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गाँव-गाँव
हवेली
जितना अधिक हम तुम्हें जान रहे हैं, उतना अधिक तुम हमारे लिए पहेली बनते जा रहे हो। बताओ, के. ने उनसे अनुरोध किया, जितना अधिक तुम मुझे जान रहे हो मुझे बताओ, तुम्हारी मुझसे जान पहचान कैसे हुई? मैं सब लिख लूंगा. लिख लेने पर शब्द में कुछ और ही वजन आ जाता है. उसके बाद फिर ऐसी किसी बकवास पर यकीन करना जरूरी नहीं रहता, जिसके बारे में कभी भी कहा जा सकता है कि उसका मतलब वो नहीं था. सफेद पर काला लिखा होने से इसे कभी भी सबूत के तौर पर पेश किया जा सकता है. यह
नई बात करी तुमने,
एक आवाज ने कहा. साथ वाले कमरे के दरवाजे पर अमालिया
खडी थी. वह
जागृत अपने नेत्रों से उसे उदासीनता पूर्वक देख रही थी. अभी तक तो यह था कि
तुम अपनी याददाश्त वापस पाना चाहते थे,
यह नहीं कि तुम उन्हें लिख कर रखना चाहते थे. गांव
वाले पढना नहीं जानते,
अमालिया ने उत्तर में कहा. और अगर वे जानते भी होते तो
करते नहीं. और अगर वे यह करते भी तो तुम्हारी शिकायत में कोई फर्क नहीं
आता -- कि शब्दों का अर्थ एक बार कुछ और दूसरी
बार कुछ हो सकता है. के उत्तर देने में हिचकिचाया. मैं ने खुद ने के उसने कहा. कई बार मुझे लगता है कि दूर से मुझे कोई कह रहा है और मुझे उसका अनुवाद करना है. मगर यह मुश्किल है. वह रूक जाता. बहुत मुश्किल है यह. अनुवाद करने को कुछ नहीं है. कांपना - कांपना है और भयावना - भयावना है, जो घृणित और भयोत्पादक है वह घृणित और भयोत्पादक ही रहता है. कोई भी इसमें कुछ नहीं बदल सकता, मगर मुझे इसका रिकॉर्ड रखना है. अमालिया आतिशदान के पास पडी बेंच की ओर बढी. यहां तुम बैठते थे और ओल्गा से बातें करते थे. मैं नहीं जानती क्या क्या बात करते थे तुम. लेकिन मैं जानती हूं कि उसने तुम्हें हमारे तमाम दुख दर्दों का ब्यौरा दिया था. गांव के लोग कहते थे कि तुम हमारा सत्यानाश करोगे. और अपवाद के तौर पर मेरी राय भी गांववालों से मिलती है. तुमने हमसे सब कुछ निकलवाया ताकि तुम्हारे हाथों में कुछ हो, हवेली के अफसरों के लिए छोटा सा पैकेट, ताकि तुम उनके कृपापात्र बनो, जैसे वे रिश्वतखोर है, लेकिन तुम्हारी किस्मत बुरी थी और हमार अच्छी कि तुम्हारी याददाश्त चली गयी. और अब तुम चाहते हो कि ओल्गा तुम्हें फिर से सब सुनाए ताकि तुम अफसरों के लिए बनाए पैकेट की रस्सी पर गांठ लगा सको. तुम कोई रिकॉर्ड नहीं रखोगे,हमारी जिन्दगी का नहीं. चले जाओ यहां से, जाओ,जाओ,जाओ. मैं ने हवेली से अपना रिश्ता नहीं तोडा और परिवार को दुखों के बोझ तले लाद रखा है, जिसे वह तभी से ढो रही है, ताकि तुम्हारे जैसा एक आए, हमारे घर में रहे, जिसके दिमाग में हवेली के रास्ते को छोड क़र और कोई बात नहीं है. और तुम्हारा भाई क्या करता है, के ने पूछा, बार्नाबास भी तो हवेली के लिए काम करता है. बच्चा बेचारा, अमालिया ने उंसास भरी और कितना खुश होना चाहिए हमें इस वजह से कि वह यह करता है. हम सब खुश हैं इस वजह से. हवेली से हमारा रिश्ता तुम्हारे जैसा नहीं है. तुमने बार्नाबास से दोस्ती सिर्फ इसलिए की थी कि वह हवेली का हरकारा है. तुमने सोचा था कि एक दिन वह तुम्हारी मांग का जवाब ले कर आऐगा और तुम्हारा उध्दार करेगा. उध्दार? तुम्हें क्या मैं स्वर्ग की वो कहानियां सुनाऊं जो मनुष्यों को सुनायी जाती हैं, ताकि वे वो करने को तैयार हों जो उनसे अपेक्षा की जाती है? मछलियों, पक्षियों, फूलों , सुगंधों और गायन - वादन की एक दुनिया की, जबकि वे दिन में पत्थर तोडते हों और रातों को छोटी - छोटी कोठरियों में सोते हों. बाहर चाहे विशाल खुला आसमान हो, लेकिन हम उसे सहन न कर पाएं. हो सकता है हर आदमी तुम्हारे भाई की नहीं बल्कि उस हरकारे की दोस्ती चाहता था जो संदेश लेकर आता था, जिन्हें कोई नहीं समझता था और जो समझने के लिए भेजे भी नहीं जाते थे. या क्योंकि उसे हवेली की राह मालूम थी और वह दूसरों को राह दिखा सकता था. मेरी मंशा यह नहीं है. वहां कैसे पहुंचा जाता है , यह मैं कब से जानता हूं. मैं ने मास्टर को यह समझाने की कोशिश की है, उसने मुझ पर यकीन नहीं किया. रास्ता सीधा है, एक दम सीधा, चाहे रास्ते में मोड़् आएं या पहाड और घाटियां पार करनी पडें. रास्ता दिशा जानता है , और उसका लक्ष्या ढाहांकित है. आगे बोलने से पहले उसने गहरी सांस ली. जहां तक जवाबों का सवाल है, वे मेरे पास किसी तीसरे के जरिए नहीं आ सकते, वे खुशामद नहीं मांगते, क्योंकि खुशामद झूठ है और घूस के जरिए जो प्राप्त किया जाए वह धोखा है. जवाब चेहरा देख कर दिये जाते हैं. के
ने प्रवेशद्वार तक जाकर उसे खोल दिया. दिन की रोशनी एक चुंधियाने वाली लकीर
के रूप में कमरे में प्रवेश कर गयी. वो रही ! बांह को लम्बा कर के उसने
बाहर हवेली की ओर इंगित किया.
अमालिया आतिशदान के पास पडी बेंच पर बैठ गयी. कमरे में छाए अंधकार में उसका
चेहरा पहचान में नहीं आ रहा था. जब रास्ता साफ साफ तुम्हारे सामने है
, तो तुम फिर
चले क्यों नहीं जाते उस पर, या उसे वहीं रहने दे
कर कहीं और. पर नहीं, तुम कहते हो,
तुम्हें रास्ता आता है, शायद
सचमुच आता है तुम्हें, मैं इस पर संदेह नहीं
करना चाहती, और तुम उस पर जाते नहीं. तुम और भी
कहीं नहीं जाते, बस ठहरे हो तुम,
और कोई नहीं जानता कि क्यों. तुम
लोगों को मुझसे डरने की कोई जरूरत नहीं है,
उसने कहा. बात मेरी नहीं
है. मेरा तुम लोगों से मेरी यादों के बारे में पूछना
हवेली की इच्छा के अनुरूप है, जिसे में पूरा कर
रहा हूं. क्योंकि मुझे अब मेरी यादों के बारे में पूछने का अवसर मिला है.
हम सब का कभी कहीं घर होता था. वह कब नहीं रहा और क्यों ?
जहां तक मेरा प्रश्न है मामला साफ है. यह मेरी वजह से
हुआ , अमालिया ने कहा. एक अफसर ने एक बार मुझे
डाकबंगले में बुलाया था, जहां ऊंचे अफसर तब रात
बिताया करते थे, जब उन्हें गांव में कोई मामला
निपटाना होता था, और कभी - कभी ऐशो - आराम के
लिए भी. गांव वाले उस बंगले में नहीं घुस सकते,
जब तक कि किसी पर खास मेहरबानी न हो. उसकी आवाज में कडवाहट थी. हां,
मालिकों की ऊब मिटाने के लिए चुना जाना खास होना कहलाता
है, जो अनिच्छा से और बिना प्यार के परवान नहीं
चढता. मालिक लोग अपने घोडोंं
की इच्छा का ज्यादा ध्यान रखते हैं और उनसे औरतों के मुकाबले ज्यादा प्यार
से पेश आते हैं. लेकिन इस सम्मान के लिए मैं ने संदेशवाहक का आभार नहीं
माना, बल्कि उस पत्र के,
जो मुझे सम्मानित करने वाला था,
पुर्जें क़र दिए, और उस आदमी
के मुंह पर मैं ने वह पुर्जे फ़ेंक मारे, जो
उन्हें लेकर आया था. हमारी दुर्दशा का यही कारण है. नहीं, उसने कहा. तुम लोगों की दुर्दशा कुछ दूसरी है. तुमने हवेली से किनारा कर लिया है, क्योंकि तुम्हें हवेली में यकीन है, जो कि और सब को भी है, उसी पूर्णतया निराश ढंग से. सिर्फ: तुम इस निराशा के बारे में जानती हो, जिसका कारण है कि तुम हवेली की आस रखते हो, उसके उपासक हो. जब तुम लोग सुबह सवेरे जागते हो तो तुम्हारा पहला विचार हवेली के साथ जुडा होता है, और रात को सोने से पहले अंतिम विचार भी. शायद रात को तुम लोग सपने भी उसी के लेते हो. तुम सोचते हो कि वहां कोई ऐसा है, जिसके पास सत्य है, ऐसे ही जैसे सबके साथ जन्म लेने के बाद जीवन होता है या सबके पास जितना जीवन होता है, उससे भी अधिक उसके पास सत्य है. क्योंकि वास्तव में जीवन तो तुम लोगों ने कब से हवेली के पास रेहन रखा हुआ है और इस तरह दिनों को त्याग दिया है, जीवन को प्रतीक्षा में बदल दिया है, एक ऐसी उम्मीद में, जो निरर्थक नहीं तो संदिग्ध तो है ही. तुमने, अमालिया, हवेली की खिलाफत इसलिए की है कि तुम उसकी ईमानदारी, जनकल्याण की भावना, सहानुभूति में विश्वास रखती हो, तुम उसका अनुग्रह पाना चाहती हो और उस प्रेम की पुष्टि चाहती हो, जो है ही नहीं. हवेली प्रेम नहीं कर सकती. हवेली अनुग्रह नहीं करती, उसे गांववालों के जीवन से कोई सहानुभूति नहीं है, और उसके कानून को इस ईमानदारी से कुछ नहीं लेना - देना, जिसकी तुम एक दूसरे से अपेक्षा रखते हो, जैसे उदाहरण के तौर पर अच्छे काम का सही पारिश्रमिक दिया जाए या दिया गया वचन निभाया जाए, इत्यादि. उसके लिए एक अनुबंध होता है, चाहे वह कह कर किया जाए या बिन कहे. लेकिन ऐसा कोई अनुबंध नहीं है जो सत्ता को मजबूर करे अशक्त की मदद को दौडी आए, मनुष्य - मनुष्य की मदद करे.
हवेली के साथ ऐसा कोई अनुबंध नहीं है,
जिसके अन्तर्गत गांव को उसकी स्वतंत्रता छीनने का बदला
चुकाया जाए. अत: गांव हवेली के अधीन नहीं. बल्कि मामला कुछ विपरीत है.
चूंकि हवेली ने कब से तुम लोगों को एक ऐसा जीवन जीने को छोड दिया है जिसमें
वहां ऊपर-- के ने खिडक़ी के बाहर इशारा किया--
किसी की दिलचस्पी नहीं है,
इसलिए हवेली गांव पर निर्भर हो गयी है, उसके
विश्वास और बेकार की आज्ञाकारिता पर निर्भर,
जबकि गांव में सब स्वतन्त्र हैं, चाहे एक
घिनावने ढंग से स्वतन्त्र हैं, और अपने विश्वास
से वे घिनावनेपन पर पर्दा डालने की कोशिश करते हैं. अंतत: होता क्या है कि
गांव वाले स्वयं इन कानूनों और नियमों को बनाते हैं,
जो फिर हवेली से होकर उनके पास वापस आ जाते हैं. और तुम,
अभिमानी अमालिया, इस खेल में
वही भूमिका निभा रही हो, जिसे तुम नकार रही हो.
जितना तुम उसे नकारती हो, उतना ही अधिक तुम उसे
बेहतर निभाती हो, भूमिका की हास्यास्पदता के
बावजूद, एक अहमन्य महानता के मोह में फंसी. मैं
आरंभ को खोजना चाहता हूं,
वह बुदबुदाया, जहां से सब
प्रारंभ हुआ था, और सिर्फ देखना और ऌंतजार नहीं
करना चाहता . इस तरह इंसान इंतजार करता है और जिन्दगी गुज़र जाती है,
बस ऐसे ही जैसे अस्थायी तौर पर आया हो,
पहला सोपान पहले आता है,
परन्तु यहां हमारा पहला सोपान है. एक दिन एक अजनबी गांव में आता है. वह विश्वास से भरपूर आता है, वरना वह जंगलों में छुप जाता या उस पुल के नीचे, जिस पर से गांव पहुंचा जाता है वह थका हारा और भूखा पहुंचता है लोग उसे अविश्वास की दृष्टि से देखते हैं. लोग उसे स्वीकार करते और सथ ही अस्वीकार करते हैं. लोग उसे रहने के लिए छोटी सी जगह देते हैं लेकिन साथ ही नाराज हैं कि वह जिन्दा क्यों है. लोग उससे बात करते हैं लेकिन कहते कुछ नहीं. उसका निशान गुम हो जाता है, जैसे वह कभी न आया हो न कहीं गया हो. वह है ही नहीं. वह इस तरह मिट जाता है, जैसे ब्लैकबोर्ड पर लिखी इबारत, जिसे मास्टर स्कूल का घंटा खत्म होने के बाद पौंछ डालता है. और तब किसी दिन, अनायास, लोग उसे मरणासन्न अवस्था में पाते हैं, क्या कहते हैं उसे, एक कचरे के ढेर से एक कोने में. यह
कहानी अच्छी नहीं है.
अच्छा, उसने
कहा, यह कहानी भी बेहतर नहीं लगती. मतलब कि तुम
जानते हो कि कहानी कैसे शुरु होती है.शायद तुम जानते हो कि वह आगे कैसे
बढती है? अनुवादक : अमृत मेहता
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