हास्य
–
व्यंग्य
:
कंकर स्तोत्र
-भारतेंदु
हरिश्चन्द्र
(सन्-
1875-85
के दरमियान
लिखा गया
यह व्यंग्य आज
भी प्रासंगिक है. तब भारत में सड़कें धूल-मिट्टी-कंकड़ युक्त होती
थीं
–
डामर की पक्की
सड़कें नहीं. और अब,
पक्की डामर की
सड़कों के बीच में से
झांकते-निकलते
गड्ढ़ों में से उभरते गिट्टी और कंकड़...)
कंकड़
देव को
प्रणाम है. देव
नहीं महादेव क्योंकि काशी के कंकड़ शिव शंकर समान हैं.
हे
कंकड़
समूह! आजकल आप नई सड़क से दुर्गाजी तक बराबर छाये हो इससे काशी खण्ड
“तिले-तिले”
सच हो
गया,
अतएव तुम्हें
प्रणाम है.
हे
लीलाकारिन् ! आप केशी
शंकट वृषभ
खरादि के नाशक हो,
इससे माने
पूर्वार्द्ध की कथा हो अतएव व्यासों की
जीविका
हो.
आप सिर
समूह भंजन हो क्योंकि कीचड़ में लोग आप पर मुँह के बल
गिरते
हैं.
आप
पिष्ट पशु की व्यवस्था हो क्योंकि लोग आप की कढ़ी बनाकर आप को
चूसते
हैं.
आप
पृथ्वी के अंतरगर्भ के उत्पन्न हो. संसार के गृह निर्माण
मात्र
के कारण भूत हो. जलकर भी सफेद होते हो. दुष्टों के तिलक हो. ऐसे अनेक कारण
हैं
जिनसे आप नमस्कारणीय हो.
हे
प्रबल वेग अवरोधक! गरूड़ की गति भी आप रोक
सकते हो,
और की
कौन कहे,
इससे आपको
प्रणाम है.
हे सुंदरी
सिंगार! आप बड़ी के बड़े हो क्योंकि चूना पान की लाली का कारण है और पान
रमणीगण
मुख शोभा का सेतु है,
इससे आपको
प्रणाम है.
हे
चुंगी नंदन! ऐन सावन
में आपको
हरियाली सूझी है क्योंकि दुर्गाजी पर इसी महीने में भीड़ विशेष होती है,
तो हे
हठ मूर्ते! तुमको दंडवत् है.
हे
प्रबुद्ध! आप शुद्ध हिंदू हो क्योंकि
शहर
विरुद्ध हो आव (बाढ़ का पानी) आया और आप न बर्खास्त हुए,
इससे
आपको प्रणाम
है.
हे
स्वेच्छाचारिन्! इधर-उधर जहाँ आप ने चाहा अपने को फैलाया है. कहीं
पटरी के
पास हो कहीं बीच में अड़े हो,
अतएव हे
स्वतंत्र! आपको नमस्कार
है.
हे
उबड़-खाबड़ शब्द सार्थ-कर्ता! आप कोणमिति के नाशकारी हो क्योंकि आप
अनेक
विचित्र कोण सम्बलित हो,
अतएव हे
ज्योतिषारि! आपको नमस्कार है.
हे
शस्त्र
समष्टि! आप गोली-गोला के चचा,
छर्रों के
परदादा,
तीर के फल,
तलवार
की धार और
गदा के गोला हो,
इससे
आपको प्रणाम है.
आहा! जब
पानी बरसता है तब सड़क रूपी
नदी में
आप द्वीप रूप में दर्शन देते हो. इससे आप के नमस्कार में सब भूमि को
नमस्कार
हो जाता है.
आप
अनेकों के वृद्धतर प्रपितामह हो क्योंकि ब्रह्मा का
नाम
पितामह है उनका पिता पंकज है. उसका पिता पंक है आप उसके भी जनक हैं इससे आप
पूजनीयों में एलएलडी हो.
हे जोगा
जिवलाल रामलालादि मिश्री समूह जीविकादायक!
आप
कामिनी भंजक धुरीश विनाशक,
बारनिश चूर्णक
हो. केवल गाड़ी ही नहीं,
घोड़े की नाल,
सुम,
बैल के
खुर और कंटक चूर्ण को भी आप चूर्ण करने वाले हो इससे आपको नमस्कार
है.
आप में
सब जातियों और आश्रमों का निवास है. आप वानप्रस्थ हो क्योंकि
जंगलों
में लुढ़कते हो. ब्रम्हचारी हो क्योंकि बटु हो. गृहस्थ हो चूना रूप से,
संन्यासी हो क्योंकि घुट्टघट्ट हो. ब्राह्मण हो क्योंकि प्रथम वर्ण होकर भी
गली-गली
मारे-मारे
फिरते हो. क्षत्री हो क्योंकि खत्रियों की एक जाति हो. वैश्य हो क्योंकि
कांट-वांट दोनों तुम में है. शूद्र हो क्योंकि चरण सेवा करते हो. कायस्थ हो
क्योंकि
एक तो कंकर का
मेल दूसरे कचहरी पथावरोधक तीसरे क्षत्रियत्व हम आपका सिद्ध कर ही
चुके
हैं. इससे हे सर्ववर्ण स्वरूप! तुमको नमस्कार है.
आप
ब्रह्मा,
विष्णु,
सूर्य,
अग्नि,
जम,
काल,
दक्ष और
वायु के कर्ता हो,
मन्मथ की ध्वजा
हो,
राजा पददायक
हो,
तन मन
धन के कारण हो,
प्रकाश के मूल
शब्द की जड़ और जल के जनक वरञ्ज भोजन के भी
स्वादु
कारण हो,
क्योंकि आदि
व्यंजन के भी बाबा जान हो. इसी से हे कंकड़! तुमको
प्रणाम
है.
आप
अंग्रेजी राज्य में श्रीमती महाराणी विक्टोरिया और पार्लामेंट
महासभा
के आछत प्रबल प्रताप श्रीयुत गवर्नर जनरल और लेफ़्टेण्ट गवर्नर के वर्तमान
होते,
साहिब
कमिश्नर साहिब मजिस्ट्रेट और साहिब सुपरिन्टेंडेंट के इसी नगर में रहते
और
साढ़े तीन हाथ के पुलिस इंसपेक्टरों और कांसिटेबुलों के जीते भी गणेश
चतुर्थी की
रात को
स्वच्छंद रूप से नगर में भड़ाभड़ लोगों के सिर-पाँव पड़कर रुधिर धारा से
नियम और
शांति का अस्तित्व बहा देते हो अतएव हे अंगरेजी राज्य में नवाबी स्थापक!
तुमको
नमस्कार है.
यहाँ
लम्बा-चौड़ा स्तोत्र पढ़कर हम विनती करते हैं कि अब आप
यह
सिकंदरी बाना छोड़ो,
या हटो या
पिटो.
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