हिंदी का रचना संसार | ||||||||||||||||||||||||||
मुखपृष्ठ | उपन्यास | कहानी | कविता | नाटक | आलोचना | विविध | भक्ति काल | हिंदुस्तानी की परंपरा | विभाजन की कहानियाँ | अनुवाद | ई-पुस्तकें | छवि संग्रह | हमारे रचनाकार | हिंदी अभिलेख | खोज | संपर्क |
|
||||||||||||||||||||||||||
होली
का
मज़ाक
''बीबी
जी, आप आवेंगी कि हम चाय बना दें!''
किलसिया ने ऊपर की मंज़िल की रसोई से पुकारा। ठीक ही कह रही है लड़की, मालकिन ने सोचा। घर मेहमानों से भरा था, जैसे शादी-ब्याह के समय का जमाव हो। चीफ़ इंजीनियर खोसला साहब के रिटायर होने में चार महीने ही शेष थे। तीन वर्ष की एक्सटेंशन भी समाप्त हो रही थी। पिछले वर्ष बड़े लड़के और लड़की के ब्याह कर दिए थे। रिटायर होकर तो पेंशन पर ही निर्वाह करना था। जो काम अब हज़ार में हो जाता, रिटायर होने पर उस पर तीन हज़ार लगते। रिटायर होकर इतनी बड़ी, तेरह कमरे की हवेली भी नहीं रख सकते थे। पहली होली पर लड़की जमाई के साथ आई थी। बड़ा लड़का आनंद सात दिन की छुट्टी लेकर आया था इसलिए बहू को भी बुला लिया था। आनंद की छोटी साली भी बहन के साथ लखनऊ की सैर के लिए आ गई थी। इंजीनियर साहब के छोटे भाई गोंडा जिले में किसी शुगर मिल में इंजीनियर थे। मई में उनकी लड़की का ब्याह था। वे पत्नी, साली और लड़की के साथ दहेज ख़रीदने के लिए लखनऊ आए हुए थे। खूब जमाव था।
मालकिन
ऊपर पहुँची। प्लेटों में अंदाज़ से नमकीन और मिठाई रखी। जमाई ज्ञान बाबू के
लिए बिस्कुट और संतरे रखे। साहब इस समय कुछ नहीं खाते थे। उनके लिए थोड़ी
किशमिश रखी। किलसिया और सित्तो के हाथ नीचे भेजने के लिए ट्रे में चाय
लगाने लगीं।
मंटू
झुँझला ही रही थी कि उसकी चाची,
मालकिन की देवरानी लीला नाश्ते में सहायता देने के लिए ऊपर
आ गई। उसने भी मंटू का साथ दिया, ''हाँ भाभी जी,
त्योहार का दिन है, घर में बहू आई
है, जमाई आया है, ऐसे समय
भी कुछ नहीं पहना! कलाई नंगी रहे तो असगुन लगता है। सुबह तो चूड़ियाँ भी
थीं, कड़ा भी था।''
लीला की
बहन कैलाश भी आ गई थी। उसने भी पूछ लिया,
''क्या है, क्या नहीं मिल रहा?''
मालकिन ने
देवरानी के बुरा मान जाने की आशंका में तुरंत बात बदली,
''मैं तो कह रही हूँ कि तू वहाँ नहाई होती तो उठाकर सँभाल
लिया होता।''
किलसिया
कमरे में आ गई थी। बोली,
''गोल कमरे में चाय दे दी है। बड़े साहब,
जमाई बाबू और बड़े भैया तीनों वहीं पी रहें हैं। पकौड़ी
लौटा दी है, कोई नहीं खाएगा। बहू जी,
उनकी बहन और बड़ी बिटिया भी चाय नीचे मँगा रही हैं।''
किलसिया
बहू,
उनकी बहन और बड़ी बिटिया के लिए चाय लेकर चली तो बोली,
''आपके बाद कुसुम से पहले किलसिया भी तो गुसलखाने में गई
थी। उसी ने तो आपके कपड़े उठाकर कुसुम के लिए साबुन-तौलिया रखा था।''
लीला ने स्वर दबा कर कहा।
मंटू और
कैलाश ने आकर बताया,
''कुसुम भाभी कहती हैं कि उन्होंने तो कड़ा देखा नहीं।''
सित्तो ने
दुहाई दी, ''हाय
बीबी जी, हम तो बीच के गुसलखाने में गई ही नहीं। हम
तो सुबह से महाराज के साथ बर्तन-भांडे में लगी रहीं और तब से नीचे कपड़े धो
रही थीं।''
घर भर में
चिंता फैल गई। सब ओर खुसुर-फुसुर होने लगी। बात मर्दों में भी पहुँच गई।
जमाई ज्ञान बाबू ने पुकारा,
''क्यों मंटा बहन जी, क्या बात है?
माँ जी, मंटा ने छिपा लिया है।
कहती है पाँच चाकलेट दोगी तो ढूंढ देगी।''
मालकिन ने
जीना उतरते हुए बेटे को उत्तर दिया,
''तुम भी क्या कह रहे हो? कल शाम
लीला के साथ दाल धो रही तो बायें हाथ से घड़ी खोल कर रख दी थी। मंटू ने शोर
मचाया, खाली कलाई अच्छी नहीं लगती। वही घड़ी नीचे
रखकर कड़ा ले आई थी।'' सित्तो ने दोनों गुसलखाने अच्छी तरह देखे। फिर महाराज के साथ रसोई में सब जगह देख रही थी। किलसिया सब कमरों में जा-जाकर ढूंढ़ रही थी। न देखने लायक जगह में भी देख रही थी और बड़बड़ाती जा रही थी, ''बीबी जी चीज़-बस्त खुद रख कर भूल जाती हैं और हम पर बिगड़ा करती हैं।''
बात घर
में फैल गई थी। बड़े साहब और छोटे साहब ने भी सुन लिया था। दोनों ही इस
विषय में जिज्ञासा कर चुके थे। छोटे साहब भाभी से अंग्रेज़ी में पूछ रहे थे,
''आपके नहाने के बाद नौकरों में से कोई घर के बाहर गया था
या नहीं?'' सभी सहमे हुए थे। स्त्रियाँ,
लड़कियाँ सब आँगन में इकट्ठी हो गई थीं। दबे-दबे स्वर में
नौकरों के चोरी लगने के उदाहरण बता रही थीं। अब मालकिन भी घबरा गईं थीं।
देवरानी ने उनके समीप आकर फिर कहा, ''देखा नहीं
भाभी, किलसिया क़समें तो बहुत खा रही थी पर चेहरा
उतर गया है।''
दोनों
बहनें कमरे से बाहर निकलीं तो मुँह छिपाए दोहरी हुई जा रही थीं। हँसी रोकने
के लिए दोनों ने मुँह पर आँचल दबा लिए थे।
लीला,
कुसुम, कैलाश,
नीता सबके चेहरे लाज से लाल हो गए। सब मुँह छिपा कर
फिस-फिस करती इधर से उधर भाग गईं।
ज़ेवर
चोरी की बात पड़ोसी मिश्रा जी के यहाँ भी पहुँच गई थी। मिश्राइन जी ने आकर
पूछ लिया, ''मंटू
की माँ, क्या बात है, क्या
हुआ?'' |
मुखपृष्ठ | उपन्यास | कहानी | कविता | नाटक | आलोचना | विविध | भक्ति काल | हिंदुस्तानी की परंपरा | विभाजन की कहानियाँ | अनुवाद | ई-पुस्तकें | छवि संग्रह | हमारे रचनाकार | हिंदी अभिलेख | खोज | संपर्क |
Copyright 2009 Mahatma Gandhi Antarrashtriya Hindi Vishwavidyalaya, Wardha. All Rights Reserved. |