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शाह आलम कैम्प की रूहें शाह आलम कैम्प में दिन तो किसी न किसी तरह गुज़र जाते हैं लेकिन रातें क़यामत की होती है। ऐसी नफ़्स़ा नफ़्स़ी का अलम होता है कि अल्ला बचाये। इतनी आवाज़े होती हैं कि कानपड़ी आवाज़ नहीं सुनाई देती, चीख-पुकार, शोर-गुल, रोना, चिल्लाना, आहें सिसकियां. . . रात के वक्त़ रूहें अपने बाल-बच्चों से मिलने आती हैं। रूहें अपने यतीम बच्चों के सिरों पर हाथ फेरती हैं, उनकी सूनी आंखों में अपनी सूनी आंखें डालकर कुछ कहती हैं। बच्चों को सीने से लगा लेती हैं। ज़िंदा जलाये जाने से पहले जो उनकी जिगरदोज़ चीख़ों निकली थी वे पृष्ठभूमि में गूंजती रहती हैं। सारा कैम्प जब सो जाता है तो बच्चे जागते हैं, उन्हें इंतिजार रहता है अपनी मां को देखने का. . .अब्बा के साथ खाना खाने का। कैसे हो सिराज, 'अम्मां की रूह ने सिराज के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा।' 'तुम कैसी हों अम्मां?' मां खुश नज़र आ रही थी बोली सिराज. . .अब. . . मैं रूह हूं . . .अब मुझे कोई जला नहीं सकता।' 'अम्मां. . .क्या मैं भी तुम्हारी तरह हो सकता हूं?'
शाह आलम कैम्प में आधी रात के बाद एक औरत की घबराई बौखलाई रूह पहुंची जो अपने बच्चे को तलाश कर रही थी। उसका बच्चा न उस दुनिया में था न वह कैम्प में था। बच्चे की मां का कलेजा फटा जाता था। दूसरी औरतों की रूहें भी इस औरत के साथ बच्चे को तलाश करने लगी। उन सबने मिलकर कैम्प छान मारा. . .मोहल्ले गयीं. . .घर धूं-धूं करके जल रहे थे। चूंकि वे रूहें थीं इसलिए जलते हुए मकानों के अंदर घुस गयीं. . .कोना-कोना छान मारा लेकिन बच्चा न मिला। आख़िर सभी औरतों की रूहें दंगाइयों के पास गयी। वे कल के लिए पेट्रौल बम बना रहे थे। बंदूकें साफ कर रहे थे। हथियार चमका रहे थे। बच्चे की मां ने उनसे अपने बच्चे के बारे में पूछा तो वे हंसने लगे और बोले, 'अरे पगली औरत, जब दस-दस बीस-बीस लोगों को एक साथ जलाया जाता है तो एक बच्चे का हिसाब कौन रखता है? पड़ा होगा किसी राख के ढेर में।'
तब किसी दंगाई ने कहा, 'अरे ये उस बच्चे की मां तो नहीं है जिसे हम त्रिशूल पर टांग आये हैं।'
दिल्ली से एक बड़े नेता जब शाह आलम कैम्प के दौरे पर गये तो बहुत खुश हो गये और बोले, 'ये तो बहुत बढ़िया जगह है. . .यहां तो देश के सभी मुसलमान बच्चों को पहुंचा देना चाहिए।'
सिराज अब तुम घर चले जाओ, 'मां की रूह ने सिराज से कहा।' 'घर?' सिराज सहम गया। उसके चेहरे पर मौत की परछाइयां नाचने लगीं। 'हां, यहां कब तक रहोगे? मैं रोज़ रात में तुम्हारे पास आया करूंगी।' 'नहीं मैं घर नहीं जाउंगा. . .कभी नहीं. . .कभी,' धुआं, आग, चीख़ों, शोर। 'अम्मां मैं तुम्हारे और अब्बू के साथ रहूंगा' 'तुम हमारे साथ कैसे रह सकते हो सिक्कू. . .' 'भाईजान और आपा भी तो रहते हैं न तुम्हारे साथ।' 'उन्हें भी तो हम लोगों के साथ जला दिया गया था न।' 'तब. . .तब तो मैं . . .घर चला जाऊंगा अम्मां।'
शाह आलम कैम्प के दूसरे बच्चे से अलग यह बच्चा बहुत खुश रहता है। 'तुम इतने खुश क्यों हो बच्चे?' 'तुम्हें नहीं मालूम. . .ये तो सब जानते हैं।' 'क्या?' 'यही कि मैं सुबूत हूं।' 'सुबूत? किसका सुबूत?' 'बहादुरी का सुबूत हूं।' 'किसकी बहादुरी का सुबूत हो?' 'उनकी जिन्होंने मेरी मां का पेट फाड़कर मुझे निकाला था और मेरे दो टुकड़े कर दिए थे।'
'मां तुम आज इतनी खुश क्यों हो?' 'सिराज मैं आज जन्नत में तुम्हारे दादा से मिली थी, उन्होंने मुझे अपने अब्बा से मिलवाया. . .उन्होंने अपने दादा. . .से . . .सकड़ दादा. . .तुम्हारे नगड़ दादा से मैं मिली।' मां की आवाज़ से खुशी फटी पड़ रही थी। 'सिराज तुम्हारे नगड़ दादा. . .हिंदू थे. . .हिंदू. . .समझे? सिराज ये बात सबको बता देना. . .समझे?'
बहन ने फिर कहा, 'सुनो भइया!' भाई ने फिर नहीं सुना, न बहन की तरफ देखा। 'तुम मेरी बात क्यों नहीं सुन रहे भइया!', बहन ने ज़ोर से कहा और भाई का चेहरा आग की तरह सुर्ख हो गया। उसकी आंखें उबलने लगीं। वह झपटकर उठा और बहन को बुरी तरह पीटने लगा। लोग जमा हो गये। किसी ने लड़की से पूछा कि उसने ऐसा क्या कह दिया था कि भाई उसे पीटने लगा. . . बहन ने कहा, 'नहीं सलीमा नहीं, तुमने इतनी बड़ी गल़ती क्यों की।' बुज़ुर्ग फट-फटकर रोने लगा और भाई अपना सिर दीवार पर पटकने लगा।
रूहों ने बूढ़े से पूछा 'क्या तुम्हारा भी कोई रिश्तेदार कैम्प में है?' बूढ़े ने कहा, 'नहीं और हां।' रूहों के बूढ़े को पागल रूह समझकर छोड़ दिया और वह कैम्प का चक्कर लगाने लगा। किसी ने बूढ़े से पूछा, 'बाबा तुम किसे तलाश कर रहे हो?' बूढ़े ने कहा, 'ऐसे लोगों को जो मेरी हत्या कर सके।' 'क्यों?' 'मुझे आज से पचास साल पहले गोली मार कर मार डाला गया था। अब मैं चाहता हूं कि दंगाई मुझे ज़िंदा जला कर मार डालें।' 'तुम ये क्यों करना चाहते हो बाबा?' 'सिर्फ ये बताने के लिए कि न उनके गोली मार कर मारने से मैं मरा था और न उनके ज़िंदा जला देने से मरूंगा।'
'तुम्हारे मां-बाप हैं?' 'मार दिया सबको।' 'भाई बहन?' 'नहीं हैं' 'कोई है' 'नहीं' 'यहां आराम से हो?' 'हो हैं।' 'खाना-वाना मिलता है?' 'हां मिलता है।' 'कपड़े-वपड़े हैं?' 'हां हैं।' 'कुछ चाहिए तो नहीं,' 'कुछ नहीं।' 'कुछ नहीं।' 'कुछ नहीं।' नेता जी खुश हो गये। सोचा लड़का समझदार है। मुसलमानों जैसा नहीं है।
लोगों ने कहा, 'हां. . .हां हम जानते हैं। आप ऐसा कर ही नहीं सकते। आपका भी आख़िर एक स्टैण्डर्ड है।' शैतान ठण्डी सांस लेकर बोला, 'चलो दिल से एक बोझ उतर गया. . .आप लोग सच्चाई जानते हैं।' लोगों
ने कहा,
'कुछ
दिन पहले अल्लाह मियां भी आये थे और यही कह रहे थे।' |
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