गीतावली - तुलसीदास
(बालकाण्ड)
ह्वै हौ लाल कबहिं बड़े बलि मैया
राग सोरठा
ह्वै हौ लाल कबहिं बड़े बलि मैया |
राम लखन भावते भरत-रिपुदवन चारु चार्यो भैया ||
बाल बिभूषन बसन मनोहर अंगनि बिरचि बनैहों |
सोभा निरखि, निछावरि करि, उर लाइ बारने जैहों ||
छगन-मगन अँगना खेलिहौ मिलि, ठुमुकु-ठुमुकु कब धैहौ |
कलबल बचन तोतरे मञ्जुल कहि "माँ मोहिं बुलैहौ ||
पुरजन-सचिव, राउ-रानी सब, सेवक-सखा-सहेली |
लैहैं लोचन लाहु सुफल लखि ललित मनोरथ-बेली ||
जा सुखकी लालसा लटू सिव, सुक-सनकादि उदासी |
तुलसी तेहि सुखसिन्धु कौसिला मगन, पै प्रेम-पियासी ||
पगनि कब चलिहौ चारौ भैया ?
प्रेम-पुलकि, उर लाइ सुवन सब, कहति सुमित्रा मैया ||
सुन्दर तनु सिसु-बसन-बिभुषन नखसिख निरखि निकैया |
दलि तृन, प्रान निछावरि करि करि लैहैं मातु बलैया ||
किलकनि, नटनि, चलनि,चितवनि, भजि मिलनि मनोहर तैया |
मनि-खम्भनि-प्रतिबिम्ब झलक, छबि छलकिहै भरि अँगनैया ||
बालबिनोद, मोद मञ्जुल बिधु, लीला ललित जुन्हैया |
भूपति पुन्य-पयोधि उमँग, घर-घर आनन्द-बधैया ||
ह्वै हैं सकल सुकृत-सुख-भाजन, लोचन-लाहु लुटैया |
अनायास पाइहैं जनमफल तोतरें बचन सुनैया ||
भरत, राम, रिपुदवन, लषनके चरित-सरित अन्हवैया |
तुलसी तबके-से अजहुँ जानिबे रघुबर-नगर-बसैया ||
चुपरि उबटि अनाहवाइकै नयन आँजे
राग केदारा
चुपरि उबटि अनाहवाइकै नयन आँजे,
चिर रुचि तिलक गोरोचनको कियो है |
भ्रूपर अनूप मसिबिन्दु, बारे बारे बार
बिलसत सीसपर, हेरि हरै हियो है ||
मोदभरी गोद लिये लालति सुमित्रा देखि
देव कहैं, सबको सुकृत उपवियो है |
मातु, पितु, प्रिय, परिजन, पुरजन धन्य,
पुन्यपुञ्ज पेखि पेखि प्रेमरस पियो है ||
लोहित ललित लघु चरन-कमल चारु,
चाल चाहि सो छबि सुकबि जिय जियो है |
बालकेलि बातबस झलकि झलमलत
सोभाकी दीयटि मानो रुप-दीप दियो है ||
राम-सिसु सानुज चरित चारु गाइ-सुनि
सुजन सादर जनम-लाहु लियो है |
तुलसी बिहाइ दसरथ दसचारिपुर
ऐसे सुख जोग बिधि बिरच्यो न बियो है ||
राम-सिसु गोद महामोद भरे दसरथ,
कौसिलाहु ललकि लषनलाल लये हैं |
भरत सुमित्रा लये, कैकयी सत्रुसमन,
तन प्रेम-पुलक मगन मन भये हैं ||
मेढ़ी लटकन मनि-कनक-रचित, बाल-
भूषन बनाइ आछे अंग अंग ठये हैं |
चाहि चुचुकारि चूमि लालत लावत उर
तैसे फल पावत जैसे सुबीज बये हैं ||
घन-ओट बिबुध बिलोकि बरषत फूल
अनुकूल बचन कहत नेह नये हैं |
ऐसे पितु, मातु, पूत, त्रिय, परिजन बिधि
जानियत आयु भरि येई निरमये हैं ||
"अजर अमर होहु, "करौ हरिहर छोहु
जरठ जठेरिन्ह आसिरबाद दये हैं |
तुलसी सराहैं भाग तिन्हके, जिन्हके हिये
डिम्भ-राम-रुप-अनुराग रङ्ग रये हैं ||
आजु अनरसे हैं भोरके, पय पियत न नीके
राग आसावरी
"आजु अनरसे हैं भोरके, पय पियत न नीके |
रहत न बैठे, ठाढ़े, पालने झुलावत हू, रोवत राम मेरो
सो सोच सबहीके ||
देव, पितर, ग्रह पूजिये तुला तौलिये घीके |
तदपि कबहुँ कबहुँक सखी ऐसेहि अरत जब
परत दृष्टि दुष्ट तीके ||
बेगि बोलि कुलगुर, छुऔ माथे हाथ अमीके |
सुनत आइ ऋषि कुस हरे नरसिंह मन्त्र पढ़े, जो
सुमिरत भय भीके ||
जासु नाम सरबस सदासिव-पारबतीके |
ताहि झरावति कौसिला, यह रीति प्रीतिकी हिय
हुलसति तुलसीके ||
माथे हाथ ऋषि जब दियो राम किलकन लागे |
महिमा समुझि, लीला बिलोकि गुरु सजल नयन, तनु पुलक,
रोम रोम जागे ||
लिये गोद, धाए गोदतें, मोद मुनि मन अनुरागे |
निरखि मातु हरषी हिये आली-ओट कहति मृदु बचन
प्रेमके-से पागे ||
तुम्ह सुरतरु रघुबंसके, देत अभिमत माँगे |
मेरे बिसेषि गति रावरी, तुलसी प्रसाद जाके सकल
अमङ्गल भागे ||
अमिय-बिलोकनि करि कृपा मुनिबर जब जोए |
तबतें राम अरु भरत, लषन, रिपुदवन, सुमुख सखि, सकल
सुवन सुख सोए ||
सुमित्रा लाय हिये फनि मनि ज्यों गोए |
तुलसी नेवछावरि करति मातु अतिप्रेम-मगन-मन,
सजल सुलोचन कोये ||
मातु सकल, कुल-गुर-बधू, प्रिय सखी सुहाई |
सादर सब मङ्गल किए महि-मनि-महेस पर
सबनि सुधेनु दुहाई ||
बोलि भूपभूसुर लिये अति बिनय बड़ाई |
पूजि पायँ, सनमानि, दान दिये, लहि असीस, सुनि
बरषैं सुमन सुरसाईँ ||
घर-घर पुर बाजन लगीं आनन्द-बधाई |
सुख-सनेह तेहि समयको तुलसी जानै जाको चोर्यो
है चित चहुँ भाई ||
या सिसुके गुन नाम-बड़ाई
राग धनाश्री
या सिसुके गुन नाम-बड़ाई |
को कहि सकै, सुनहु नरपति, श्रीपति समान प्रभुताई ||
जद्यपि बुधि, बय, रुप, सील, गुन समै चारु चार्यो भाई |
तदपि लोक-लोचन-चकोर-ससि राम भगत-सुखदाई ||
सुर, नर, मुनि करि अभय, दनुज हति, हरहि, धरनि गरुआई |
कीरति बिमल बिस्व-अघमोचनि रहिहि सकल जग छाई ||
याके चरन-सरोज कपट तजि जे भजिहै मन लाई |
ते कुल जुगल सहित तरिहैं भव, यह न कछू अधिकाई ||
सुनि गुरबचन पुलक तन दम्पति, हरष न हृदय समाई |
तुलसिदास अवलोकि मातु-मुख प्रभु मनमें मुसुकाई ||
अवध आजु आगमी एकु आयो
राग बिलावल
अवध आजु आगमी एकु आयो |
करतल निरखि कहत सब गुनगन, बहुतन्ह परिचौ पायो ||
बूढ़ो बड़ो प्रमानिक ब्राह्मन सङ्कर नाम सुहायो |
सँग सिसुसिष्य, सुनत कौसल्या भीतर भवन बुलायो ||
पायँ पखारि, पूजि दियो आसन असन बसन पहिरायो |
मेले चरन चारु चार्यो सुत माथे हाथ दिवायो ||
नखसिख बाल बिलोकि बिप्रतनु पुलक, नयन जल छायो |
लै लै गोद कमल-कर निरखत, उर प्रमोद न अमायो ||
जनम प्रसङ्ग कह्यो कौसिक मिस सीय-स्वयम्बर गायो |
राम, भरत, रिपुदवन, लखनको जय सुख सुजस सुनायो ||
तुलसिदास रनिवास रहसबस, भयो सबको मन भायो |
सनमान्यो महिदेव असीसत सानँद सदन सिधायो ||
पौढ़िये लालन, पालने हौं झुलावौं
राग केदारा
पौढ़िये लालन, पालने हौं झुलावौं
कर पद मुख चखकमल लसत लखि लोचन-भँवर भुलावौं ||
बाल-बिनोद-मोद-मञ्जुलमनि किलकनि-खानि खुलावौं |
तेइ अनुराग ताग गुहिबे कहँ मति मृगनयनि बुलावौं ||
तुलसी भनित भली भामिनि उर सो पहिराइ फुलावौं |
चारु चरित रघुबर तेरे तेहि मिलि गाइ चरन चितु लावौं ||
सोइये लाल लाडिले रघुराई |
मगन मोद लिये गोद सुमित्रा बार बार बलि जाई ||
हँसे हँसत, अनरसे अनरसत प्रतिबिम्बनि ज्यों झाँई |
तुम सबके जीवनके जीवन, सकल सुमङ्गलदाई ||
मूल मूल सुरबीथि-बेलि, तम-तोम सुदल अधिकाई |
नखत-सुमन, नभ-बिटप बौण्डि मानो छपा छिटकि छबि छाई ||
हौ जँभात, अलसात, तात! तेरी बानि जानि मैं पाई |
गाइ गाइ हलराइ बोलिहौं सुख नीन्दरी सुहाई ||
बछरु, छबीलो छगनमगन मेरे, कहति मल्हाइ मल्हाई |
सानुज हिय हुलसति तुलसीके प्रभुकी ललित लरिकाई ||
ललन लोने लेरुआ, बलि मैया |
सुख सोइए नीन्द-बेरिया भई, चारु-चरित चार्यो भैया ||
कहति मल्हाइ लाइ उर छिन-छिन, "छगन छबीले छोटे छैया |
मोद-कन्द कुल कुमुद-चन्द्र मेरे रामचन्द्र रघुरैया||
रघुबर बालकेलि सन्तनकी सुभग सुभद सुरगैया |
तुलसी दुहि पीवत सुख जीवत पय सप्रेम घनी घैया ||
सुखनीन्द कहति आलि आइहौं |
राम, लखन, रिपुदवन, भरत सिसु करि सब सुमुख सोआइहौं ||
रोवनि, धोवनि, अनखानि, अनरसनि, डिठि-मुठि निठुर नसाइहौं |
हँसनि, खेलनि, किलकनि, आनन्दनि भूपति-भवन बसाइहौं ||
गोद बिनोद-मोदमय मूरति हरषि हरषि हलराइहौं |
तनु तिल तिल करि, बारि रामपर, लेहौं रोग बलाइहौं ||
रानी-राउ सहित सुत परिजन निरखि नयन-फल पाइहौं |
चारु चरित रघुबंस-तिलकके तहँ तुलसी मिलि गाइहौं ||
खेलि खेल सुखेलनिहारे
राग टोड़ी
खेलि खेल सुखेलनिहारे |
उतरि उतरि, चुचुकारि तुरङ्गनि, सादर जाइ जोहारे ||
बन्धु-सखा-सेवक सराहि, सनमानि सनेह सँभारे |
दिये बसन-गज-बाजि साजि सुभ साज सुभाँति सँवारे ||
मुदित नयन-फल पाइ, गाइ गुन सुर सानन्द सिधारे |
सहित समाज राजमन्दिर कहँ राम राउ पगु धारे ||
भूप-भवन घर-घर घमण्ड कल्यान कोलाहल भारे |
निरखि हरषि आरती-निछावरि करत सरीर बिसारे ||
नित नए मङ्गल-मोद अवध सब, सब बिधि लोग सुखारे |
तुलसी तिन्ह सम तेउ जिन्हके प्रभुतें प्रभु-चरित पियारे || |
सोहत सहज सुहाये नैन
राग बिलावल
सोहत सहज सुहाये नैन |
खञ्जन मीन कमल सकुचत तब जब उपमा चाहत कबि दैन ||
सुन्दर सब अंगनि सिसु-भूषन राजत जनु सोभा आये लैन |
बड़ो लाभ, लालची लोभबस रहि गयो लखि सुखमा बहु मैन ||
भोर भूप लिये गोद मोद भरे, निरखत बदन, सुनत कल बैन |
बालक-रूप अनूप राम-छबि निवसति तुलसिदास-उर-ऐन ||
भोर भयो जागहु, रघुनन्दन
राग बिभास
भोर भयो जागहु, रघुनन्दन | गत-व्यलीक भगतनि उर-चन्दन ||
ससि करहीन, छीन दुति तारे | तमचुर मुखर, सुनहु मेरे प्यारे ||
बिकसित कञ्ज, कुमुद बिलखाने | लै पराग रस मधुप उड़ाने ||
अनुज सखा सब बोलनि आये | बन्दिन्ह अति पुनीत गुन गाये ||
मनभावतो कलेऊ कीजै | तुलसिदास कहँ जूठनि दीजै ||
प्रात भयो तात, बलि मातु बिधु-बदनपर
राग बिभास
प्रात भयो तात, बलि मातु बिधु-बदनपर
मदन वारौं कोटि, उठो प्रान-प्यारे !
सूत-मागध-बन्दि बदत बिरुदावली,
द्वार सिसु अनुज प्रियतम तिहारे ||
कोक गतसोक अवलोकि ससि छीनछबि,
अरुनमय गगन राजत रुचि तारे |
मनहुँ रबि बाल मृगराज तमनिकर-करि
दलित, अति ललित मनिगन बिथारे ||
सुनहु तमचुर मुखर,कीर कलहंस पिक
केकि रव कलित, बोलत बिहँग बारे |
मनहुँ मुनिबृन्द रघुबंसमनि! रावरे
गुनत गुन आश्रमनि सपरिवारे ||
सरनि बिकसित कञ्जपुञ्ज मकरन्दवर,
मञ्जुतर मधुर मधुकर गुँजारे |
मनहुँ प्रभुजनम सुनि चैन अमरावती,
इन्दिरानन्द-मन्दिर सँवारे ||
प्रेम-सम्मिलित बर बचन-रचना अकनि
राम राजीव-लोचन उघारे |
दास तुलसी मुदित, जननि करै आरती,
सहज सुन्दर अजिर पाँव धारे ||
जागिये कृपानिधान जानराय रामचन्द्र
राग बिभास
जागिये कृपानिधान जानराय रामचन्द्र
जननी कहै बार-बार भोर भयो प्यारे |
राजिवलोचन बिसाल, प्रीति-बापिका मराल,
ललित कमल-बदन ऊपर मदन कोटि बारे ||
अरुन उदित, बिगत सरबरी, ससाङ्क किरनहीन,
दीन दीपजोति, मलिन, दुति समूह तारे |
मनहुँ ग्यानघन-प्रकास, बीते सब भव-बिलास
आस-त्रास तिमिर तोष तरनि-तेज जारे ||
बोलत खगनिकर मुखर मधुर करि प्रतीति सुनहु
श्रवन, प्रानजीवन धन, मेरे तुम बारे |
मनहुँ बेद-बन्दी-मुनिबृन्द-सूत-मागधादि
बिरुद बदत "जय जय जय जयति कैटभारे||
बिकसित कमलावली, चले प्रपुञ्ज चञ्चरीक,
गुञ्जत कल कोमल धुनि त्यागि कञ्ज न्यारे |
जनु बिराग पाइ सकल सोक-कूप-गृह बिहाइ
भृत्य प्रेममत्त फिरत गुनत गुन तिहारे ||
सुनत बचन प्रिय रसाल जागे अतिसय दयाल
भागे जञ्जाल बिपुल, दुख-कदम्ब दारे |
तुलसिदास अति अनन्द देखिकै मुखारबिन्द,
छूटे भ्रमफन्द परम मन्द द्वन्द भारे ||
बोलत अवनिप-कुमार ठाढ़े नृपभवन-द्वार,
रुप-सील-गुन उदार जागहु मेरे प्यारे |
बिलखित कुमुदनि, चकोर, चक्रवाक हरष भोर, -तुलसीदास
राग बिभास
बिलखित कुमुदनि, चकोर, चक्रवाक हरष भोर,
करत सोर तमचुर खग, गुञ्जत अलि न्यारे ||
रुचिर मधुर भोजन करि, भूषन सजि सकल अंग,
सङ्ग अनुज बालक सब बिबिध बिधि सँवारे |
करतल गहि ललित चाप भञ्जन रिपु-निकर-दाप,
कटितट पटपीत, तून सायक अनियारे ||
उपबन मृगया-बिहार-कारन गवने कृपाल,
जननी मुख निरखि पुन्यपुञ्ज निज बिचारे |
तुलसिदास सङ्ग लीजै, जानि दीन अभय कीजै
दीजै मति बिमल गावै चरित बर तिहारे ||
खेलन चलिये आनँदकन्द
राग नट
खेलन चलिये आनँदकन्द |
सखा प्रिय नृपद्वार ठाढ़े बिपुल बालक-बृन्द ||
तृषित तुम्हरे दरस कारन चतुर चातक-दास |
बपुष-बारिद बरषि छबि-जल हरहु लोचन-प्यास ||
बन्धु-बचन बिनीत सुनि उठे मनहुँ केहरि-बाल |
ललित लघु सर-चाप कर, उर-नयन-बाहु बिसाल ||
चलत पद प्रतिबिम्ब राजत अजिर सुखमा-पुञ्ज |
प्रेमबस प्रति चरन महि मानो देति आसन कञ्ज ||
निरखि परम बिचित्र सोभा चकित चितवहिं मात |
हरष-बिबस न जात कहि, "निज भवन बिहरहु, तात ||
देखि तुलसीदास प्रभु-छबि रहे सब पल रोकि |
थकित निकर चकोर मानहुँ सरद इंदु बिलोकि ||
बिहरत अवध-बीथिन राम
राग नट
बिहरत अवध-बीथिन राम |
सङ्ग अनुज अनेक सिसु, नव-नील-नीरद स्याम ||
तरुन अरुन-सरोज-पद बनी कनकमय पदत्रान |
पीत-पट कटि तून बर, कर ललित लघु धनु-बान ||
लोचननिको लहत फल छबि निरखि पुर-नर-नारि |
बसत तुलसीदास उर अवधेसके सुत चारि ||
जैसे राम ललित तैसे लोने लषन लालु
राग नट
जैसे राम ललित तैसे लोने लषन लालु |
तैसेई भरत सील-सुखमा-सनेह-निधि, तैसेई सुभग सँग सत्रुसालु ||
धरे धनु-सर कर, कसे कटि तरकसी, पीरे पट ओढ़े चले चारु चालु |
अंग-अंग भूषन जरायके जगमगत, हरत जनके जीको तिमिरजालु ||
खेलत चौहट घाट बीथी बाटिकनि प्रभु सिव सुप्रेम-मानस-महालु |
सोभा-दान दै दै सनमानत जाचकजन करत लोक-लोचन निहालु ||
रावन-दुरित-दुख दलैं सुर कहैं आजु "अवध सकल सुखको सुकालु|
तुलसी सराहैं सिद्ध सुकृत कौसल्याजूके, भूरि भाग-भाजन भुवालु ||
ललित-ललित लघु-लघु धनु-सर कर
राग ललित
ललित-ललित लघु-लघु धनु-सर कर,
तैसी तरकसी कटि कसे, पट पियरे |
ललित पनही पाँय पैञ्जनी-किङ्किनि-धुनि,
सुनि सुख लहै मनु, रहै नित नियरे ||
पहुँची अंगद चारु, हृदय पदिक हारु,
कुण्डल-तिलक-छबि गड़ी कबि जियरे |
सिरसि टिपारो लाल, नीरज-नयन बिसाल,
सुन्दर बदन, ठाढ़े सुरतरु सियरे ||
सुभग सकल अंग, अनुज बालक सङ्ग,
देखि नर-नारि रहैं ज्यों कुरङ्ग दियरे |
खेलत अवध-खोरि, गोली भौंरा चक डोरि,
मुरति मधुर बसै तुलसीके हियरे ||
छोटिऐ धनुहियाँ, पनहियाँ पगनि छोटी
राग ललित
छोटिऐ धनुहियाँ, पनहियाँ पगनि छोटी,
छोटिऐ कछौटी कटि, छोटिऐ तरकसी |
लसत झँगूली झीनी, दामिनिकी छबि छीनी,
सुन्दर बदन, सिर पगिया जरकसी ||
बय-अनुहरत बिभूषन बिचित्र अंग,
जोहे जिय आवति सनेह की सरक सी |
मुरतिकी सूरति कही न परै तुलसी पै,
जानै सोई जाके उर कसकै करक सी ||
राम-लषन इक ओर, भरत-रिपुदवन लाल इक ओर भये
राग टोड़ी
राम-लषन इक ओर, भरत-रिपुदवन लाल इक ओर भये |
सरजुतीर सम सुखद भूमि-थल, गनि-गनि गोइयाँ बाँटि लये ||
कन्दुक-केलि-कुसल हय चढ़ि-चढ़ि, मन कसि-कसि ठोङ्कि-ठोङ्कि खये |
कर-कमलनि बिचित्र चौगानैं, खेलन लगे खेल रिझये ||
ब्योम बिमाननि बिबुध बिलोकत खेलक पेखक छाँह छये |
सहित समाज सराहि दसरथहि बरषत निज तरु-कुसुम-चये ||
एक लै बढ़त एक फेरत, सब प्रेम-प्रमोद-बिनोद-मये |
एक कहत भै हार रामजूकी, एक कहत भैया भरत जये ||
प्रभु बकसत गज बाजि, बसन-मनि, जय धुनि गगन निसान हये |
पाइ सखा-सेवक जाचक भरि जनम न दुसरे द्वार गये ||
नभ-पुर परति निछावरि जहँ तहँ, सुर-सिद्धनि बरदान दये |
भूरि-भाग अनुराग उमगि जे गावत-सुनत चरित नित ये ||
हारे हरष होत हिय भरतहि, जिते सकुच सिर नयन नये |
तुलसी सुमिरि सुभाव-सील सुकृती तेइ जे एहि रङ्ग रए ||
भूमितल भूपके बड़े भाग - तुलसीदास
राग जैतश्री
भूमितल भूपके बड़े भाग |
राम लखन रिपुदमन भरत सिसु निरखत अति अनुराग ||
बालबिभूषन लसत पायँ मृदु मञ्जुल अंग-बिभाग |
दसरथ-सुकृत मनोहर बिरवनि रूप-करह जनु लाग ||
राजमराल बिराजत बिहरत जे हर-हृदय-तड़ाग |
ते नृप-अजिर जानु कर धावत धरन चटक चल काग ||
सिद्ध सिहात, सराहत मुनिगन, कहैं सुर किन्नर नाग |
"ह्वै बरु बिहँग बिलोकिय बालक बसि पुर उपबन बाग||
परिजन सहित राय रानिन्ह कियो मज्जन प्रेम-प्रयाग |
तुलसी फल ताके चार्यो मनि मरकत पङ्कजराग ||
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