1.बन
बोलन लागे मोर
आ
घिर आई दई मारी घटा कारी। बन बोलन लागे मोर
दैया री बन बोलन लागे मोर।
रिम-झिम रिम-झिम बरसन लागी छाई री चहुँ ओर।
आज बन बोलन लागे मोर।
कोयल बोले डार-डार पर पपीहा मचाए शोर।
आज बन बोलन मोर.........
ऐसे समय साजन परदेस गए बिरहन छोर।
आज बन बोलन मोर.........
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2.छाप तिलक सब छीनी
अपनी छवि बनाइ के जो मैं पी के पास गई,
जब छवि देखी पीहू की तो अपनी भूल गई।
छाप तिलक सब छीनी रे मोसे नैंना मिलाइ के
बात अघम कह दीन्हीं रे मोसे नैंना मिलाइ के।
बल बल जाऊँ मैं तोरे रंगरिजवा
अपनी सी रंग दीन्हीं रे मोसे नैंना मिलाइ के।
प्रेम बटी का मदवा पिलाय के मतवारी कर दीन्हीं रे
मोसे नैंना मिलाइ के।
गोरी-गोरी बइयाँ हरी - हरी चुरियाँ
बइयाँ पकर हर लीन्हीं रे मोसे नैंना मिलाइ के।
खुसरो निजाम के बल-बल जइए
मोहे सुहागन कीन्हीं रे मोसे नैंना मिलाइ के।
(शीर्ष पर
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3.सावन
आया
अम्मा मेरे बाबा को भेजो री - कि सावन आया
बेटी तेरा बाबा तो बूढ़ा री - कि सावन आया
अम्मा मेरे भाई को भेजो री - कि सावन आया
बेटी तेरा भाई तो बाला री - कि सावन आया
अम्मा मेरे मामू को भेजो री - कि सावन आया
बेटी तेरा मामू तो बांका री - कि सावन आया
(शीर्ष पर
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4.मोरे पिया घर आए
री सखी मोरे पिया घर आए,
भाग लगे इस आँगन को
बल-बल जाऊँ मैं अपने पिया के, चरन लगायो निर्धन को।
मैं तो खड़ी थी आस लगाए, मेंहदी कजरा माँग सजाए।
देख सुरतिया अपने पिया की, हार गई मैं तन मन को।
जिसका पिया संग बीते सावन, उस दुल्हन की रैन सुहागन।
जिस सावन में पिया घर नाहि, आग लगे उस सावन को।
अपने पिया को मैं किस विध पाऊँ, लाज की मारी मैं तो डूबी डूबी जाऊँ
तुम ही जतन करो ऐ री सखी री, मै मन भाऊँ साजन को।
(शीर्ष पर
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5.काहे को ब्याहे बिदेस
काहे
को
ब्याहे
बिदेस,
अरे,
लखिय
बाबुल
मोरे
काहे
को
ब्याहे
बिदेस
भैया
को
दियो
बाबुल
महले
दो-महले
हमको
दियो
परदेस
अरे,
लखिय
बाबुल
मोरे
काहे
को
ब्याहे
बिदेस
हम
तो
बाबुल
तोरे
खूँटे
की
गैयाँ
जित
हाँके
हँक
जैहें
अरे,
लखिय
बाबुल
मोरे
काहे
को
ब्याहे
बिदेस
हम
तो
बाबुल
तोरे
बेले
की
कलियाँ
घर-घर
माँगे
हैं
जैहें
अरे,
लखिय
बाबुल
मोरे
काहे
को
ब्याहे
बिदेस
कोठे
तले
से
पलकिया
जो
निकली
बीरन
ने
खाए
पछाड़
अरे,
लखिय
बाबुल
मोरे
काहे
को
ब्याहे
बिदेस
हम
तो
हैं
बाबुल
तोरे
पिंजरे
की
चिड़ियाँ
भोर
भये
उड़
जैहें
अरे,
लखिय
बाबुल
मोरे
काहे
को
ब्याहे
बिदेस
तारों
भरी
मैनें
गुड़िया
जो
छोड़ी
छूटा
सहेली
का
साथ
अरे,
लखिय
बाबुल
मोरे
काहे
को
ब्याहे
बिदेस
डोली
का
पर्दा
उठा
के
जो
देखा
आया
पिया
का
देस
अरे,
लखिय
बाबुल
मोरे
काहे
को
ब्याहे
बिदेस
अरे,
लखिय
बाबुल
मोरे
काहे
को
ब्याहे
बिदेस
अरे,
लखिय
बाबुल
मोरे
(शीर्ष पर
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6.जब यार देखा नैन भर
जब
यार
देखा
नैन
भर
दिल
की
गई
चिंता
उतर
ऐसा
नहीं
कोई
अजब
राखे
उसे
समझाए
कर
।
जब
आँख
से
ओझल
भया,
तड़पन
लगा
मेरा
जिया
हक्का
इलाही
क्या
किया,
आँसू
चले
भर
लाय
कर
।
तू
तो
हमारा
यार
है,
तुझ
पर
हमारा
प्यार
है
तुझ
दोस्ती
बिसियार
है
एक
शब
मिलो
तुम
आय
कर
।
जाना
तलब
तेरी
करूँ
दीगर
तलब
किसकी
करूँ
तेरी
जो
चिंता
दिल
धरूँ,
एक
दिन
मिलो
तुम
आय
कर
।
मेरा
जो
मन
तुमने
लिया,
तुमने
उठा
गम
को
दिया
तुमने
मुझे
ऐसा
किया,
जैसा
पतंगा
आग
पर
।
खुसरो
कहै
बातां
ग़ज़ब,
दिल
में
न
लावे
कुछ
अजब
कुदरत
खुदा
की
है
अजब,
जब
जिव
दिया
गुल
लाय
कर
।
(शीर्ष पर
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7.ज़िहाल-ए मिस्कीं मकुन तगाफ़ुल
ज़िहाल-ए
मिस्कीं
मकुन
तगाफ़ुल,
दुराये
नैना
बनाये
बतियां
|
कि
ताब-ए-हिजरां
नदारम
ऎ
जान,
न
लेहो
काहे
लगाये
छतियां
||
शबां-ए-हिजरां
दरज़
चूं
ज़ुल्फ़
वा
रोज़-ए-वस्लत
चो
उम्र
कोताह,
सखी
पिया
को
जो
मैं
न
देखूं
तो
कैसे
काटूं
अंधेरी
रतियां
||
यकायक
अज़
दिल,
दो
चश्म-ए-जादू
ब
सद
फ़रेबम
बाबुर्द
तस्कीं,
किसे
पडी
है
जो
जा
सुनावे
पियारे
पी
को
हमारी
बतियां
||
चो
शमा
सोज़ान,
चो
ज़र्रा
हैरान
हमेशा
गिरयान,
बे
इश्क
आं
मेह
|
न
नींद
नैना,
ना
अंग
चैना
ना
आप
आवें,
न
भेजें
पतियां
||
बहक्क-ए-रोज़े,
विसाल-ए-दिलबर
कि
दाद
मारा,
गरीब
खुसरौ
|
सपेट
मन
के,
वराये
राखूं
जो
जाये
पाऊँ,
पिया
के
खटियां
||
(शीर्ष पर
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8.पिया आवन कह गए अजहुँ न आए
पिया
आवन
कह
गए
अजहुँ
न
आए,
अजहुँ
न
आए
स्वामी
हो
ऐ
जो
पिया
आवन
कह
गए
अजुहँ
न
आए।
अजहुँ
न
आए
स्वामी
हो।
स्वामी
हो,
स्वामी
हो।
आवन
कह
गए,
आए
न
बारह
मास।
जो
पिया
आवन
कह
गए
अजहुँ
न
आए।
अजहुँ
न
आए।
आवन
कह
गए।
आवन
कह
गए।
(शीर्ष पर
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9.जो मैं जानती बिसरत हैं सैय्या
जो
मैं
जानती
बिसरत
हैं
सैय्या,
घुँघटा
में
आग
लगा
देती,
मैं
लाज
के
बंधन
तोड़
सखी
पिया
प्यार
को
अपने
मना लेती।
इन चुरियों की लाज पिया रखना, ये तो पहन लई अब उतरत ना
मोरा भाग सुहाग तुमई से है मैं तो तुम ही पर जुबना लुटा बैठी
मोरे हार सिंगार की रात गई, पियू संग उमंग की बात गई
पियू संग उमंग मेरी आस नई।
(शीर्ष पर
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10.अब आए न मोरे साँवरिया
अब
आए
न
मोरे
साँवरिया,
मैं
तो
तन
मन
उन
पर
लुटा
देती।
घर
आए
न
मोरे
साँवरिया,
मैं
तो
तन
मन
उन
पर
लुटा
देती।
मोहे
प्रीत
की
रीत
न
भाई
सखी,
मैं
तो
बन
के
दुल्हन
पछताई
सखी।
होती
न
अगर
दुनिया
की
शरम
मैं
तो
भेज
के
पतियाँ
बुला
लेती।
उन्हें
भेज
के
सखियाँ
बुला
लेती।
(शीर्ष पर
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11.तोरी सूरत के बलिहारी
तोरी
सूरत
के
बलिहारी,
निजाम,
तोरी
सूरत
के
बलिहारी
।
सब
सखियन
में
चुनर
मेरी
मैली,
देख
हसें
नर
नारी,
निजाम...
अबके
बहार
चुनर
मोरी
रंग
दे,
पिया
रखले
लाज
हमारी,
निजाम....
सदका
बाबा
गंज
शकर
का,
रख
ले
लाज
हमारी,
निजाम...
कुतब,
फरीद
मिल
आए
बराती,
खुसरो
राजदुलारी,
निजाम...
कोउ
सास
कोउ
ननद
से
झगड़े,
हमको
आस
तिहारी,
निजाम,
तोरी
सूरत
के
बलिहारी,
निजाम...
(शीर्ष पर
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12.चल खुसरो घर आपने
खुसरो
रैन
सुहाग
की,
जागी
पी
के
संग।
तन
मेरो
मन
पियो
को,
दोउ
भए
एक
रंग।।
खुसरो
दरिया
प्रेम
का,
उल्टी
वा
की
धार।
जो
उतरा
सो
डूब
गया,
जो
डूबा
सो
पार।।
खीर
पकायी
जतन
से,
चरखा
दिया
जला।
आया
कुत्ता
खा
गया,
तू
बैठी
ढोल
बजा।।
गोरी
सोवे
सेज
पर,
मुख
पर
डारे
केस।
चल
खुसरो
घर
आपने,
सांझ
भयी
चहु
देस।।
खुसरो
मौला
के
रुठते,
पीर
के
सरने
जाय।
कहे
खुसरो
पीर
के
रुठते,
मौला
नहिं
होत
सहाय।।
(शीर्ष पर
वापस)
13.बहुत कठिन है डगर पनघट की
बहुत कठिन है डगर पनघट की
कैसे मैं भर लाऊं मधवा से मटकी
पनिया भरन को मैं जो गई थी
दौड़ झपट मोरी मटकी पटकी?
खुसरो निजाम के बल बल जइये
लाज रखो मोरे घूंघट पट की
(शीर्ष पर
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14.बहुत दिन बीते पिया को देखे
बहुत
दिन
बीते
पिया
को
देखे,
अरे
कोई
जाओ,
पिया
को
बुलाय
लाओ
मैं
हारी
वो
जीते
पिया
को
देखे
बहुत
दिन
बीते।
सब
चुनरिन
में
चुनर
मोरी
मैली,
क्यों
चुनरी
नहीं
रंगते?
बहुत
दिन
बीते।
खुसरो
निजाम
के
बलि
बलि
जइए,
क्यों
दरस
नहीं
देते?
बहुत
दिन
बीते।
(शीर्ष पर
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15.बहुत रही बाबुल घर दुल्हन
बहुत रही बाबुल घर दुल्हन, चल तोरे पी ने बुलाई।
बहुत खेल खेली सखियन से, अन्त करी लरिकाई।
बिदा करन को कुटुम्ब सब आए, सगरे लोग लुगाई।
चार कहार मिल डोलिया उठाई, संग परोहत और भाई।
चले ही बनेगी होत कहाँ है, नैनन नीर बहाई।
अन्त बिदा हो चलि है दुल्हिन, काहू कि कछु न बने आई।
मौज-खुसी सब देखत रह गए, मात पिता और भाई।
मोरी कौन संग लगन धराई, धन-धन तेरि है खुदाई।
बिन मांगे मेरी मंगनी जो कीन्ही, नेह की मिसरी खिलाई।
एक के नाम कर दीनी सजनी, पर घर की जो ठहराई।
गुन नहीं एक औगुन बहुतेरे, कैसे नौशा रिझाई।
खुसरो चले ससुरारी सजनी, संग कोई नहीं आई।
(शीर्ष पर
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16.आज
रंग
है
ऐ
माँ
रंग
है
री
आज
रंग
है
ऐ
माँ
रंग
है
री,
मेरे
महबूब
के
घर
रंग
है
री।
अरे
अल्लाह
तू
है
हर,
मेरे
महबूब
के
घर
रंग
है
री।
मोहे
पीर
पायो
निजामुद्दीन
औलिया,
निजामुद्दीन
औलिया-अलाउद्दीन
औलिया।
अलाउद्दीन
औलिया,
फरीदुद्दीन
औलिया,
फरीदुद्दीन
औलिया,
कुताबुद्दीन
औलिया।
कुताबुद्दीन
औलिया
मोइनुद्दीन
औलिया,
मुइनुद्दीन
औलिया
मुहैय्योद्दीन
औलिया।
आ
मुहैय्योदीन
औलिया,
मुहैय्योदीन
औलिया।
वो
तो
जहाँ
देखो
मोरे
संग
है
री।
अरे
ऐ
री
सखी
री,
वो
तो
जहाँ
देखो
मोरो
(बर)
संग
है
री।
मोहे
पीर
पायो
निजामुद्दीन
औलिया,
आहे,
आहे
आहे
वा।
मुँह
माँगे
बर
संग
है
री,
वो
तो
मुँह
माँगे
बर
संग
है
री।
निजामुद्दीन
औलिया
जग
उजियारो,
जग
उजियारो
जगत
उजियारो।
वो
तो
मुँह
माँगे
बर
संग
है
री।
मैं
पीर
पायो
निजामुद्दीन
औलिया।
गंज
शकर
मोरे
संग
है
री।
मैं
तो
ऐसो
रंग
और
नहीं
देख्यो
सखी
री।
मैं
तो
ऐसी
रंग।
देस-बदेस
में
ढूढ़
फिरी
हूँ,
देस-बदेस
में।
आहे,
आहे
आहे
वा,
ऐ
गोरा
रंग
मन
भायो
निजामुद्दीन।
मुँह
माँगे
बर
संग
है
री।
सजन मिलावरा इस आँगन मा।
सजन, सजन तन सजन मिलावरा।
इस आँगन में उस आँगन में।
अरे इस आँगन में वो तो, उस आँगन में।
अरे वो तो जहाँ देखो मोरे संग है री।
आज रंग है ऐ माँ रंग है री।
ऐ तोरा रंग मन भायो निजामुद्दीन।
मैं को तोरा रंग मन भायो निजामुद्दीन।
मुँह माँगे बर संग है री।
मैं तो ऐसो रंग और नहीं देखी सखी री।
ऐ महबूबे इलाही मैं तो ऐसो रंग और नहीं देखी।
देस विदेश में ढूँढ़ फिरी
हूँ।
आज रंग है ऐ माँ रंग है री।
मेरे महबूब के घर रंग है री।
(शीर्ष पर
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17.
मोरा जोबना।
मोरा जोबना नवेलरा भयो है गुलाल।
कैसे घर दीन्हीं बकस मोरी माल।
निजामुद्दीन औलिया को कोई समझाए,
ज्यों-ज्यों मनाऊँ वो तो रुसो ही जाए।
चूडियाँ फोड़ूं पलंग पे डारुँ
इस चोली को मैं दूँगी आग लगाए।
सूनी सेज डरावन लागै।
बिरहा अगिन मोहे डस डस जाए।
मोरा जोबना।
(शीर्ष पर
वापस)
18.
सकल
बन
फूल
रही
सरसों
सकल
बन
(सघन
बन)
फूल
रही
सरसों,
सकल
बन
(सघन
बन)
फूल
रही....
अम्बवा
फूटे,
टेसू
फूले,
कोयल
बोले
डार
डार,
और
गोरी
करत
शृंगार,
मलनियां
गढवा
ले
आई करसों,
सकल
बन
फूल
रही...
तरह
तरह
के
फूल
खिलाए,
ले
गढवा
हातन
में
आए
।
निजामुदीन
के
दरवाजे
पर,
आवन
कह
गए
आशिक
रंग,
और
बीत
गए
बरसों
।
सकल
बन
फूल
रही
सरसों
।
(शीर्ष पर
वापस)
19.रैनी
चढ़ी रसूल की सो रंग मौला के हाथ।
रैनी
चढ़ी
रसूल
की
सो
रंग
मौला
के
हाथ।
जिसके
कपरे
रंग
दिए
सो
धन
धन
वाके
भाग।।
खुसरो
बाजी
प्रेम
की
मैं
खेलूँ
पी
के
संग।
जीत
गयी
तो
पिया
मोरे
हारी
पी
के
संग।।
चकवा
चकवी
दो
जने
इन
मत
मारो
कोय।
ये
मारे
करतार
के
रैन
बिछोया
होय।।
खुसरो
ऐसी
पीत
कर
जैसे
हिन्दू
जोय।
पूत
पराए
कारने
जल
जल
कोयला
होय।।
खुसरवा
दर
इश्क
बाजी
कम
जि
हिन्दू
जन
माबाश।
कज़
बराए
मुर्दा
मा
सोज़द
जान-ए-खेस
रा।।
उजवल
बरन
अधीन
तन
एक
चित्त
दो
ध्यान।
देखत
में
तो
साधु
है
पर
निपट
पाप
की
खान।।
श्याम
सेत
गोरी
लिए
जनमत
भई
अनीत।
एक
पल
में
फिर
जात
है
जोगी
काके
मीत।।
पंखा
होकर
मैं
डुली,
साती
तेरा
चाव।
मुझ
जलती
का
जनम
गयो
तेरे
लेखान
भाव।।
नदी
किनारे
मैं
खड़ी
सो
पानी
झिलमिल
होय।
पी
गोरे
मैं
साँवरी
अब
किस
विध
मिलना
होय।।
साजन
ये
मत
जानियो
तोहे
बिछड़त
मोको चैन।
दिया
जलत
है
रात
में
और
जिया
जलत
बिन
रैन।।
रैन
बिना
जग
दुखी
और
दुखी
चन्द्र
बिन
रैन।
तुम
बिन
साजन
मैं
दुखी
और
दुखी
दरस
बिन
नैंन।।
अंगना
तो
परबत
भयो,
देहरी
भई
विदेस।
जा
बाबुल
घर
आपने,
मैं
चली
पिया
के
देस।।
(शीर्ष पर
वापस)
20.आ
साजन
मोरे
नयनन
में
आ
साजन
मोरे
नयनन
में,
सो
पलक
ढाप
तोहे
दूँ।
न
मैं
देखूँ
औरन
को,
न
तोहे
देखन
दूँ।
अपनी
छवि
बनाई
के
जो मैं
पी
के
पास
गई।
जब
छवि
देखी
पीहू
की
तो
अपनी
भूल
गई।।
खुसरो
पाती
प्रेम
की
बिरला
बाँचे
कोय।
वेद,
कुरान,
पोथी
पढ़े,
प्रेम
बिना
का
होय।।
संतों
की
निंदा
करे,
रखे
पर
नारी
से
हेत।
वे
नर
ऐसे
जाऐंगे,
जैसे
रणरेही
का
खेत।।
खुसरो
सरीर
सराय
है
क्यों
सोवे
सुख
चैन।
कूच
नगारा
सांस
का,
बाजत
है
दिन
रैन।।
(शीर्ष पर वापस)
21.
होली
(क)दैया री मोहे भिजोया री
दैया
री मोहे भिजोया री
शाह निजाम के रंग में
कपडे रंग के कुछ न होत है,
या रंग मैंने मन को डुबोया री
दैया री मोहे भिजोया री
(ख) हजरत
ख्वाजा
संग
खेलिए
धमाल
हजरत
ख्वाजा
संग
खेलिए
धमाल,
बाइस
ख्वाजा
मिल
बन
बन
आयो
तामें
हजरत
रसूल
साहब
जमाल।
हजरत
ख्वाजा
संग..
अरब
यार
तेरो
(तोरी)
बसंत
मनायो,
सदा
रखिए
लाल
गुलाल। हजरत
ख्वाजा
संग
...
(शीर्ष पर वापस)