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लेख

प्रौद्योगिकी सुलभ है हिंदी

जगदीप सिंह दाँगी


पीपुल लिंग्विस्टिक सर्वे के अनुसार भारत में 780 भाषाएँ बोली जाती हैं तथा भारतीय संविधान में मान्यता प्राप्त भाषाओं की संख्या 22 है। हिंदी संवैधानिक रूप से भारत की राजभाषा होने के साथ-साथ देश में सबसे अधिक बोली और समझी जाने वाली भाषा है। चीनी भाषा के बाद यह विश्व में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। इसकी लिपि देवनागरी है। वर्तमान में हमारे देश की कुल जनसंख्या में से 65 प्रतिशत लोग हिंदी भाषा को जानने व समझने वाले हैं। मात्र 5 प्रतिशत लोग अँग्रेजी भाषा को जानते व समझते हैं; शेष 30 प्रतिशत में गैर हिंदी और अँग्रेजी भाषी लोग यानी के तमिल, तेलुगू आदि भाषा को जानने वाले हैं।

आज का युग सूचना प्रौद्योगिकी का युग है और सूचना प्रौद्योगिकी का मूल वाहक 'कंप्यूटर' है। कंप्यूटर के बिना सूचना प्रौद्योगिकी के किसी भी रूप की कल्पना अधूरी ही होगी। यह सूचना प्रौद्योगिकी की ही देन है कि आज समूचे विश्व में सूचनाओं का संकलन और उनका आदान-प्रदान अत्यंत सुगम हो पाया है। परंतु हमारे देश भारत के अधिकांश भागों में हिंदी बोली, पढ़ी तथा समझी जाती है वहाँ कंप्यूटर पर अँग्रेजी भाषा की वजह से उसका समग्र उपयोग एक अड़चन है। चूँकि कंप्यूटर के उपयोग में दिक्कत अँग्रेजी भाषा की वजह से आती है न कि तकनीक की वजह से। परंतु आज भी अधिकांशतः कंप्यूटर की तकनीक और उसके सॉफ्टवेयर अँग्रेजी भाषा में ही उपलब्ध हैं, जो कि राष्ट्र की समग्र उन्नति में बाधक है। स्पष्ट है कि : "कोई भी राष्ट्र अपनी 'मातृ-भाषा' को पूर्णतः सार्वभौमिक बनाए बिना उन्नति नहीं कर सकता है। यदि तकनीकी को आम नागरिक तक जन उपयोगी बनाना है; तो उसे आम जन की अपनी निज भाषा में ही विकसित करना आवश्यक होगा।" हम देख सकते हैं कि जिन राष्ट्रों में तकनीकी एवं संबंधित सॉफ्टवेयर विकास कार्य उनकी ही अपनी भाषा में हुआ है आज वही राष्ट्र हम से कहीं ज्यादा सफल और संपन्न हैं। चीन, जापान आदि राष्ट्र इसके उदाहरण हैं।

कोई भी 'भाषा' सूचना प्रौद्योगिकी के लिए कच्चा माल की तरह ही होती है और इसका उपयोग ज्ञान प्रसार के अलावा औद्योगिक मुनाफे के लिए भी किया जा सकता है। चूँकि सूचना प्रौद्योगिकी आज के दौर की मुख्य प्रौद्योगिकी है और इसके दायरे में अधिकाधिक भारतीय भाषाओं का उपयोग किया जाए तो इस क्षेत्र में अधिक मुनाफा भी कमाया जा सकता है। आज यही समय है कि विभिन्न भारतीय भाषाओं में कंप्यूटिंग का विस्तार कर ज्यादा से ज्यादा ज्ञान का विस्तार किया जा सकता है और साथ ही वाणिज्यिक लाभ के जरिए देश के सकल घरेलू उत्पाद में योगदान भी किया जा सकता है। यदि हमने ऐसा नहीं किया तो यही काम बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ करेंगी और बेहद मुनाफा कमाएँगी जैसा कि अभी तक कमाती भी आई हैं। अतः 'हिंदी' कंप्यूटर प्रौद्योगिकी के लिए बाधा नहीं बल्कि खूबी होना चाहिए।

प्रारंभ में कंप्यूटर एवं उस पर आधारित तकनीकी विदेश से आई थी इसलिए उस पर काम-काज अँग्रेजी भाषा पर ही आधारित थे और हमें अँग्रेजी भाषा सीखना जरूरी हो गया था। लेकिन ऐसा भी नहीं है कि सॉफ्टवेयर सिर्फ अँग्रेजी भाषा के ही होते हैं! चूँकि कंप्यूटर का प्राथमिक उद्गम व विकास उन राष्ट्रों से हुआ जहाँ की प्रचलित लिपि रोमन और भाषा अँग्रेजी थी। इसलिए उन तमाम वैज्ञानिकों ने जिन्होंने वहाँ पर कंप्यूटर सॉफ्टवेयर का विकास कार्य किया उनकी अपनी लिपि रोमन (अँग्रेजी भाषा) में ही किया। इसके बाद हमारे देश में कंप्यूटर और सॉफ्टवेयर का आयात भी उन्हीं राष्ट्रों से किया गया; फलस्वरूप परिणाम यह हुआ कि हमें कंप्यूटर एवं सॉफ्टवेयर उन्हीं राष्ट्रों की भाषा (अँग्रेजी) एवं लिपि (रोमन) में ही उपलब्ध हुए; जिसे देश के उच्च शिक्षित वर्ग यानी के अँग्रेजी भाषा के जानकार लोगों ने बगैर किसी भाषाई कठिनाई के उपयोग में लाया, लेकिन उस समय का आम हिंदी भाषी उसके उपयोग से बहुत दूर रहा। और अँग्रेजी भाषा की वजह से कंप्यूटर हिंदी भाषियों को कठिन लगने लगा। बात सीधी सी है यदि यही कंप्यूटर एवं सॉफ्टवेयर का प्रारंभिक विकास कार्य हमारे अपने देश में हुआ होता तो निश्चित ही वह हमारी अपनी लिपि देवनागरी एवं हिंदी भाषा में ही हुआ होता और आज देश में कंप्यूटर उपयोगकर्ताओं की तादाद भी बहुत अधिक होती!

क्योंकि कंप्यूटर तंत्र के संदर्भ में सूचना प्रौद्योगिकी का विकास सैद्धांतिक रूप से लिपि या भाषा-परक नहीं है। इसलिए रोमन लिपि (अँग्रेजी भाषा) में जो संभव है, वह देवनागरी लिपि (हिंदी भाषा) में भी संभव था और संभव है। क्योंकि "कंप्यूटर सिर्फ बाइनरी (अप्राकृतिक भाषा अर्थात मशीनी-भाषा) समझता है यानी 0 और 1 की द्वि-अंकीय भाषा अर्थात किसी भी भाषा को कंप्यूटर अपने तरीके से समझता है, लिहाजा कंप्यूटर पर जो काम अँग्रेजी या किसी अन्य दूसरी भाषा में हो सकता है, वही काम हिंदी में भी बखूबी हो सकता है। उसे बस हिंदी में प्रोग्राम किए जाने की जरूरत होती है।"

हिंदी भाषा का व्याकरण एवं इसकी लिपि (देवनागरी) का अपना वैज्ञानिक आधार है इसलिए देवनागरी लिपि कंप्यूटर तंत्र की प्रक्रिया के लिए पूर्ण रूप से अनुकूल है। देवनागरी लिपि को कंप्यूटेशनल भाषा में बदलने की अपार संभावनाएँ हैं तथा इसके माध्यम से विलुप्त होती अन्य भारतीय भाषाओं का भी संरक्षण संभव है। इस लिपि में विश्व की किसी भी भाषा एवं ध्वनि का लिप्याँकन आसानी से किया जा सकता है। देवनागरी में पर्याप्त वर्णों (52 वर्ण) की उपलब्धता है जो कि रोमन वर्णों (26 वर्ण) से संख्या में दोगुने हैं। देवनागरी में पर्याप्त वर्णों की उपलब्धता ही इसे श्रेष्ठ लिपि बनाती है। उदाहरण के लिए रोमन में हम हिंदी के वर्ण 'ट' एवं 'त' के लिए 't' वर्ण, 'थ' एवं 'ठ' के लिए 'th' वर्णों आदि का प्रयोग करते हैं; तो इस स्थिति में हम रोमन वर्ण 't' से देवनागरी वर्ण की सही ध्वनि 'ट' है या कि 'त' है, इसी प्रकार रोमन वर्णों 'th' से देवनागरी वर्ण की सही ध्वनि 'थ' है या कि 'ठ' है आदि के लिए प्राय: भ्रम की स्थिति में रहते हैं। परंतु इस प्रकार के भ्रम की कोई भी गुंजाइश देवनागरी लिपि के प्रयोग में नहीं है। इसलिए यह लिपि अन्य सभी लिपियों से अधिक वैज्ञानिक एवं श्रेष्ठ है यह विश्व लिपि के रूप में भी स्थापित होने की अपनी क्षमता रखती है।

इन्हीं खूबियों के कारण कंप्यूटर पर हिंदी भाषा में सॉफ्टवेयर का विकास कार्य अधिक होने लगा है। और विभिन्न विषयों की जानकारी वेबसाइटों पर अपनी हिंदी भाषा में देवनागरी लिपि में प्राप्त होने लगी है। परंतु प्रारंभ में हिंदी के अनेक प्रकार के फ़ॉन्ट होने की वजह से हिंदी के प्रयोग में जैसे कि ई-मेल, इंटरनेट सर्चिंग आदि में अड़चन होती थी लेकिन यूनिकोड फ़ॉन्टों के विकास से फ़ॉन्टों की समस्या दूर हुई। कंप्यूटर सॉफ्टवेयर कार्यक्रम के अंतर्गत यूनिकोड प्रत्येक वर्ण के लिए एक विशेष कूट संख्या प्रदान करता है। चाहे कोई भी प्लेटफ़ॉर्म हो (कंप्यूटर ऑपरेटिंग सिस्टम), चाहे कोई भी प्रोग्राम हो (कंप्यूटर सॉफ्टवेयर), चाहे कोई भी भाषा हो (प्राकृतिक भाषा) । यूनिकोड फ़ॉन्ट की मदद से हम आसानी से सॉफ्टवेयर उपकरणों का इंटरफेस, कमांड्स, निर्देश, संकेत, संदेश, पाठ आदि अपनी निज भाषा हिंदी में विकसित कर सकते हैं। और इसी वजह से आज विश्वस्तर के अनेक सॉफ्टवेयर हिंदी एवं अन्य भारतीय भाषाओं में विकसित होने लगे हैं। जिससे वर्तमान में मोबाइल, टी.वी., टैबलेट आदि का उपयोग हिंदी भाषा में होने लगा है। और आज करोड़ों उपयोगकर्ता सिर्फ इसलिए बढ़े हैं क्योंकि इन उपकरणों के सॉफ्टवेयर हिंदी भाषा (देवनागरी-लिपि) में बनने लगे हैं। और इससे हिंदी भाषा को विस्तार मिला है और कंप्यूटर पर हिंदी स्थापित होने से हिंदी के ब्लॉगों की संख्या बढ़ी जिससे विश्व के अनेक हिस्सों से हिंदी में ब्लॉगों का आदान प्रदान होने लगा और विश्व में एक नया हिंदी भाषी समुदाय पनपने लगा। इसके साथ-साथ ही सोशल मीडिया पर भी हिंदी का जादू छाने लगा। कंप्यूटर के हिंदीकरण होने से संसार की अनेक बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ अपने उत्पादों के विज्ञापन हिंदी भाषा में जारी करने लगीं और विश्व के अनेक व्यवसायी व्यक्तियों को हिंदी जानने और सीखने की आवश्यकता पड़ने लगी। हमारी हिंदी फिल्मों की लोकप्रियता ने भी हिंदी के प्रचार प्रसार में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। इससे विदेशियों में भी हिंदी सीखने की रुचि बढ़ी है।

फिर भी यह आवश्यक है कि हम हिंदी एवं उस पर आधारित अन्य क्षेत्रीय भाषाओं में प्रौद्योगिकी उत्पादन के लिए अभियान चलाएँ। तकनीकी क्षेत्र बड़ा विशाल है, इसकी किसी भी एक शाखा से जुड़कर इस विशाल वट-वृक्ष को मापा जा सकता है। आज सूक्ष्मतम जानकारी से लेकर विशाल जानकारी इंटरनेट के माध्यम से कंप्यूटर पर उपलब्ध है। जिसका उपयोग कर व्यक्ति इसका लाभ उठाने लालायित है, पर इसकी सबसे बड़ी बाधा है भाषा की समझ। आज इंटरनेट की लगभग 80 प्रतिशत सामग्री अँग्रेजी में ही उपलब्ध है। हमारे देश में हजारों लाखों नागरिक हैं जो कि सफल व्यापारी, दुकानदार, किसान, कारीगर (मिस्त्री), शिक्षक आदि हैं; यह सभी अपने-अपने कार्य क्षेत्र में कुशल एवं विद्वान हैं, लेकिन यह जरूरी नहीं है कि यह सब अँग्रेजी भाषा के जानकार भी हों। ग्रामीण परिवेश में रहने वाले कृषक, कारीगर जो कि इस देश की उन्नति का मूल आधार हैं, यदि इन्हें और अच्छी तकनीकी की जानकारी अपनी ही निज भाषा हिंदी में मिले तो सोने पे सुहागा होगा! अतः हमें हिंदी के और अधिक प्रचार प्रसार एवं विस्तार के लिए ज्यादा से ज्यादा हिंदी ई-सामग्री को इंटरनेट पर स्थापित करने हेतु कार्य करने की जरूरत है। ताकि इंटरनेट पर हिंदी सामग्री का प्रतिशत और बढ़ सके तथा तकनीकी के क्षेत्र में हिंदी एक समृद्ध विशाल वट वृक्ष के रूप में परिवर्तित होते हुए विश्व-पटल पर पूर्णरूप से स्थापित हो सके।


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