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कविता

ढोल

मारीना त्स्वेतायेवा

अनुवाद - सरिता शर्मा


मई की इस सुबह झूला झुलाना
कमंद में गर्वीली गर्दन पसंद है क्या
कैदी को तकुआ दो, गड़रिये को शान
मुझे चाहिए बस एक ढोल

नहीं देखे मैंने कितने ही देश
फूल खिल रहे हैं सूरज ठहरा हुआ है
खत्म कर दो अब आसपास के दुख
बजो मेरे ढोल

बजाओ ढोलची सबसे आगे
सब कुछ फरेब है बहरे के लिए
क्यों दिल चुराता है चलते चलते
कैसा अनोखा है यह ढोल

 


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