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वैचारिकी

मेरे सपनों का भारत

मोहनदास करमचंद गांधी

अनुक्रम 71 भारत पाकिस्तान और कश्मीर पीछे     आगे

हमारे देश की बदकिस्‍मती से हिंदुस्‍तान और पाकिस्‍तान नाम के जो दो टुकड़े हुए, उसमें धर्म को ही कारण बनाया गया है। उसके पीछे आर्थिक और दूसरे कारण भले रहे हों, मगर उनकी वजह से यह बँटवारा नहीं हुआ होता। आज हवा में जो जहर फैला हुआ है, वह भी उन्‍हीं सांप्रदायिक कारणों से पैदा हुआ है। धर्म के नाम पर लूट-मार होती है, अधर्म होता है। ऐसा न हुआ होता तो अच्‍छा होता, ऐसा कहना अच्‍छा तो लगता है। मगर इससे हकीकत को बदला नहीं जा सकता।

यह सवाल कई बार पूछा गया है कि दोनों के बीच लडा़ई होने पर क्‍या पाकिस्‍तान के हिंदू हिंदुस्‍तान के हिंदुओं के साथ और हिंदुस्‍तान के मुसलमान पाकिस्‍तान के मुसलमानों के साथ लड़ेंगे? मैं मानता हूँ कि ऊपर बतलाई हुई हालत में वे जरूर लड़ेंगे। मुसलमानों की वफादारी के वचनों पर भरोसा करने में जितना खतरा है, उसके बजाय भरोसा न करने में ज्‍यादा खतरा है। भरोसा करने में भूल हो और खतरे का सामना करना पड़ें, तो बहादुरों के लिए यह मामूली बात होगी।

मौजू ढँग पर इस सवाल को दूसरी तरह से यों रखा जा सकता है कि क्‍या सत्‍य और न्‍याय के खातिर हिंदू हिंदू के खिलाफ और मुसलमान मुसलमान के खिलाफ लड़ेंगाᣛ? इसका जवाब एक उलट-सवाल पूछकर यह दिया जा सकता है कि क्‍यों इतिहास में ऐसे उदाहण नहीं मिलतेᣛ?

इस सवाल को हल करने में सबसे बड़ी उलझन यह है कि सत्‍य की दोनों ही राज्‍यों में उपेक्षा की गई है। मानो सत्‍य की कोई कीमत ही न हो। ऐसी विषम स्थिति में भी हम उम्‍मीद करें कि सत्‍य पर श्रद्धा रखने वाले कुछ लोग हमारे देश में जरूर हैं।

धर्म के नाम पर पाकिस्‍तान कायम हुआ। इसलिए उसको सब तरफ से पाक और साफ रहना चाहिए। गलतियों दोनों तरफ काफी हुईं। मगर क्‍या अब भी हम गलतियाँ करते ही रहें? अगर हम दोनों लड़ेंगे तो दोनों तीसरी ताकत के हाथ में चले जाएँगे। इससे बुरी बात और क्‍या होगी?

अगर (हिंदुस्‍तान और पाकिस्‍तान के बीच) लड़ाई छिड़ जाए, तो पाकिस्‍तान के हिंदू वहाँ पाँचवी कतार वाले नहीं बन सकते। कोई भी इसे बरदाश्‍त नही करेगा। अगर वे पाकिस्‍तान के प्रति वफादार नहीं हैं, तो उनको पाकिस्‍तान छोड़ देना चाहिए। इसी तरह जो मुसलमान पाकिस्‍तान के प्रति वफादार हैं, उन्‍हें हिंदुस्‍तानी संघ में नहीं रहना चाहिए। सरकार का फर्ज है कि वह हिंदुओं और सिक्‍खों के लिए इंसाफ हासिल करे। जनता सरकार से अपना मनचाहा करा सकती है। ... मुसलमान लोग यह कहते सुने जाते हैं कि 'हँस के लिया पाकिस्‍तान, लड़ के लेंगे हिंदुस्‍तान'। ... कुछ मुसलमान सारे हिंदुस्‍तान को मुसलमान बनाने की बात सोच रहे हैं। यह काम लड़ाई के जरिए कभी नहीं हो सकेगा। पाकिस्‍तान हिंदू धर्म को कभी बरबाद नहीं कर सकेगा। सिर्फ हिंदू ही अपने-अपको और अपने धर्म को बरबाद कर सकते हैं। इसी तरह अगर पाकिस्‍तान बरबाद हुआ, तो वह पाकिस्‍तान के मुसलमानों द्वारी ही बरबाद होगा, हिंदुस्‍तान के हिंदुओं द्वारा नहीं।

दोनों राज्‍यों के लिए ठीक-ठीक समझौता करने का आम रास्‍ता यह है कि दोनों राज्‍य साफ दिल से अपना पूरा-पूरा दोष स्‍वीकार करें और समझौता कर लें। अगर दोनों में कोई समझौता न हो सके, तो वे सामान्‍य तरीके से पंच-फैसले का सहारा लें। इससे दूसरा कोई जगंली रास्‍जा लड़ाई का है। ... लेकिन आपसी समझौता या पंच-फैसले के अभाव मे लड़ाई के सिवा कोई चारा नहीं रह जाएगा। उस बीच... जिन मुसलमानों ने अपनी इच्‍छा से पाकिस्‍तान जाने का चुनाव नहीं किया है, उन्‍हें उनके पड़ोसी सुरक्षा या सलामती के पक्‍के विश्‍वास के साथ अपने घरों को लौट आने के लिए कहेंगे। यह काम फौज की मदद से नहीं किया जा सकता। यह तो लोगों के समझदार बनने से ही हो सकता है।

हिंदुस्‍तान से हर एक मुसलमान को भगाने और पाकिस्‍तान से हर एक हिंदू और सिक्‍ख को भगाने का नतीजा यह होगा कि दोनों उपनिवेशों में यह आत्‍म घाती नीति बरती गई, तो उससे पाकिस्‍तान और हिंदुस्‍तान दोनों में इस्‍लाम और हिंदू धर्म का नाश हो जाएगा। भलाई सिर्फ भलाई से ही पैदा होती है। प्‍यार से प्‍यार पैदा होता है। जहाँ तक बदला लेने की बात है, इंसान का यही शोभा देता है कि वह बुराई करने वाले को भगवान के हाथ में छोड़ दें।

हिंदुस्‍तान का, हिंदू धर्म का, सिक्‍ख धर्म का और इस्‍लाम का बेबस बनकर नाश होते देखने के बनिस्‍बत मृत्‍यु मेरे लिए सुंदर रिहाई होगी। अगर पाकिस्‍तान में दुनिया के सब धर्मों के लोगों को समान हक न मिले, उनकी जान और माल सुरक्षित न रहे और यूनियन भी पाकिस्‍तान की नकल करे, तो दोनों का नाश निश्चित है। उस हालत में इस्‍लाम का तो हिंदुस्‍तान और पाकिस्‍तान में ही नाश होगा-बाकि दुनिया में नहीं; मगर हिंदू धर्म और सिक्‍ख धर्म तो हिंदुस्‍तान के बाहर हैं ही नहीं।

बहुमत वाले लोग अगर अल्‍पमतवालों को इस डर से मार डालें या यूनियन से निकाल दें कि वे सब दगाबाज साबित होंगे, तो यह बहुमत वालों की बुजदिली होगी। अल्‍पमत के हकोंका सावधानी से खयाल रखना ही बहुमत वालों को शोभा देता है। जो बहुमत वालें अल्‍पमत वालों की परवाह नहीं करते वे हँसी के पात्र बनते है। पक्‍का आत्‍म-विश्‍वास और अपने नामधारी या सच्‍चे विरोधी में बहादूरी भरा विश्‍वास ही बहुमत वालों का सच्‍चा बचाव है।

जो यह महसूस करते हैं कि पाकिस्‍तान से उन्‍हें निकाल दिया गया है, उन्‍हें यह जानना चाहिए कि वे सारे हिंदुस्‍तान के नागरिक हैं, न कि सिर्फ पंजाब, सरहदी सूबे या सिंध के। शर्म यह है कि वे जहाँ कहीं जाए वहाँ के रहने वालों में दूध में शक्‍कर की तरह घुल-मिल जाएँ। उन्‍हें मेहनती बनना और अपने व्‍यवहार में ईमानदार रहना चाहिए। उन्‍हें यह महसूस करना चाहिए कि वे हिंदुस्‍तान की सेवा करने और उसे यश को बढ़ाने के लिए पैदा हुए हैं, न कि उसके नाम पर कालिख पोतने या उसे दुनिया की आँखों में गिराने के लिए। उन्‍हें अपना समय जुआ खेलने, शराब पीने या आपसी लड़ाई-झगड़े में बरबाद नहीं करचा चाहिए। गलती करना चाहिए। गलती करना इंसान का स्‍वाभाव है। लेकिन इंसान को गलतियों से सबक सीखने और दुबारा गलती न करने की ताकत भी दी गई है। अगर शरणार्थी मेरी सलाह मानेंगे, तो वह जहाँ कहीं भी जाएँगे वहाँ फायदेमंद साबित होंगे और हर सूबे के लोग खुले दिल से उनका स्‍वागत करेंगे।

अगर पाकिस्‍तान पूरी तरह मुस्लिम राज्‍य हो जाए और हिंदुस्‍तानी संघ पूरी तरह हिंदू और सिक्‍ख राज्‍य बन जाए और दोनों तरफ अल्‍पमत वालों को कोई हक न दिए जाएँ, तो दोनों राज्‍य बरबाद हो जाएँगे।

क्‍या कायदे आजम ने यह नहीं कहा है कि पाकिस्‍तान मजहबी राज्‍य नहीं है और उसमें धर्म को कानून का रूप नहीं दिया जाएगा? लेकिन बदकिस्‍मती से यह बिलकुल सच है कि इस दावे को हमेशा अमल मे सच साबित नहीं किया जाता। क्‍या हिंदुस्‍तानी संघ मजहबी राज्‍य बनेगा और क्‍या हिंदू धर्म के उसूल गैर-हिंदुओं पर लादे जाएँगे?... ऐसा हुआ तो हिंदुस्‍तानी संघ आशा और उजले भविष्‍य का देश नहीं रह जाएगा। तब वह ऐसा देश नहीं रह जाएगा, जिसकी तरफ सारी एशियाई और अफ्रीकी जातियाँ ही नहीं, बल्कि सारी दुनिया आशाभरी नजर से देखतती है। दुनिया यूनियन या पाकिस्‍तान के रूप में हिंदुस्‍तान से ओछेपन और धार्मिक पागलपन की उम्‍मीद नहीं करती। वह हिंदुस्‍तान से बड़प्‍पन, भलाई और उदारता की आशा करती है, जिससे सारी दुनिया सबक ले सके और आज के फैले हुए अंधेरे में प्रकाश पा सके।

काश्‍मीर

न तो काश्‍मीर के महाराजा साहब और न हैदराबाद के निजाम को अपनी प्रजा की सम्‍मति के बगैर किसी भी उपनिवेश में शामिल होने का अधिकार है। जहाँ तक मैं जानता हूँ, यह बात कश्‍मीर के मामले में साफ कर दी गई थी। अगर अकेले महाराजा संघ में शामिल होना चाहते, तो मैं उनके ऐसे काम का कभी समर्थन नहीं कर सकता था। संघ-सरकार काश्‍मीर को थोड़े समय के लिए संघ में शामिल करने पर सिर्फ इसलिए राजी हुई कि महाराजा और काश्‍मीर व जम्‍मू की जनता की नुमाइन्‍दगी करने वाले शेख अब्‍दुल्‍ला दोनों यह बात चाहते थे। शेख अब्‍दुल्‍ला इसलिए सामने आए कि वे काश्‍मीर और जम्‍मू के सिर्फ मुसलमानों के ही नहीं, बल्कि सारी जनता के नुमाइंदे होने का दावा करते हैं।

मैंने यह कानाफूंसी सुनी है कि कश्‍मीर को दो हिस्‍सों में बाँटा जा सकता है। इनमें से जम्‍मू हिंदुओं के हिस्‍से आएगा और काश्‍मीर मुसलमानों के हिस्‍से। मैं ऐसी बँटी हुई वफादारी की और हिंदुस्‍तान की रियासतों के कई हिस्‍सों में बँटने की कल्‍पना नहीं कर सकता। इसलिए मुझे उम्‍मीद है कि सारा हिंदुस्‍तान मसझदारी से काम लेगा और कम-से-कम उन लाखों हिंदुस्‍तानियों के लिए, जो लाचार शरणार्थीं बनने के लिए बाध्‍य हुए हैं, तुरंत ही इस गंदी हालत को टाला जाएगा।


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