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कविता

मुझे मालूम नहीं

वेलिमीर ख्लेब्निकोव

अनुवाद - वरयाम सिंह


मुझे मालूम नहीं, पृथ्‍वी घूमती है या नहीं
यह इस पर निर्भर करता है कि शब्‍द
पंक्ति में ठीक बैठ रहा है या नहीं।
मुझे मालूम नहीं, मेरे दादा या दादी कभी बंदर रहे या नहीं
इसलिए कि मुझे मालूम नहीं
मैं खट्टी चीज पसंद करता हूँ या मीठी।
पर मैं जानता हूँ कि मैं उबलना चाहता हूँ
चाहता हूँ कि कोई साझा कंपन मिला दे
सूर्य को मेरे हाथ की नसों से।
चाहता हूँ कि तारे की किरणें चूमें मेरी आँख की किरणों को
जैसे एक हिरण चूमता है दूसरे को

(ओह, कितनी सुंदर आँखें पाई हैं हिरणों ने !)

चाहता हूँ कि जब काँपने लगूँ यह साझा कंपन
ब्रह्मांड के कंपन से मिल जाए।
चाहता हूँ विश्‍वास करना कि कुछ है जो बचा रहेगा।
जब मेरी प्रिय लड़की बदले में, किसी को दे डालेगी अपनी चोटी
मिसाल के लिए जैसे समय को।

मैं चाहता हूँ कोष्‍ठक से बाहर निकालना गुणक को
जिसने जोड़ रखा है हमें -
मुझे, सूर्य को, आकाश को और हीरों की धूल को।

 


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