हिंदी साहित्य के किसी भी पाठक के लिए अज्ञेय का नाम अज्ञेय नहीं हैं। अति संवेदनशील और सूक्ष्म सौंदर्यपरक दृष्टि के कारण साहित्य में अज्ञेय का विशिष्ट स्थान है। किंतु यदि किसी लेखक के नाम के साथ विधा विशेष को जोड़ दिया जाए तो उसकी पहचान विधा-विशेष तक ही सीमित रह जाती है अन्य विधाओं में उसके योगदान की चर्चा पूरे संदर्भों के साथ नहीं होती। जैसे कि उनके योगदान की चर्चा कविता में बहुत विस्तार के साथ हुई है। उपन्यास-विधा में उनका नाम पूरे सम्मान के साथ लिया जाता है।
हिंदी कहानी साहित्य को पढ़ते-पढ़ाते हम यह महसूस करते हैं कि कहानीकार के रूप में अज्ञेय के मूल्यांकन में कहीं कुछ छूट गया है। प्रायः उनकी मनोवैज्ञानिक कहानियों को ही उनके कहानीकार व्यक्तित्व का प्रमाण माना गया है, जबकि सूक्ष्म सौंदर्य बोध और व्यक्ति सत्ता को सर्वोपरि मानने वाले इस लेखक ने अपने आरंभिक काल में व्यक्तित्व समर्पण की अनेकों कहानियाँ लिखी हैं। अज्ञेय की सरसठ (67) कहानीयों में से बाईस कहानियाँ कथात्मक शैली में लिखी गई है।
अज्ञेय ने देश-विभाजन से संबंधित कहानियाँ भी लिखी हैं। वास्तव में देश-विभाजन की घटना किसी भी देश के सांस्कृतिक, पारिवारिक और सामाजिक मूल्यों पर प्रहार करने वाली घटना होती है और इसी कारण अज्ञेय जैसे संवेदनशील व्यक्ति का इस समय की घटनाओं से विक्षुब्ध हो उठना स्वाभाविक था। इस विषय पर - लेटर-बक्स, शरणदाता, मुस्लिम हिंदी भाई-भाई, रमंते तत्र देवता और बदला कहानियाँ लिखी है। अज्ञेय के ही शब्द में - 'ये कहानियाँ आहत मानवीय संवेदनशीलता की और मानव-मूल्यों के आग्रह की कहानियाँ हैं, और मैं अभी तक आश्वस्त हूँ कि जिन मूल्यों पर मैंने बल दिया था, जिनके घर्षण के विरुद्ध आक्रोश व्यक्त करना चाहा था, वे सही मूल्य थे, और उनकी प्रतिष्ठा आज भी हमें उन्नतर बना सकती है। निःसंदेह मेरा यह मानवतावाद एक प्रकार का आदर्शवाद है, जिसके लिए मैं लज्जित नहीं हूँ, न दीन-हीन होने का कोई कारण देखता हूँ।
अज्ञेय ने इन विषयों के अतिरिक्त रोमांस और यथार्थ विषयक, भगिनी प्रेम विषयक, काम और प्रेम विषयक अनेकों कहानियाँ लिखी हैं।
मनुष्य के व्यक्तित्व निर्माण में परिवार का बहुत बड़ा हाथ होता है। विद्रोह या क्रांति की भावना का मूल स्रोत युवकों में प्रायः घर की परिस्थितियाँ होती हैं। यही कारण है कि अज्ञेय के कथा-साहित्य में क्रांतिकारियों के जीवन को महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। अज्ञेय मूलतः स्वातंत्र्य के खोजी रहे हैं। स्वातंत्र्य के मार्ग पर अग्रसर होते हुए उन्होंने विविध प्रकार के बंधनों से विद्रोह किया है। उसमें विद्रोह की भावना जन्मजात है। इस विद्रोह की भावना को परिस्थितियों ने प्रेरित किया है और गति दी है। अज्ञेय अपने कॉलेज जीवन में - 'नौजवान भारत सभा' के सदस्य बने। 1930 में वे क्रांतिकारी गतिविधियों में सम्मिलित होने के कारण 'मुहम्मद बख्श' के रूप में कैद कर लिए गए और चार वर्ष तक विभिन्न जेलों के कैद रहे। जेल जीवन काल में उन्होंने क्रांतिकारी जीवन से संबंधित अनेक कहानियाँ लिखीं, जिनमें जोश ही जोश था। जेल जीवन में अज्ञेय की क्रांति भावना का जोश संतुलित होने लगा, भावनात्मक विस्फोट कम होने लगा और वैचारिक स्तर बढ़ने लगा। विवेक से बढ़कर, क्षमा, पगोड़ा वृक्ष, प्राणशत्रु आदि कहानियों में इसी वैचारिकता का प्रवाह है।
हिंदी में ऐसी कहानियाँ बहुत कम हैं। अज्ञेय ने इस जीवन से संबंधित कुछ कहानियाँ लिखी हैं। हिंदी के वरिष्ठ कहानीकारों में एकमात्र अज्ञेय ही ऐसे व्यक्ति हैं, जिन्हें सैनिक जीवन का प्रत्यक्ष अनुभव रहा हैं। अपने सैनिक जीवन के सेना एवं युद्ध विषयक अनुभवों को उन्होंने 'मेजर चौधरी की वापसी और 'नगा पर्वत की एक घटना' नामक कहानियों में व्यक्त किया है। युद्ध के अवसर पर मनुष्य के गुण-दोष चरम रूप में प्रकट होते हैं। अज्ञेय ने प्रसंगतः युद्ध के गुण-दोषों पर भी विचार किया है।
यायावरी अज्ञेय के व्यक्तित्व का एक अभिन्न अंग है। प्रकृति प्रेम के कारण भी अज्ञेय में यायावरी की प्रवृत्ति बहुत अधिक थी। अज्ञेय का व्यक्तित्व बहुआयामी व्यक्तित्व है। वे साहित्यकार के रूप में कवि, उपन्यासकार, कहानीकार एक साथ हैं। केवल मौलिक साहित्य सृजन का ही कार्य उन्होंने नहीं किया, अपितु अनुवाद का कार्य भी किया है। इसके अतिरिक्त संपादक के रूप में उनका स्थान अमर है। पत्र-पत्रिकाओं के संपादक के रूप में उनका स्थान अमर है। पत्र-पत्रिकाओं के संपादन की दृष्टि से भी उनका महत्वपूर्ण योगदान है, विशेष रूप से 'प्रतीक' और 'नया प्रतीक' का संपादन उन्होंने घाटा सहकर भी किया। आयोजन पक्ष की दृष्टि से भी उनका व्यक्तित्व समृद्ध है। उन्होंने अनेक प्रकार की व्याख्यान मालाओं, सांस्कृतिक यात्राओं, साहित्य संबंधी शिखर बैठकों का आयोजन सफलतापूर्वक आयोजित किया था। इतना ही नहीं मेरठ में 'किसान मोर्चा' आयोजित करने में अग्रणी बनकर भाग लिया था।
1976 में उन्होंने बिहार के सूखाग्रस्त क्षेत्रों का दौरा किया था। वे जोधपुर विश्वविद्यालय में तुलनात्मक साहित्य के प्राध्यापक एवं अमेरिका के कैलीफोर्निया और बर्कले विश्वविद्यालयों में भारतीय साहित्य का अध्यापन कर चुके थे। उन्होंने 'ज्ञानपीठ' पुरस्कार की राशि में अपनी ओर से उतनी ही राशि डालकर 'वत्सलनिधि' की योजना तैयार की थी, जिसे विविध प्रकार के साहित्यिक आयोजनों के लिए खर्च किया जाता है।
सच्चिदानंद हीरानंद वात्सायन का साहित्य अनेक प्रकार के विवादों से घिरा रहा है। लेकिन आज भी अज्ञेय का व्यक्तित्व, कृतित्व, कृतित्व की विविधा, जीवन शैली, चिंतन, भाषा-शैली शोधार्थियों के लिए शोध का रुचिकर विषय है।
अज्ञेय साहित्य अकादमी, ज्ञानपीठ तथा अन्य अनेक प्रतिष्ठित पुरस्कार पुसस्कारों से भी सम्मानित किए गए। वे अपने बहुआयामी व्यक्तित्व के कारण विशिष्ट साहित्यकारों की श्रेणी में रखे जाते है।
उन्होंने जीवन, मरण, बुढ़ापा, जवानी, प्यार, रोमांस सभी को प्यार से स्वीकार किया और हमें अपनी तमाम स्मृतियाँ सहेजने के लिए देकर इस जीवन से मुक्त हो गए।
उन्हीं के शब्दों में -
साँस का पुतला हूँ मैं
जरा से बँधा हूँ मैं
मरण को दे दिया गया हूँ
पर जो,
एक प्यार है न,
उसी के द्वारा
जीवन मुक्त
मैं किया गया हूँ।
संदर्भ ग्रंथ -
1. रामस्वरूप चतुर्वेदी - अज्ञेय और आधुनिक रचना की समस्याएँ
2. चंद्रभानु सोनवणे / सूर्यनारायण रणसुभे - कहानीकार अज्ञेय, संदर्भ और प्रकृति
3. अज्ञेय - लौटती पगडंडियाँ
4. अज्ञेय - अज्ञेय की सर्जना
5. अज्ञेय - आधुनिक हिंदी साहित्य
6. अज्ञेय - सर्जना और संदर्भ