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क़ैफ़ी
आज़मी
ये ज़मीं तब भी निगल लेने पे आमादा थी
पाँव जब टूटती
शाखों से उतारे हमने ।
आँधियाँ तोड़ लिया करती थी
शम्ओं
की लवें
अपनी नस-नस में लिये
मेहनत-ए-पैहम की थकन आज
की रात
बहुत गरम हवा चलती है
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