍लास से आ रहे थे। चैत का महीना था, अष्‍टमी थी। गाडि़यों में बेहद भीड़ थी। जब बहुत - से देहाती मुसाफिर हमारे डिब्‍बे में घुस आए तो आप बोले - यह ड्योढ़ा दर्जा है, किराया ज्‍यादा लगेगा।

देहाती लोग बोले - क्‍या करें बाबूजी, दो रोज से पड़े हैं।

आप बोले - तुम लोग कहाँ से आ रहे हो, कहाँ जाओगे?

'हम लोग शीतलाजी के दर्शन करने गए थे।' देहातियों ने कहा।

आप बोले - शीतलाजी के दर्शन करने से तुम्‍हें क्‍या मिला? सच बताओ, तुम लोगों का कितना-कितना खर्चा हुआ है?

'एक-एक आदमी के कम-से- कम पंद्रह रुपए।' देहातियों ने कहा।

आप बोले - इसका मतलब कि तुम लोगों ने चार-चार महीने के खाने का गल्‍ला बेंच दिया। इससे अच्‍छा होता कि देवीजी की पूजा तुम घर पर ही कर लेते। देवीजी सब जगह रहती हैं। वहाँ भी तुम पूजा कर सकते थे। देवी-देवता तभी खुश होते हैं जब तुम आराम से रहो।

'क्‍या करें मनौती माने थे। अगर देवीजी के यहाँ न जाते तो नाराज न होतीं!' देहातियों ने कहा।

गाड़ी बेहद भरी थी। साँस लेना कठिन था। गर्मी भी पड़ने लगी थी। अगला स्‍टेशन जब आया तो मैं बोली - इनसे कह दीजिए उतर जायँ। इन उपदेशों का पालन इनसे नहीं होगा।

आप बोले - तो बिना समझाए भी तो काम नहीं चलने का।

मैं बोली - फिर से समझा लेना। मेरा तो दम घुटा जा रहा है।

आप बोले - इन्‍हीं के लिए तो जेल जाती हो, लड़ाई लड़ती हो और इन्‍हीं को हटा रही हो। मुझे तो इन गरीबों पर दया आती है। बेचारे भूखों धर्म के पीछे मर रहे हैं।

मैं बोली - जो बेवकूफी करेगा, वह भूखों न मरेगा तो और क्‍या होगा?

आप बोले - क्‍या करें। सदियों से अंध-विश्‍वास के पीछे पड़े हैं।

मैं बोली - जो खुद ही मरने के लिए तैयार हैं, उन्‍हें कोई जिंदा रख सकता है? इन के ऊपर जबरन कोई कानून लगा दिया जाय तो इनमें समझ आ सकती है।

तब आप बोले - धीरे-धीरे समझ लेंगे। यद्यपि अभी काफी देर है। कोई काम जबरन किया जायगा तो मरने-मारने को तैयार हो जायँगे।

मैं बोली - तो गाड़ी में बैठे-बैठे नहीं सीख जायँगे।

तो फिर बोले - आखिर तब कब समझाया जाय?

मैं बोली - आप इन्‍हीं के लिए तो पोथा-का- पोथा लिख रहे हैं।

'ये उपन्‍यास लेकर थोड़े ही पढ़ते हैं। हाँ, उन उपन्‍यासों के फिल्‍म तैयार कर गाँव-गाँव मुफ्त दिखलाए जाते तो लोग देखते।' - आप बोले।

मैं बोली - पहले आप लिख डालिए। फिर फिल्‍म तैयार करवाइएगा।

हममें ये बातें हो रही थीं कि तब तक रेलवे-पुलिस का आदमी आया। उन सबों को धमकी देने लगा और कहने लगा कि ड्योढ़ा है और किराया लाओ।

उस पुलिसमैन की हरकत देखकर आपको बड़ा क्रोध आया और बोले - तुम लोग आदमी हो या पशु?

'पशु क्‍यों हूँ? तीसरे दर्जे का किराया दिया और ड्योढ़े में आकर बैठे हैं!'

'तीसरे में जगह थी जो उसमें बैठते? किराया तो तुमने ले लिया। यह भी देखा कि गाड़ी में जगह है या नहीं? आदमियों को पशु बना रखा है, तुम लोगों ने। मैं इनके पीछे लड़ूँगा। यह राहजनी कि किराया ले लें और गाड़ी में किसी को भी जगह नहीं। चलो, दो इनको तीसरे दर्जे में जगह और उन आदमियों से कहा कि चलो, मैं तुम्‍हारे साथ चलता हूँ।' और उन आदमियों को लिए हुए पुलिसमैन के साथ आप उतर पड़े।

पुलिसमैन ने उन आदमियों को किसी तरह एक-एक करके भरा। जब आप लौटकर आए तो तुझसे बोले - देखा इन आदमियों को?

मैं बोली - आप क्‍यों लड़ने लगे?

आप बोले - मैं क्‍या कोई भी इस तरह की हरकत नहीं देख सकता। और इस तरह के अत्‍याचार देखकर कुछ न बोले तो मैं कहूँगा कि उसके अंदर गर्मी नहीं है।

(प्रेमचंद की पत्नी शिवरानी देवी की पुस्तक 'प्रेमचंद घर में' से)


End Text   End Text    End Text