hindisamay head
:: हिंदी समय डॉट कॉम ::
धारावाहिक प्रस्‍तुति (10 सितंबर 2025), मुखपृष्ठ संपादकीय परिवार
खंड काव्य

जयद्रथ वध
मैथिलीशरण गुप्त

वाचक ! प्रथम सर्वत्र ही ‘जय जानकी जीवन’ कहो,
फिर पूर्वजों के शील की शिक्षा तरंगों में बहो।
दुख, शोक, जब जो आ पड़े, सो धैर्य पूर्वक सब सहो,
होगी सफलता क्यों नहीं कर्त्तव्य पथ पर दृढ़ रहो।।
अधिकार खो कर बैठ रहना, यह महा दुष्कर्म है;
न्यायार्थ अपने बन्धु को भी दण्ड देना धर्म है।
इस तत्व पर ही कौरवों से पाण्डवों का रण हुआ,
जो भव्य भारतवर्ष के कल्पान्त का कारण हुआ।।
सब लोग हिलमिल कर चलो, पारस्परिक ईर्ष्या तजो,
भारत न दुर्दिन देखता, मचता महाभारत न जो।।
हो स्वप्नतुल्य सदैव को सब शौर्य्य सहसा खो गया,
हा ! हा ! इसी समराग्नि में सर्वस्व स्वाहा हो गया।
दुर्वृत्त दुर्योधन न जो शठता-सहित हठ ठानता,
जो प्रेम-पूर्वक पाण्डवों की मान्यता को मानता,
तो डूबता भारत न यों रण-रक्त-पारावार में,
‘ले डूबता है एक पापी नाव को मझधार में।’
हा ! बन्धुओं के ही करों से बन्धु-गण मारे गये !
हा ! तात से सुत, शिष्य से गुरु स-हठ संहारे गये।
इच्छा-रहित भी वीर पाण्डव रत हुए रण में अहो।
कर्त्तव्य के वश विज्ञ जन क्या-क्या नहीं करते कहो ?
वह अति अपूर्व कथा हमारे ध्यान देने योग्य है,
जिस विषय में सम्बन्ध हो वह जान लेने योग्य है।
अतएव कुछ आभास इसका है दिया जाता यहाँ,
अनुमान थोड़े से बहुत का है किया जाता यहाँ।।
रणधीर द्रोणाचार्य-कृत दुर्भेद्य चक्रव्यूह को,
शस्त्रास्त्र, सज्जित, ग्रथित, विस्तृत, शूरवीर समूह को,
जब एक अर्जुन के बिना पांडव न भेद कर सके,
तब बहुत ही व्याकुल हुए, सब यत्न कर करके थके।।

पूरी सामग्री पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें

उपन्‍यास

मंझली दीदी
शरतचंद्र चट्टोपाध्याय

प्रकरण - 1
किशन की मां चने-मुरमुचे भून-भूनकर और रात-दिन चिन्ता करके बहुत ही गरीबी में उसे चौदह वर्ष का करके मर गई। किशन के लिए गांव में कही खड़े होने के लिए भी जगह नहीं रही। उसकी सौतेली बड़ी बहन कादम्बिनी की आर्थिक स्थिति अच्छी थी इसलिए सभी लोगों ने राय दी, "किशन, तुम बड़ी बहन के घर चले जाओ। वह बड़े आदमी हैं, तुम वहां अच्छी तरह रहोगे।"

मां के शोक में रोते-रोते किशन ने बुखार बुला लिया था । अन्त में अच्छे हो जाने पर उसने भीख मांग कर मां का श्राद्ध किया और मुंडे सिर पर एक छोटी सी पोटली रखकर अपनी बड़ी बहन के घर राजघाट पहुंच गया। बहन उसे पहचानती नहीं थी। जब उसका परिचय मिला और उसके आने का कारण मालूम हुआ तो एकदम आग बबूला हो गई। वह मजे में अपने बाल बच्चों के साथ गृहस्थी जमाए बैठी थी। अचानक यह क्या उपद्रव खडा हो गया?

गांव का बूढ़ा जो उसे रास्ता दिखाने के लिए यहां तक आया था, उसे दो-चार कड़ी बातें सुनाने के बाद कादम्बिनी ने कहा, "खूब, मेरे सगे को बुला लाए, रोटियां तोड़ने के लिए।" और फिर सौतेली मां को सम्बोधित करके बोली, "बदजात जब तक जीती रही तब तक तो एक बार भी नहीं पूछा। अब मरने के बाद बेटे को भेजकर कुशल पूछ रही है। जाओ बाबा, पराए को यहां से ले जाओ, मुझे यह सब झंझट नहीं चाहिए।"

निबंध
वासुदेवशरण अग्रवाल
मातृभूमि

कविता
मैथिली शरण गुप्त
जय भारत

 कविता संग्रह
राम प्रवेश रजक
सात देश में औरत

कविता संग्रह
शशिकांत सावन
गर्दिशों के गणतंत्र में

आलोचना
सुशील कुमार शर्मा
रामचरितमानस में नारी

संरक्षक
प्रो. कुमुद शर्मा
कुलपति

परामर्श समिति
प्रो. कृपाशंकर चौबे
प्रो. आनन्द पाटील
डॉ. राकेश मिश्र
डॉ. बालाजी चिरडे
डॉ. संदीप सपकाळे

संपादक
डॉ. अमित कुमार विश्वास
ई-मेल : editor@hindisamay.com

संपादकीय सहयोगी
डॉ. कुलदीप कुमार पाण्डेय
ई-मेल : editor@hindisamay.com

तकनीकी सहायक
श्री रविंद्र साहेबराव वानखडे

विशेष तकनीकी सहयोग
डॉ. अंजनी कुमार राय
डॉ. गिरीश चंद्र पाण्‍डेय

आवश्यक सूचना

हिंदीसमयडॉटकॉम पूरी तरह से अव्यावसायिक अकादमिक उपक्रम है। हमारा एकमात्र उद्देश्य दुनिया भर में फैले व्यापक हिंदी पाठक समुदाय तक हिंदी की श्रेष्ठ रचनाओं की पहुँच आसानी से संभव बनाना है। इसमें शामिल रचनाओं के संदर्भ में रचनाकार या/और प्रकाशक से अनुमति अवश्य ली जाती है। हम आभारी हैं कि हमें रचनाकारों का भरपूर सहयोग मिला है। वे अपनी रचनाओं को ‘हिंदी समय’ पर उपलब्ध कराने के संदर्भ में सहर्ष अपनी अनुमति हमें देते रहे हैं। किसी कारणवश रचनाकार के मना करने की स्थिति में हम उसकी रचनाओं को ‘हिंदी समय’ के पटल से हटा देते हैं।
ISSN 2394-6687

हमें लिखें

अपनी सम्मति और सुझाव देने तथा नई सामग्री की नियमित सूचना पाने के लिए कृपया इस पते पर मेल करें :
editor@hindisamay.com