फ़ोटोग्राफ़र
क़ुर्रतुल ऎन हैदर
मौसमे-बहार के फलों से घिरा बेहद
नज़रफ़रेब1 गेस्टहाउस हरे-भरे टीले की चोटी पर दूर
से नज़र आ जाता है। टीले के ऐन नीचे पहाड़ी झील है। एक बल खाती सड़क झील के
किनारे-किनारे गेस्टहाउस के फाटक तक पहुँचती है। फाटक के नज़दीक वालरस की
ऐसी मूँछोंवाला एक फ़ोटोग्राफ़र अपना साज़ो-सामान फैलाए एक टीन की कुर्सी
पर चुपचाप बैठा रहता है। यह गुमनाम पहाड़ी क़स्बा टूरिस्ट इलाक़े में नहीं
है इस वजह से बहुत कम सय्याह इस तरफ़ आते हैं। चुनांचे जब कोई माहे-अस्ल2
माननेवाला जोड़ा या कोई मुसाफ़िर गेस्टहाउस में आ पहुँचता है तो
फ़ोटोग्राफ़र बड़ी उम्मीद और सब्र के साथ अपना कैमरा सम्भाले बाग़ की सड़क
पर टहलने लगता है। बाग़ के माली से उसका समझौता है । गेस्टहाउस में ठहरी
किसी नौजवान ख़ातून के लिए सुब्ह-सवेरे गुलदस्ता ले जाते वक़्त माली
फ़ोटोग्राफ़र को इशारा कर देता है और जब माहे-अस्ल मनानेवाला जोड़ा नाश्ते
के बाद नीचे बाग़ में आता है तो माली और फ़ोटोग्राफ़र दोनों उनके इंतजार
में चौकस मिलते हैं।
फ़ोटोग्राफ़र मुद्दतों से यहाँ मौजूद है। न जाने और कहीं जाकर अपनी दुकान
क्यों नहीं सजाता । लेकिन वह इसी क़स्बे का बाशिंदा है। अपनी झील और अपनी
पहाड़ी छोड़कर कहाँ जाए। इस फाटक की पुलिया पर बैठे-बैठे उसने बदलती दुनिया
के रंगारंग तमाशे देखे हैं। पहले यहाँ साहब लोग आते थे। बरतानवी
प्लांटर्ज़, सफ़ेद सोला हैट पहने कोलोनियल सर्विस के जग़ादरी ओहदेदार, उनकी
मेम लोग और बाबा लोग । रात-रात-भर शराबें उड़ाई जाती थीं और ग्रोमोफ़ोन
चीख़ते थे और गेस्टहाउस के निचले ड्राईंगरुम के चोबी3
फ़र्श पर डांस होता था । दूसरी बड़ी लड़ाई के ज़माने में अमरीकन आने लगे थे
। फिर मुल्क को आज़ादी मिली और इक्का-दुक्का सय्याह आने शुरू हुए या सरकारी
अफ़सर या नए ब्याहे शामों को झील पर झुकी धनुक (धनुष) का नज़ारा करना चाहते
हैं, ऐसे लोग जो सुकून और मुहब्बत के मुतलाशी4 हैं
जिसका ज़िंदगी में वजूद नहीं, क्यों हम जहाँ जाते
हैं फ़ना5 हमारे साथ है । हम जहाँ ठहरते हैं फ़ना
हमारे साथ है । फ़ना मुसलसल6 हमारी हमसफ़र है ।
गेस्टहाउस में मुसाफ़िरों की आवक-जावक जारी है । फ़ोटोग्राफ़र के कैमरे की
आँख यह सब देखती है और ख़ामोश रहती है ।
एक रोज़ शाम पड़े एक नौजवान और एक लड़की गेस्टहाउस में आन कर उतरे । यह
दोनों अंदाज़ से माहे-अस्ल मनानेवाले मालूम नहीं होते थे लेकिन बेहद मसरूर7
और संजीदा-से वह अपना सामान उठाए ऊपर चले गए । ऊपर की मंज़िल बिलकुल खाली
पड़ी थी । जीने के बराबर में डाइनिंग हाल था और उसके बाद तीन बड़े रूम ।
-- यह कमरा मैं लूँगा।
नौजवान ने पहले बेडरुम में दाख़िल होकर कहा जिसका रुख़ झील की तरफ़ था।
लड़की ने अपनी छतरी और ओवरकोट उस कमरे के एक पलंग पर फेंक दिया था।
-- उठाओ अपना बोरिया-बिस्तर।
नौजवान ने उससे कहा ।
-- अच्छा...।
लड़की दोनों चीज़े उठाकर बराबर के सिंटिंग-रुम से गुज़रती दूसरे कमरे में
चली गई जिसके पीछे एक पुख़्ता गलियारा-सा था । कमरे के बड़े-बड़े दरीचों8
में से वे मज़दूर नज़र आ रहे थे जो एक सीढ़ी उठाए पिछली दीवार की मरम्मत
में मसऱूफ थे ।
एक बैरा लड़की का सामान लेकर अंदर आया और दरीचों के परदे बराबर करके चला
गया। लड़की सफ़र के कपड़े तब्दील करके सिटिंग-रुम में आ गई। नौजवान आतशदान
के पास एक आरामकुर्सी पर बैठा कुछ लिख रहा था, उसने नज़रें उठाकर लड़की को
देखा। बाहर झील पर दफ़अतन अँधेरा छा गया था। वह दरीचे में खड़ी होकर बाग़
के धुँधलके को देखने लगी। फिर वह भी एक कुर्सी पर बैठ गई, न जाने, वे दोनों
क्या बातें करते रहे। फ़ोटोग्राफ़र जो अब भी नीचे फाटक पर बैठा था, उसका
कैमरा आँख रखता था लेकिन समाअत9 से आरी
10 था।
कुछ देर बाद वे दोनों खाना खाने के कमरे में गए और दरीचे से लगी हुई मेज़
पर बैठ गए। झील के दूसरे किनारे पर क़स्बे की रौशनियाँ झिलमिला उठी थीं।
उस वक़्त तक एक यूरोपियन सय्याह भी गेस्टहाउस में आ चुका था। वह ख़ामोश
डाइनिंग-हाल के दूसरे कोने में चुपचाप बैठा ख़त लिख रहा था। चंद पिक्चर
पोस्टकार्ड उसके सामने मेज़ पर रखे थे।
-- यह अपने घर ख़त लिख रहा है कि मैं इस वक़्त पुरअसरार11
मशरिक के एक पुरअसरार डाकबंगले में मौजूद हूँ। सुर्ख़ साड़ी में मलबूस एक
पुरअसरार हिंदुस्तानी लड़की मेरे सामने बैठी है। बड़ा ही रोमैंटिक माहौल
है।
लड़की ने चुपके से कहा। उसका साथी हँस पड़ा।
खाने के बाद वे दोनों फिर सिटिंग-रूम में आ गए। नौजवान अब उसे कुछ पढ़कर
सुना रहा था, रात थी, रात गहरी होती गई। दफ़अतन लड़की को ज़ोर की छींक आई
और उसने सूँ-सूँ करते हुए कहा-
-- अब सोना चाहिए।
-- तुम अपनी ज़ुकाम की दवा पीना न भूलना ।
नौजवान ने फ़िक्र से कहा ।
-- हाँ, शबबख़ैर12 ।
लड़की ने जवाब दिया और अपने कमरे में चली गई। पिछला गलियारा घुप्प अँधेरा
पड़ा था, कमरा बेहद पुरसुकून, खुनक और आरामदेह था। ज़िंदगी बेहद पुरसुकून
और आरामदेह थी। लड़की ने कपड़े तब्दील करके सिंगार-मेज़ की दराज़ खोल दवा
की शीशी निकाली कि दरवाज़े पर दस्तक हुई। उसने अपना स्याह किमोनो पहनकर
दरवाज़ा खोला । नौजवान ज़रा खैराया हुआ था, सामने खड़ा था।
-- मुझे भी बड़ी सख़्त खाँसी उठ रही है। उसने कहा।
-- अच्छा...।
लड़की ने दवा की शीशी और चमचा उसे दे दिया। चमचा नौजवान के हाथ से छूटकर
फ़र्श पर गिर गया, उसने झुककर चमचा उठाया और अपने कमरे की तरफ़ चला गया,
लड़की रौशनी बुझाकर सो गई।
सुब्ह को वह नाश्ते के लिए डाइनिंग-रूम मे गई। ज़ीने के बराबर वाले हाल में
फूल महक रहे थे। ताम्बे के बड़े-बड़े गुलदान ब्रासो से चमकाए जाने के बाद
हाल के झिलमिलाते चोबी फ़र्श पर एक क़तार मे रख दिए गए थे और ताज़ा फूलों
के अंबार उनके नज़दीक रखे हुए थे। बाहर सूरज ने झील को रौशन कर दिया था और
ज़र्द व सफ़ेद तितलियाँ सब्ज़े पर उड़ती फिर रही
थीं। कुछ देर बाद नौजवान हँसता हुआ ज़ीने पर नमूदार हुआ, उसके हाथ में
गुलाब के फूलों का एक गुच्छा था।
-- माली नीचे खड़ा है, उसने यह गुलदस्ता तुम्हारे लिए भिजवाया है।
उसने कमरे में दाख़िल होकर मुस्कराते हुए कहा और गुलदस्ता मेज़ पर रख गया।
लड़की ने एक शगूफा13 उठाकर बेख़याली से उसे अपने
बालों में लगा लिया और अख़बार पढ़ने में मसरूफ़ हो गई।
--एक फ़ोटोग्राफ़र भी नीचे मँडला रहा है, उसने मुझ से बड़ी संजीदगी से
तुम्हारे मुताल्लिक दरयाफ़्त किया कि तुम फ़लाँ फ़िल्म-स्टार तो नहीं?
नौजवान ने कुर्सी पर बैठकर चाय बनाते हुए कहा ।
लड़की हँस पड़ी। वह एक नामवर रक्कासा 14 थी। मगर इस
जगह पर किसी ने उसका नाम भी न सुना था। नौजवान लड़की से भी ज़्यादा मशहूर
मूसीक़ार15 था। मगर उसे भी यहाँ कोई न पहचान सका था।
इन दोनों को अपनी आरज़ी16 गुमनामी और मुकम्मल सुकून
के यह मुख़्तसर लम्हात बहुत भले मालूम हुए।
कमरे के दूसरे कोने में नाश्ता करते हुए अकेले यूरोपियन ने आँखे उठाकर इन
दोनों को देखा और ज़रा सा मुस्कुराया। वह भी इन दोनों की ख़ामोश मुसर्रत
17 में शरीक हो चुका था।
नाश्ता के बाद दोनों नीचे गए और बाग़ के किनारे गुलमोहर के नीचे खड़े होकर
झील को देखने लगे। फोटोग्राफ़र ने अचानक छलावे की तरह नमूदार होकर बड़ी
ड्रामाई अंदाज़ में टोपी उतारी और ज़रा झुककर कहा-
-- फ़ोटोग्राफ़, लेडी?
लड़की ने घडी देखी।
-- हम लोगों को अभी बाहर जाना है। देर हो जाएगी।
-- लेडी... फ़ोटोग्राफ़र ने पाँव मुँडेर पर रखा और एक हाथ फैलाकर बाहर की
दुनिया की तरफ़ इशारा करते हुए जवाब दिया-- बाहर कारज़ारे-हयात18
में घमासान का रन पड़ा है। मुझे मालूम है इस घमासान से निकलकर आप दोनो,
खुशी के चंद लम्हे चुराने की कोशिश में मसरूफ़ हैं। देखिए, इस झील के ऊपर
धनुक पल-की-पल में ग़ायब हो जाती है। लेकिन मैं आपका ज़्यादा वक्त न लूंगा।
इधर आइए।
-- बड़ा लसान19 फ़ोटोग्राफ़र है।
लड़की ने चुपके से अपने साथी से कहा। माली जो गोया अब तक अपने क्यू का
मुंतज़िर था, दूसरे दरख़्त के पीछे से निकला और लपककर एक और गुसदस्ता लड़की
को पेश किया। लड़की खिलखिलाकर हँस पड़ी। वह और उसका साथी अमर सुंदरी
पार्वती के मुजस्समें20 के क़रीब जा खड़े हुए। लड़की
की आँखों पर धूप पड़ रही थी इसलिए उसने मुस्कुराते हुए आँखें ज़रा-सी
चुधिया दी थीं।
क्लिक-क्लिक... तसवीर उतर गई।
-- तसवीर आपको शाम को मिल जाएगी। थैंक यू, लेडी । थैंक यू,सर...
फ़ोटोग्राफ़र ने ज़रा-सा झुककर दोबारा टोपी छुई। लड़की और उसका साथी कार की
तरफ़ चले गए।
सैर करके वे दोनों शाम पड़े लौटे । संध्या की नारंगी
रौशनी में देर तक बाहर घास पर पड़ी कुर्सियों पर बैठे रहे। जब कोहरा गिरने
लगा तो अंदर निवासी मंज़िल के वसीअ 21 और ख़ामोश
ड्राइंगरूम में नारंगी कुमकुमों की रौशनी में आ
बैठे। न जाने क्या बातें कर रहे थे जो किसी तरह ख़त्म होने को ही न आती
थीं। खाने के वक़्त वे ऊपर चले गए। सुब्ह-सबेरे वे वापस जा रहे थे और अपनी
बातों की मह्वियत 22 में उनको फ़ोटोग्राफ़र और उसकी
खैंची हुई तसवीर याद भी न रही थी।
सुब्ह को लड़की अपने कमरे ही में थी जब बैरे ने अंदर आकर एक लिफाफा पेश
किया-- फ़ोटोग्राफ़र साहब, यह रात को दे गए थे। उसने कहा।
-- अच्छा। उस सामनेवाली दराज़ में रख दो। लड़की ने बेख़याली से कहा और बाल
बनाने में जुटी रही।
नाश्ते के बाद सामान बांधते हुए उसे दराज़ खोलना याद न रहा और जाते वक़्त
ख़ाली कमरे पर एक सरसरी नज़र डालकर वह तेज़-तेज़ चलती कार मैं बैठ गई।
नौजवान ने कार स्टार्ट कर दी। कार फाटक से बाहर निकली। फ़ोटोग्राफ़र ने
पुलिया पर से उठकर टोपी उतारी। मुसाफ़िरों ने मुस्कुराकर हाथ हिलाए। कार
ढलवान से नीचे रवाना हो गई।
वह वालरस की ऐसी मूँछोंवाला फ़ोटोग्राफ़र अब बहुत
बूढ़ा हो चुका है। और उसी तरह उस गेस्टहाउस के फाटक पर टीन की कुर्सी बिछाए
बैठा है। और सय्याहों की तसवीरें उतारता रहता है जो अब नई फ़ज़ाई सर्विस
23 शुरू होने की वजह से बड़ी तादाद में इस तरफ़ आने
लगे हैं।
लेकिन इस वक़्त एयरपोर्ट से जो टूरिस्ट कोच आकर फाटक में दाख़िल हुई उसमें
से सिर्फ़ एक खातून अपना अटैची केस उठाए बरामद हुई और ठिठककर उन्होंने
फ़ोटोग्राफ़र को देखा, जो कोच को देखते ही फ़ौरन उठ खड़ा हुआ था, मगर किसी
जवान और हसीन लड़की के बजाय एक अधेड़ उम्र की बीबी को दोखकर मायूसी से
दोबारा जाकर अपनी टीन की कुर्सी पर बैठ चुका था।
खातून ने दफ़्तर में जाकर रजिस्टर में अपना नाम दर्ज किया और ऊपर चली गईं।
गेस्टाहाउस सुनसान पड़ा था। सय्याहों की एक टोली अभी-अभी आगे रवाना हुई थी
और बैरे कमरे की झाई-पोंछ कर चुके थे। और डाइनिंग हाल में दरीचे के नीचे
सफेद बुर्राक मेज़ पर छुरी-काँटे जगमगा रहे थे। नौवारिद 24 ख़ातून दरम्यानी
बेडरूम में से गुज़रकर पिछले कमरे में चली गईं। और अपना सामान रखने के बाद
फिर बाहर आकर झील को देखने लगीं। चाय के बाद वह ख़ाली सिटिंग-रूम में जा
बैठी और रात हुई तो जाकर अपने कमरे में सो गई। गलियारे में कुछ परछाइयों ने
अंदर झाँका तो वह उठकर दरीचे में गई जहाँ मज़दूर दिन-भर काम करने के बाद
सीढ़ी दीवार से लगी छोड़ गए थे। गलियारा भी सुनसान पड़ा था वह फिर पलंग पर
आकर लेटीं तो चंद मिनट बाद दरवाजे पर दस्तक हुई। उन्होंने दरवाज़ा खोला,
बाहर कोई न था। सिटिंग-रूम भाँय-भाँय कर रहा था, वह फिर आकर लेट रहीं। कमरा
बहुत सर्द था।
सुबह को उठकर उन्होंने अपना सामान बांधते हुए सिंगारमेज़ की दराज़ खोली तो
उसके अंदर बिछे पीले काग़ज़ के नीचे से एक लिफ़ाफे का कोना नज़र आया जिस पर
उनका नाम लिखा था। ख़ातून ने ज़रा ताज्जुब से लिफ़ाफ़ा बाहर निकाला। एक
काक्रोच काग़ज़ की तह में से निकलकर ख़ातून की उंगली पर आ गया। उन्होंने
दहलकर उंगली झटकी और लिफ़ाफे में से एक तसवीर सरककर नीचे गिर गई, जिसमें एक
नौजवान और एक लड़की अमर सुंदरी पार्वती के मुजस्समे के क़रीब खड़े मुस्कुरा
रहे थे। तसवीर का काग़ज पीला पड़ चुका था। ख़ातून चंद लम्हों तक गुमसम उस
तसवीर को देखती रहीं, फिर उसे अपने बैग में रख लिया।
बैरे न बाहर से आवाज़ दी कि एयरपोर्ट जाने वाली कोच तैयार है। ख़ातून नीचे
गईं। फ़ोटोग्राफ़र नए मुसाफ़िरों की ताक में बाग़ की सड़क पर टहल रहा था।
उसके क़रीब जाकर ख़ातून ने बेतकल्लुफ़ी से कहा-
-- कमाल है, पंद्रह बरस में कितनी बार सिंगार-मेज़ की सफ़ाई की गई होगी मगर
यह तसवीर काग़ज के नीचे इसी तरह पड़ी रही। --फिर उनकी आवाज़ में झल्लाहट आ
गई-- और यहाँ का इंतज़ाम कितना ख़राब हो गया है। कमरे में काक्रोच ही
काक्रोच।
फ़ोटोग्राफ़र ने चौंककर उनको देखा और पहचानने की कोशिश की, फिर ख़ातून के
झुरियों वाले चेहरे पर नज़र डालकर अलम से दूसरी तरफ़ देखने लगा, ख़ातून
कहती रहीं-- उनकी आवाज़ भी बदल चुकी थी। चेहरे पर दुरुश्ती
25 और सख़्ती थी और अंदाज में चिड़चिड़ापन और बेज़ारी और वह सपाट
आवाज़ में कहे जा रही थीं-
-- मैं स्टेज से रिटायर हो चुकी हूँ। अब मेरी तसवीरें कौन खींचेगा भला, मैं
अपने वतन वापस जाते हुए रात-की-रात यहाँ ठहर गई थी। नई हवाई सर्विस शुरू हो
गई है। यह जगह रास्ते में पड़ती है।
-- और—और—आपके साथी? -फ़ोटोग्राफ़र ने आहिस्ता से पूछा।
कोच न हार्न बजाया।
-- आपने कहा था ना कि कारज़ारे-हयात में घमासान का रन पड़ा है। इसी घमासान
में कहीं खो गए।
कोच ने दोबारा हार्न बजाया।
-- और उनको खोए हुए भी मुद्दत गुज़र गई... अच्छा ख़ुद हाफ़िज़।
ख़ातून ने बात ख़त्म की और तेज़-तेज़ कदम रखती कोच की तरफ़ चली गईं।
वालरस की ऐसी मूँछोंवाला फ़ोटोग्राफ़र फाटक के नज़दीक जाकर अपनी टीन की
कुर्सी पर बैठ गया ।
ज़िंदगी इनसानों को खा गई । सिर्फ़ काक्रोच बाकी रह गए।
1.आँखों को लुभानेवाला, 2. सुहागरात 3. लकड़ी के बने 4. तलाश करनेवाले 5.
नश्वरता 6. निरंतर 7. प्रसन्नचित्त 8.खिड़कियाँ 9.सुनने 10. मजबूर 11.
रहस्यमय 12. शुभरात्रि 13. कली 14. नृत्यांगना 15. संगीतकार 16. अस्थायी
17. प्रसन्नता 18. जीवन का कार्यक्षेत्र 19. बातूनी 20. मूर्ति
21.लंबे-चौड़े 22. तल्लीनता 23. हवाई सेवा 24. नवागंतुक 25.कटुता
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