है विनोद बिन जीवन भार है विनोद बिन जड़ संसार है विनोद बिन बुद्धि असार है विनोद बिन देह पहार है विनोद से बुद्धि विकास ज्ञान-तंतुओं से परकास शक्ति कवित्व इसी से निकली ईश भावना इस से उजली।
हिंदी समय में वृंदावनलाल वर्मा की रचनाएँ