हिंदी का रचना संसार

मुखपृष्ठ | उपन्यास | कहानी | कविता | नाटक | आलोचना | विविध | भक्ति काल | हिंदुस्तानी की परंपरा | विभाजन की कहानियाँ | अनुवाद | ई-पुस्तकें | छवि संग्रह | हमारे रचनाकार | हिंदी अभिलेख | खोज | संपर्क

 

1.
खा
गया पी गया
दे गया बुत्ता
सखि साजन?
ना सखि कुत्ता!

2.
लिपट लिपट के वा के सोई
छाती से छाती लगा के रोई
दांत से दांत बजे तो ताड़ा
सखि साजन? ना सखि जाड़ा!

3.
रात समय वह मेरे आवे
भोर भये वह घर उठि जावे
यह अचरज है सबसे न्यारा
सखि साजन? ना सखि तारा!

4.
नंगे पाँव फिरन नहिं देत
पाँव से मिट्टी लगन नहिं देत
पाँव का चूमा लेत निपूता
सखि साजन? ना सखि जूता!

5.
ऊंची अटारी पलंग बिछायो
मैं सोई मेरे सिर पर आयो
खुल गई अंखियां भयी आनंद
सखि साजन? ना सखि चांद!

6.
जब माँगू तब जल भरि लावे
मेरे मन की तपन बुझावे
मन का भारी तन का छोटा
सखि साजन? ना सखि लोटा!

7.
वो आवै तो शादी होय
उस बिन दूजा और कोय
मीठे लागें वा के बोल
सखि साजन? ना सखि ढोल!

8.
बेर-बेर सोवतहिं जगावे
ना जागूँ तो काटे खावे
व्याकुल हुई मैं हक्की बक्की
सखि साजन? ना सखि मक्खी!

9.
अति सुरंग है रंग रंगीले
है गुणवंत बहुत चटकीलो
राम भजन बिन कभी सोता
सखि साजन? ना सखि तोता!

10.
आप हिले और मोहे हिलाए
वा का हिलना मोए मन भाए
हिल हिल के वो हुआ निसंखा
सखि साजन? ना सखि पंखा!

11.
अर्ध निशा वह आया भौन
सुंदरता बरने कवि कौन
निरखत ही मन भयो अनंद
सखि साजन? ना सखि चंद!

12.
शोभा सदा बढ़ावन हारा
आँखिन से छिन होत न्यारा
आठ पहर मेरो मनरंजन
सखि साजन? ना सखि अंजन!

13.
जीवन सब जग जासों कहै
वा बिनु नेक धीरज रहै
हरै छिनक में हिय की पीर
सखि साजन? ना सखि नीर!

 

14.
बिन आये सबहीं सुख भूले
आये ते अँग-अँग सब फूले
सीरी भई लगावत छाती
सखि साजन? ना सखि पाती!

15.
सगरी रैन छतियां पर राख
रूप रंग सब वा का चाख
भोर भई जब दिया उतार
सखि साजन? ना सखि हार!

16.
पड़ी थी मैं अचानक चढ़ आयो
जब उतरयो तो पसीनो आयो
सहम गई नहीं सकी पुकार
सखि साजन? ना सखि बुखार!

17.
सेज पड़ी मोरे आंखों आए
डाल सेज मोहे मजा दिखाए
किस से कहूं अब मजा में अपना
सखि साजन? ना सखि सपना!

18.
बखत बखत मोए वा की आस
रात दिना रहत मो पास
मेरे मन को सब करत है काम
सखि साजन? ना सखि राम!

19.
सरब सलोना सब गुन नीका
वा बिन सब जग लागे फीका
वा के सर पर होवे कोन
सखि साजनना सखि! लोन(नमक)

20.
सगरी रैन मिही संग जागा
भोर भई तब बिछुड़न लागा
उसके बिछुड़त फाटे हिया
सखि साजनना, सखि! दिया(दीपक)

21.
राह चलत मोरा अंचरा गहे।
मेरी सुने अपनी कहे
ना कुछ मोसे झगडा-टंटा
सखि साजन ना सखि कांटा!

22.
बरसा-बरस वह देस में आवे,
मुँह से मुँह लाग रस प्यावे।
वा खातिर मैं खरचे दाम,
सखि साजन सखि! आम।।

23.
नित मेरे घर आवत है,
रात गए फिर जावत है।
मानस फसत काऊ के फंदा,
सखि साजन सखि! चंदा।।

24.
आठ प्रहर मेरे संग रहे,
मीठी प्यारी बातें करे।
श्याम बरन और राती नैंना,
सखि साजन सखि! मैंना।।

25.
घर आवे मुख घेरे-फेरे,
दें दुहाई मन को हरें,
कभू करत है मीठे बैन,
कभी करत है रुखे नैंन।
ऐसा जग में कोऊ होता,
सखि साजन सखि! तोता।।

 

(शीर्ष पर वापस)

उलटबाँसियाँ

भार भुजावन हम गए, पल्ले बाँधी ऊन।
कुत्ता चरखा लै गयो, काएते फटकूँगी चून।।

काकी फूफा घर में हैं कि नायं, नायं तो नन्देऊ
पांवरो होय तो ला दे, ला कथूरा में डोराई डारि लाऊँ।।

खीर पकाई जतन से और चरखा दिया जलाय।
आयो कुत्तो खा गयो, तू बैठी ढोल बजाय, ला पानी पिलाय।

भैंस चढ़ी बबूल पर और लपलप गूलर खाय।
दुम उठा के देखा तो पूरनमासी के तीन दिन।।

पीपल पकी पपेलियाँ, झड़ झड़ पड़े हैं बेर।
सर में लगा खटाक से, वाह रे तेरी मिठास।।

लखु आवे लखु जावे, बड़ो कर धम्मकला।
पीपर तन की मानूँ बरतन धधरया, बड़ो कर धम्मकला।।

भैंस चढ़ी बबूल पर और लप लप गूलर खाए।
उतर उतर परमेश्वरी तेरा मठा सिरानों जाए।।

भैंस चढ़ी बिटोरी और लप लप गूलर खाए।
उतर मेरे साँड की, कहीं हिफ्ज फट जाए।।

(शीर्ष पर वापस)

बूझ-अनबूझ पहेलियाँ

1.
गोश्त क्यों खाया?
डोम क्यों गाया?
उत्तरगला था

2.
जूता पहना नहीं
समोसा खाया नहीं
उत्तरतला था

3.
अनार क्यों चखा?
वज़ीर क्यों रखा?
उत्तरदाना था
( अनार का दाना और दाना=बुद्धिमान)


4.
सौदागर चे मे बायद? (सौदागर को क्या चाहिए )
बूचे(बहरे) को क्या चाहिए?
उत्तर (दो कान भी, दुकान भी)

5.
तिश्नारा चे मे बायद? (प्यासे को क्या चाहिए)
मिलाप को क्या चाहिए
उत्तरचाह (कुआँ भी और प्यार भी)

(शीर्ष पर वापस)

6.
शिकार चे मे बायद करद? ( शिकार किस चीज़ से करना चाहिए)
क़ुव्वते मग़्ज़ को क्या चाहिए? (दिमाग़ी ताक़त को बढ़ाने के लिए क्या चाहिए)
उत्तरबा दाम (जाल के साथ) और बादाम

7.
रोटी जली क्यों? घोडा अडा क्यों? पान सडा क्यों ?
उत्तरफेरा था

8.
पंडित प्यासा क्यों? गधा उदास क्यों ?
उत्तरलोटा था

 

9.

उज्जवल बरन अधीन तन, एक चित्त दो ध्यान।
देखत मैं तो साधु है, पर निपट पार की खान।।

उत्तर - बगुला (पक्षी)

 

10.
एक नारी के हैं दो बालक, दोनों एकहि रंग।
एक फिर एक ठाढ़ा रहे, फिर भी दोनों संग।

उत्तर - चक्की।
 

11.
आगे-आगे बहिना आई, पीछे-पीछे भइया।
दाँत निकाले बाबा आए, बुरका ओढ़े मइया।।

उत्तर भुट्टा
 

12.
चार अंगुल का पेड़, सवा मन का फ्ता।
फल लागे अलग अलग, पक जाए इकट्ठा।।

उत्तर - कुम्हार की चाक
 

13.
अचरज बंगला एक बनाया, बाँस बल्ला बंधन धने।
ऊपर नींव तरे घर छाया, कहे खुसरो घर कैसे बने।।

उत्तर - बयाँ पंछी का घोंसला

14.

माटी रौदूँ चक धर्रूँ, फेर्रूँ बारम्बर।
चातुर हो तो जान ले मेरी जात गँवार।।

उत्तर कुम्हार

15.

गोरी सुन्दर पातली, केहर काले रंग।
ग्यारह देवर छोड़ कर चली जेठ के संग।।

उत्तर - अहरह की दाल।

(शीर्ष पर वापस)

 

16.
ऊपर से एक रंग हो और भीतर चित्तीदार।
सो प्यारी बातें करे फिकर अनोखी नार।।

उत्तर सुपारी

17.
बाल नुचे कपड़े फटे मोती लिए उतार।
यह बिपदा कैसी बनी जो नंगी कर दई नार।।

उत्तर - भुट्टा (छल्ली)


18.
एक
नार कुँए में रहे,
वाका नीर खेत में बहे।
जो कोई वाके नीर को चाखे,
फिर जीवन की आस राखे।।

उत्तर तलवार
 

19.
एक जानवर रंग रंगीला,
बिना मारे वह रोवे।
उस के सिर पर तीन तिलाके,
बिन बताए सोवे।।

उत्तर - मोर।
 

20.
चाम मांस वाके नहीं नेक,
हाड़ मास में वाके छेद।
मोहि अचंभो आवत ऐसे,
वामे जीव बसत है कैसे।।

उत्तर - पिंजड़ा।

(शीर्ष पर वापस)

21.
स्याम बरन की है एक नारी,
माथे ऊपर लागै प्यारी।
जो मानुस इस अरथ को खोले,
कुत्ते की वह बोली बोले।।

उत्तर - भौं (भौंए आँख के ऊपर होती हैं।)

22.
एक
गुनी ने यह गुन कीना,
हरियल पिंजरे में दे दीना।
देखा जादूगर का हाल,
डाले हरा निकाले लाल।

उत्तर - पान।
 

23.
एक थाल मोतियों से भरा,
सबके सर पर औंधा धरा।
चारों ओर वह थाली फिरे,
मोती उससे एक गिरे।

उत्तर आसमान
 

24.
गोल
मटोल और छोटा-मोटा,
हर दम वह तो जमीं पर लोटा।
खुसरो कहे नहीं है झूठा,
जो बूझे अकिल का खोटा।।

उत्तर - लोटा।

25.
श्याम बरन और दाँत अनेक,
लचकत जैसे नारी।
दोनों हाथ से खुसरो खींचे
और कहे तू री।।

उत्तर - आरी।

(शीर्ष पर वापस)

26.
हाड़ की देही उज् रंग,
लिपटा रहे नारी के संग।
चोरी की ना खून किया
वाका सर क्यों काट लिया।

उत्तर - नाखून।
 

26.
बाला था जब सबको भाया,
बड़ा हुआ कुछ काम आया।
खुसरो कह दिया उसका नाव,
अर्थ करो नहीं छोड़ो गाँव।।

उत्तर - दिया।
 

27.
नारी से तू नर भई
और श्याम बरन भई सोय।
गली-गली कूकत फिरे
कोइलो-कोइलो लोय।।

उत्तर - कोयल।
 

28.
एक नार तरवर से उतरी,
सर पर वाके पांव
ऐसी नार कुनार को,
मैं ना देखन जाँव।।

उत्तर - मैंना।
 

29.
सावन भादों बहुत चलत है
माघ पूस में थोरी।
अमीर खुसरो यूँ कहें
तू बुझ पहेली मोरी।।

उत्तर - मोरी (नाली)
 

30.
तरवर
से इक तिरिया उतरी उसने बहुत रिझाया
बाप का उससे नाम जो पूछा आधा नाम बताया
आधा नाम पिता पर प्यारा बूझ पहेली मोरी
अमीर ख़ुसरो यूँ कहे अपना नाम नबोली

(शीर्ष पर वापस)

 

अमीर खुसरो - जीवन कथा  

अमीर खुसरो के गीत

 

 

मुखपृष्ठ | उपन्यास | कहानी | कविता | नाटक | आलोचना | विविध | भक्ति काल | हिंदुस्तानी की परंपरा | विभाजन की कहानियाँ | अनुवाद | ई-पुस्तकें | छवि संग्रह | हमारे रचनाकार | हिंदी अभिलेख | खोज | संपर्क

Copyright 2009 Mahatma Gandhi Antarrashtriya Hindi Vishwavidyalaya, Wardha. All Rights Reserved.