निज स्वदेश ही एक सर्व-पर ब्रह्म-लोक है निज स्वदेश ही एक सर्व-पर अमर-ओक है निज स्वदेश विज्ञान-ज्ञान-आनंद-धाम है निज स्वदेश ही भुवि त्रिलोक-शोभाभिराम है सो निज स्वदेश का, सर्व विधि, प्रियवर, आराधन करो अविरत-सेवा-सन्नद्ध हो सब विधि सुख-साधन करो।
हिंदी समय में श्रीधर पाठक की रचनाएँ