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अविस्मरणीय
कविताएँ - जयशंकर 'प्रसाद'
आह ! वेदना मिली विदाई |
हिमाद्रि तुंग श्रृंग से प्रबुद्ध शुद्ध भारती हिमाद्रि तुंग श्रृंग से प्रबुद्ध शुद्ध भारती स्वयंप्रभा समुज्जवला स्वतंत्रता पुकारती अमर्त्य वीर पुत्र हो, दृढ़-प्रतिज्ञ सोच लो प्रशस्त पुण्य पंथ हैं - बढ़े चलो बढ़े चलो असंख्य कीर्ति-रश्मियाँ विकीर्ण दिव्य दाह-सी सपूत मातृभूमि के रुको न शूर साहसी अराति सैन्य सिंधु में, सुबाड़वाग्नि से जलो प्रवीर हो जयी बनो - बढ़े चलो बढ़े चलो |
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