मुझे सपनों में दिखता है पुराना दोस्त
जो दुश्मन है अब मेरा
दिखता है पर शत्रु रूप में नहीं
बल्कि उसी पुराने मित्र रूप में।
अब वह मेरे साथ नहीं,
पर हाजिर रहता है हर जगह।
बुरे सपनों के कारण
सिर चकराता है मेरा।
मुझे सपनों में दिखता है पुराना दोस्त,
उपद्रव करता और मानता हुआ अपनी गलतियाँ।
दिखता है उन दीवारों, उन सीढ़ियों पर
जहाँ शैतान की भी टूट सकती हैं टाँगें।
दिखती है उसकी नफरत
मेरे लिए नहीं बल्कि उनके लिए
जो हम दोनों के दुश्मन थे कभी
खुदा चाहे तो वे बने रहेंगे वे दुश्मन और अभी।
मेरे सपनों में आता है पुराना दोस्त
आता है जैसे कभी लौट न आने वाला प्रेम,
खतरे मोल लेते रहे हम दोनों
उलझते रहे हर तरह के लड़ाई-झगड़ों में।
अब दुश्मन हैं हम एक दूसरे के
पर कभी हम धर्म भाई थे
मेरे सपनों में आता है पुराना दोस्त
जैसे सैनिकों के सपनों में झण्डों की फड़फड़ाहट।
उसके बिना मैं-मैं नहीं
न वह-वह है मेरे बिना,
आज यदि हम दुश्मन हैं एक दूसरे के
तो इसलिए भी कि ये दिन भी तो वे दिन नहीं।
मेरे सपनों में आता है पुराना दोस्त
वह वैसा ही मूर्ख है जैसा मैं,
जरूरत नहीं यह बताने की
कौन गलत है और कौन सही।
नये दोस्त भी क्या दोस्त?
उनसे अच्छा तो पुराना दुश्मन है।
दुश्मन तो नया भी हो सकता है
पर दोस्त जब भी होता है
होता है पुराना।
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