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कविता

विद्वान का ढेला

ताद्यूश रोजेविच

अनुवाद - उदय प्रकाश


इस कविता को
सुला देना चाहिए

इसके पहले कि शुरू हो
इसका विद्वान होना
इसके पहले कि
यह कविता शुरू हो

इसके पहले कि
यह तारीफें बटोरे

किसी विस्मरण के पल में
यह जीवित हो

इसके पहले कि
अपनी ओर आते शब्दों और
आँखों की यह अभ्यस्त हो

इसके पहले कि
यह विद्वानों के उपदेश लेना
शुरू करे

गुजरने वाले राहगीर
कतराकर गुजर जाते हैं
कोई भी नहीं उठाता
वह विद्वान ढेला

उस ढेले के भीतर
एक नन्हीं-सी,
सफेद,
नंगी कविता
जलती रहती है

राख हो जाने तक।

अनुवाद - बिल जॉन्सन (मूल पोलिश से अंग्रेजी में)

 


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