लघु
हास्य-व्यंग्य :
परिहासिनी
-भारतेंदु
हरिश्चंद्र
खुशामद
एक
नामुराद आशिक से
किसी ने पूछा,
“कहो जी,
तुम्हारी माशूका तुम्हें क्यों नहीं मिली?”
बेचारा
उदास
होकर बोला,
“यार,
कुछ न
पूछो,
मैंने इतनी
खुशामद की कि उसने अपने को सचमुच परी समझ
लिया और
हम आदमजाद से बोलने में भी परहेज किया.”
अद्भुत संवाद
“ए,
जरा
हमारा
घोड़ा तो पकड़े रहो.”
“यह
कूदेगा तो नहीं?”
“कूदेगा!
भला कूदेगा क्यों?
लो संभालो.
”
“यह
काटता है?”
“नहीं
काटेगा,
लगाम पकड़े
रहो.”
“क्या
इसे दो
आदमी पकड़ते
हैं तब सम्हलता है?”
“नहीं !”
“फिर
हमें क्यों तकलीफ देते हैं?
आप तो हई हैं.”
तीव्रगामी
एक शख्स
ने किसी से
कहा कि अगर मैं
झूठ बोलता हूँ तो मेरा झूठ कोई पकड़ क्यों नहीं लेता.
उसने
जवाब
दिया कि आपके
मुँह से झूठ इस कदर जल्द निकलता है कि कोई उसे पकड़ नहीं
सकता.
असल
हकदार
एक वकील
ने बीमारी की हालत में अपना सब माल और असबाब पागल,
दीवाने
और
सिड़ियों के नाम लिख दिया. लोगों ने पूछा,
‘यह
क्या?’
तो उसने
जवाब दिया कि, “यह
माल ऐसे ही आदमियों से मुझे मिला था और अब ऐसे ही लोगों को दिये जाता
हूँ.”
एक
से
दो
एक काने
ने किसी आदमी से यह शर्त बदी कि, “जो
मैं तुमसे ज्यादा
देखता हूँ तो
पचास रूपया जीतूँ.”
और जब
शर्त पक्की हो चुकी तो काना बोला कि, “लो,
मैं
जीता.”
दूसरे
ने पूछा, “क्यों?”
इसने
जवाब दिया कि, “मैं
तुम्हारी
दोनों आँखें
देखता हूँ और तुम मेरी एक ही.”
सच्चा घोड़ा
एक
सौदागर किसी
रईस के पास एक
घोड़ा बेचने को लाया और बार-बार उसकी तारीफ में कहता,
“हुजूर,
यह
जानवर
गजब का सच्चा है.”
रईस
साहब ने घोड़े को खरीद कर सौदागर से पूछा कि,
“घोड़े
के सच्चे होने से तुम्हारा मतलब क्या है?”
सौदागर
ने जवाब दिया, “हुजूर,
जब कभी
मैं इस घोड़े पर सवार हुआ,
इसने हमेशा
गिराने का खौफ दिलाया,
और सचमुच,
इसने
आज तक
कभी झूठी धमकी न दी.”
न्यायशास्त्र
मोहिनी
ने कहा, “न
जाने हमारे पति से,
जब हम दोनों की
एक ही राय है तब,
फिर क्यों
लड़ाई होती है? …
क्योंकि वह
चाहते हैं कि मैं उनसे दबूँ और यही मैं भी.”
गुरु घंटाल
बाबू
प्रहलाददास से बाबू राधाकृष्ण ने स्कूल जाने के वक्त कहा,
“क्यों
जनाब,
मेरा दुशाला
अपनी
गाड़ी पर लिए जाइएगा?”
उन्होंने जवाब दिया, “बड़ी
खुशी से. मगर फिर आप
मुझसे दुशाला
किस तरह पाइएगा?”
राधाकृष्ण जी बोले, “बड़ी
आसानी से,
क्योंकि मैं
भी तो
उसे अगोरने साथ ही चलता हूँ.”
अचूक जवाब
एक अमीर
से किसी
फकीर ने पैसा
मांगा. उस अमीर ने फकीर से कहा, “तुम
पैसों के बदले लोगों से लियाकत
चाहते
तो कैसे लायक आदमी हो गये होते.”
फकीर
चटपट बोला, “मैं
जिसके पास जो कुछ
देखता हूँ,
वही
उससे मांगता हूँ.”
पेटू
एक ने
एक से कहा कि
एकादशी का व्रत
करके द्वादशी को व्रत का पारण करना.
उसने
व्रत तो नहीं किया पर
पारण किया.
जब उसने
पूछा कि कहो,
व्रत किया था?
तब वह
बोला कि भाई,
व्रत तो नहीं
कर सका,
पर
तुम्हारे डर के मारे पारण कर लिया कि जो बन सके सोई सही
|