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उपन्यास

प्रेम की भूतकथा

विभूति नारायण राय

अनुक्रम हार्स चेस्टनट के नीचे प्रेम पीछे     आगे

उन आठ खतों से गुजरना प्रेम की अंधी गली से गुजरने जैसा था। इस गली का कोई ओर-छोर नहीं था, लेकिन ओर-छोर की तलाश किसे थी? खत एकतरफा थे। दूसरी तरफ से लिखे गये पत्रों को भूत ने मेरे बहुत माँगने पर भी नहीं दिया। न चाहते हुए भी मुझे उसकी इस बात पर यकीन करना पड़ा कि एलन को लिखे गये खतों तक उसकी रसाई नहीं थी।

मैंने बहुत तर्क दिये कि भूत के लिए एलन को लिखे गये पत्रों को पाना क्या मुश्किल था, वह जब चाहे वे पत्र भी उसको हासिल हो सकते हैं, उसी तरह जैसे एलन के लिखे पत्र उसे मिल गये थे, पर वह नहीं माना। बार-बार यही कहता रहा कि प्रेमिका ने खुद के लिखे पत्र तो नष्ट कर दिये पर एलन के लिखे पत्रों को बार-बार कोशिश करके भी नष्ट नहीं कर पायी। एलन द्वारा लिखे पत्रों में से सिर्फ आठ ही क्यों बचे? बाकी का क्या हुआ? बाकी प्रेमिका ने नष्ट कर दिये। पर क्यों?

पहली बार किसी भूत से मेरा झगड़ा हुआ। मेरा अब तक का अनुभव झूठा साबित हो रहा था। जब मैडम रिप्ले बीन से मेरी पहली मुलाकात हुई थी तभी मुझे लग गया था कि वे खासी तुनकमिजाज हैं। बाद में उनके बारे में मसूरी में जो सूचनाएँ मैंने इकट्ठी की थीं वे भी यही बताती थीं कि वे जिद्दी, अकड़ू और गुस्सैल हैं। लेकिन ऐसे तो कई भूतों से मेरा साबका पड़ा था जो जीवित अवस्था में कठिन मनुष्य रह चुके थे पर भूत बनते ही उनका अतीत उनका पीछा छोड़ देता है। कम से कम मेरा अनुभव तो यही कहता था। एक से एक खूँखार दुर्दांत हत्यारों को मैंने नर्म पँखुरी की तरह पसरते और मक्खन-सा पिघलते देखा है। भूत बनते ही उनकी कठोरता न जाने कहाँ गायब हो जाती है।

लड़ने-झगड़ने का एक फायदा यह हुआ कि रिप्ले बीन के भूत ने वृत्तांत का फारमेट बदल दिया। नैरेटर की भूमिका से वह वीडियो आपरेटर की भूमिका में आ गया। वाचिक परम्परा छोड़कर उसने मुझे फिल्म दिखानी शुरू कर दी। दूसरे पक्ष के पत्र न मिलने के कारण जो खालीपन था उसे भरने का सबसे आसान तरीका मुझे यही समझ में आया कि मैं उससे कहानी सुनाने की जिद न करके जो कुछ वह दिखाने जा रहा है उसी को देखूँ। शायद ऐसा इसलिए भी हुआ कि उससे लड़-झगड़ कर मैं थक गया और पता भी नहीं चला कि कब गहरी नींद के आगोश में डूब गया।

बहुत से दृश्य मेरे मित्र भूत ने दिखाये। इस मामले में वह पत्रों के मुकाबले ज्यादा उदार दिखा। मैं जिस प्रसंग की फरमाइश करता ,उसके पूरे दृश्य एवं श्रव्य छवियों के साथ वह हाजिर हो जाता।

कई दृश्य थे।

दृश्य 1

चट्टानों के ऊपर पत्थरों को काटकर समतल बनाया गया मकान। ऊपरी मंजिल के एक कमरे में लैम्प की रोशनी में किताब पढ़ती हुई एक लड़की। इस कमरे के अलावा पूरा मकान अँधेरे में डूबा हुआ है। बाहर की हल्की ठण्डी हवा कमरे में दाखिल न हो सके इसलिए काँच की बड़ी खिड़कियाँ सख्ती से बंद हैं।

किताब पढ़ते-पढ़ते लड़की का जी उचटता है तो उसकी दृष्टि काँच के परे घने वृक्षों से घिरी और टिमटिमाती रोशनियों वाली वादी में तैरने लगती है। यही क्रिया बार-बार दोहरायी जाती है। अचानक लड़की की निगाहें लपटों की हिलती परछाइयों पर पड़तीं हैं। रुक-रुक कर खिड़की के शीशों पर परछाइयाँ पड़ती थीं और फिर अँधेरे में बिला जातीं थीं। कुछ-कुछ भय और उत्सुकता से लड़की ने परछाइयों को देखा। वह सहमते हुए उठी और खिड़की के पास जाकर शीशों से नाक सटाकर खड़ी हो गयी।

जिस मकान में लड़की थी वह इस पहाड़ी का आखिरी मकान था। मुश्किल से बीस गज की दूर से ढलान शुरू हो जाती थी। ढलान जिस घाटी में उतरती चली गयी थी, उसकी शुरुआत में ही हार्स चेस्टनट के विशाल दरख्तों का झुरमुट था। रात में अक्सर लड़की खिड़की के पल्ले खोलकर अँधेरे में झूमते इस झुरमुट को निहारती थी - खास तौर से पूरे चाँद की रात जब आकाश पर बादल न हों। आज भी आकाश साफ था पर बाहर हवा में हल्की-सी ठण्ड थी इसलिए लड़की ने खिड़की बंद कर रखी थी, पर उसने बाहर जो कुछ देखा उसने उसे खिड़कियाँ खोल देने के लिए मजबूर कर दिया।

सामने मुश्किल से पचास गज की दूरी पर एक छोटी-सी चट्टान के दामन में आग जल रही थी। कोई था जो आग के बगल में लेटा धीरे-धीरे गा रहा था। आग की लपटें हवा के झोंकों के साथ काँप रहीं थीं। एक खास कोण पर पहुँचने पर ही इन लपटों की कौंध लड़की की खिड़की के काँचों पर पड़ रही थी।

सामने लेटा पुरुष क्या गा रहा था लड़की ने ध्यान से सुनने की कोशिश की। थरथराती स्वर लहरियों की मध्यम आवाज जब वह पकड़ पायी तो अचानक रोमांचित हो उठी।

क्या यह वही धुन नहीं थी जिसे लड़की के पिता बीच-बीच में गुनगुनाते थे? उसका पूरा जिस्म कान हो गया। वही धुन थी। एक बार धुन पकड़ लेने के बाद बोल स्पष्ट हो गये। उसके पिता कई बार अपने इर्द-गिर्द फैली किताबें सरका कर अवसाद में डूब जाते हैं और काफी देर चुप रहने के बाद अचानक जो कुछ गुनगुनाते हैं, वह यही धुन है।

सालों पहले जब उसकी माँ जिन्दा थी और वह बहुत छोटी थी तब वह उस छोटे-से कस्बे में गयी थी जहाँ से उसके पिता आये थे और जहाँ के लोक गीत इसी धुन में गाये जाते हैं। महीनों बैलगाड़ी, ट्रेन और समुद्री जहाज से यात्रा करने के बाद वे उस कस्बे में पहुँचे थे। उस समय तो उसकी समझ में नहीं आया लेकिन अब इतने वर्षों बाद वह समझ सकती है कि क्यों जैसे-जैसे वह कस्बा करीब आता गया क्यों उसके पिता चुप होते गये। घोड़ागाड़ी की पिछली सीट पर बैठी उसकी माँ ने जब पाया कि अगली सीट पर कोचवान के पास बैठे पिता की आवाज सुनाई देना बंद हो गयी है और उनके दो-तीन सवालों का जवाब सिर्फ हाँ हूँ में मिल रहा है तो उन्होंने हल्के से सिर्फ एक सवाल पूछा - "क्या कार्डिफ आ गया?"

छोटी-सी लड़की, जो माँ के बगल में बैठी घोड़ागाड़ी की खिड़कियों से बाहर सेब के बागों में लदे फल निहार रही थी, अचानक अपने पिता को जमीन पर कूदते और फिर लुढ़कते देखकर घबरा गयी। उसे लगा कि किसी ने उसके पिता को गाड़ी से नीचे ढकेल दिया है और वे दर्द से लोट-पोट हो रहे हैं। गाड़ी झटके से रुक गयी और तेजी से अपने स्कर्ट को सँभालती हुई माँ भी लगभग कूदती हुई पिता के पास पहुँची। लड़की के दिमाग में अभी तक वह दृश्य अंकित है जिसमें माँ घुटने के बल बैठकर औंधे मुँह जमीन पर लेटे सिसकियाँ भरते पिता की पीठ सहला रही थीं। बागों में काम कर रहे किसानों और राहगीरों से घिरे माँ-बाप से थोड़ी दूर गाड़ी में बैठी, उस छोटी-सी लड़की की घबराहट जब हिचकियों और तेज स्वर के रुदन में बदल गयी तब माँ का ध्यान उसकी तरफ गया। वह तेजी से गाड़ी की तरफ झपटी और बच्ची को लगभग घसीटती हुई अपने सीने से चिपकाये वापस उस जगह पर पहुँच गयी जहाँ पिता अपनी मातृभूमि की धूल कपड़ों पर लपेटे बागों में काम करने वाले पुराने संगी-संगतियों से गले मिल रहे थे।

लड़की अपना रोना भूल कर भौंचक्की-सी अपने पिता को रोते, खिलखिलाते, गले लगते, नाचते देखती रही। थोड़ी देर में माँ की तरह वह भी हँसने लगी और फिर न जाने कितनी गोदों और कन्धों पर झूलते-उछलते उस घर के दालान में पहुँची जो सालों बाद खुलने के कारण अजीब- सी सीलन भरी गंध से सराबोर था और माँ के बताने से पता चला कि यह उनका अपना घर था। यहीं से सत्तरह साल पहले व्यापार की सनक में पिता समुद्र के रास्ते एक अपरिचित अनजान प्रायद्वीप की तरफ चले गये थे जिसके बारे में उन्होंने सिर्फ किस्से-कहानियाँ और वहाँ से लौटने वाले सैनिकों से सुना था लेकिन जिसका आकर्षण इतना जबरदस्त था कि अपनी बूढ़ी माँ की तमाम कोशिशों को नजरअंदाज करते हुए एक दिन उन्हें इस मकान में अकेला छोड़कर लम्बी यात्रा पर निकल गये थे।

पड़ोसियों ने बताया कि तीन साल पहले लड़की की दादी मर गयी। पूरे चौदह साल उसने हर शाम समुद्र की तरफ से आने वाली घोड़ागाड़ियों को प्रतीक्षा करते बितायी थी। हर दोपहर वह सेबों के बगीचों को पार करते हुए पथरीली सड़क तक जाती और निर्धारित स्थान पर एक टूटी चट्टान पर बैठकर उस दिशा से आने वाली घोड़ागाड़ियों को निहारती रहती। सूर्यास्त होने पर वह चुपचाप सर झुकाये सेबों के दरख्तों के बीच से चलती हुई वापस लौटती। कोहरों और सर्दियों वाले दिनों में, यहाँ तक भी कि जब बारिश हो रही हो, वह छाता लिये निर्धारित समय पर चट्टान पर दिखाई देती थी। उसकी उपस्थिति के लोग इस कदर आदी हो गये थे कि एक खास वक्त पर चट्टान की कल्पना बिना उसके नहीं कर पाते थे। एक दिन जब हल्की बूँदा-बाँदी और रूई के फाहों से विरल बादलों के बीच सूरज धूप-छाँह कर रहा था, वह सूर्यास्त के समय वहाँ नहीं दिखी तो चट्टान से सटे बाग के मालिक ने फल तोड़कर डिब्बों में भरते मजदूरों की तरफ देख कर कहा -

"बुढ़िया मर गयी।"

किसी ने इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं की। सिर्फ वापसी में वे बुढ़िया के घर का चक्कर लगाते हुए आये। यह सिर्फ औपचारिकता थी कि उन्होंने बाहर बरामदे से अन्दर कमरे में झाँक कर देखा। एक आरामकुर्सी पर बैठे-बैठे लड़की की दादी मर चुकी थी - उन सारे कपड़ों को पहने हुए जिन्हें पहनकर वह बाहर चट्टान तक जाने वाली थी। उसके बाँयें हाथ की मुट्ठी की पकड़ छाते पर अभी तक ढीली नहीं पड़ी थी।

देर रात गये जब पड़ोसियों और रिश्तेदारों की भीड़ कमरे से छँटी, लड़की का पिता अंदर गया। तब तक लड़की की माँ ने कमरों की खिड़कियाँ खोलकर सीलन भगाने की कोशिश की थी। हालाँकि ठण्डी हवा से बचने के लिए खिड़कियाँ देर तक खुली नहीं रखी जा सकतीं थीं पर फिर भी कुछ तो असर हुआ ही था। उस रात, जब घर में सिर्फ वे तीनों ही थे, पिता न जाने कब तक दरी बिछी फर्श पर दीवाल से पीठ टिकाये अपरिचित धुनों के लोकगीत गाते रहे। लड़की ने इससे पहले ये धुनें कभी नहीं सुनी थीं। मसूरी में वर्षों से विस्मृत धुनें कार्डिफ पहुँचते ही अचानक कैसे याद आ रही थीं और यह याद आना भी कितना अदभुत था। पिता गाते-गाते गीत की पंक्तियाँ भूल जाते थे... कुछ देर तक सिर्फ धुन गुनगुनाते... तभी माँ को कोई पंक्ति याद आ जाती... दोनों मिल कर छूटे हुए को पकड़ने की कोशिश करते और फिर अपनी असफलता पर हँसते और आगे बढ़ जाते।

लड़की कब सोयी उसे पता नहीं चला लेकिन जब उठी तो नीचे फर्श का दृश्य देखकर ऐसा लगा कि पूरी रात पिता गाते ही रहे थे। माँ न जाने कब बिस्तर से सरक कर उनके पास चली गयी थी और दीवाल से सर टिकाये सोते हुए पिता के कंधे पर सर रखे बेसुध पड़ी थी। लड़की कुछ देर तो उन्हें देखती रही और जल्द ही एक बार फिर नींद के आगोश में डूब गयी।

सर्दियाँ शुरू होने पर वापसी की यात्रा आरम्भ हुई। इस बार झर रहे पत्तों वाले उदास दरख्तों के बीच। पूरा गाँव एक जूलूस की शक्ल में उन्हें कस्बे की सड़क तक छोड़ने गया। लड़की इस बार भी उछाली जाती हुई कंधों और गोदियों का सफर तय करती रही। सेबों के बाग से बाहर निकल सभी कँकरीली सड़क के किनारे खड़े हो गये। उनका सामान घोड़ागाड़ी पर चढ़ाया जाने लगा। पिता पहले की तरह घुटनों के बल जमीन पर बैठ गये। अपनी धरती को चूमते हुए उनके अंदर पहले वाला आवेग नहीं था। शायद इसके पीछे वह दिलासा थी जो पिछले कुछ घंटों से हर मिलने-जुलने वाले के सामने वे खुद को दे रहे थे --

"हर साल गर्मियाँ मैं यहीं बिताऊँगा।"

बीच-बीच में अगले वर्ष अपने आने की तारीखें भी दुहराते जा रहे थे।

अगला वर्ष फिर कभी नहीं आया। लड़की जानती है कि प्रत्येक वर्ष सर्दियों में पिता कार्डिफ जाने की जो योजना बनाते हैं, वह पूरी नहीं होने वाली। सर्दियाँ खत्म हो जाती हैं और जैसे-जैसे मसूरी का मौसम खुशगवार होता चला जाता है पिता की इच्छा शक्ति कमजोर होती जाती है। हर बार कार्डिफ की यात्रा अगले साल और फिर अगले साल पर टल जाती है। अब तो योजना बनाते समय उतना उत्साह भी नहीं झलकता जितना शुरू के वर्षों में दिखता था।

वापसी में घोड़ागाड़ी की अगली सीट पर माँ-बेटी बैठे। पिता पिछली सीट पर बैठे थे। लड़की को अगली सीट असुविधाजनक लगी तो उसने पीछे जाने की जिद की। माँ ने लगभग दबोचते हुए पीछे मुड़कर देखने से उसे रोका। घोड़ागाड़ी थोड़ा आगे बढ़ी तो लगा कि पीछे पिता हल्की- हल्की सिसकियाँ ले रहे थे। माँ के हाथों के बलिष्ठ दबाव के बावजूद लड़की ने सिर पीछे घुमाकर देखा कि पिता की पीठ काँप रही थी। माँ एक हाथ से उसे पीछे देखने से रोकती हुई दूसरे हाथ से बीच-बीच में पिता की पीठ सहला रही थी।

दृश्य 2

अगली रात फिर वही दृश्य। दूर हार्स चेस्टनट के दरख्त के नीचे जलती, काँपती हुई आग की लपटों के अक्स लड़की के कमरे के शीशे पर ज्यादा साफ पड़ रहे हैं। इसकी वजह शायद यह है कि आज अलाव की स्थिति बदल गयी है और वह पेड़ से कुछ दूर ऐसी जगह पर है जहाँ से उसके और खिड़की के बीच कोई बाधा नहीं है या फिर शायद इसलिए कि आज लड़की बेसब्री से इन अक्सों का इंतजार कर रही थी।

आज फर्क सिर्फ इतना है कि लपटों की रोशनी में कल दिखने वाला पुरुष गायब था और उसकी आवाज भी नहीं सुनाई दे रही थी। लड़की काफी देरे तक शीशे से मुँह सटाये बाहर उसे ढूँढ़ने की कोशिश करती रही फिर थक कर अपनी स्टडी चेयर पर बैठ गयी। बैठ भी कितनी देर पायी - व्यग्रता उसे बार-बार खींच कर शीशे तक लाती गयी। काफी देर बाद उसकी प्रतीक्षित वस्तु दिखाई दी।

अँधेरे के बीच से एक आकृति उभरती है जो, यदि पूरी एकाग्रता से शीशे पर नाक टिकाये लड़की बाहर न देख रही होती तो उससे छूट जाती। लपटों की रोशनी की जद में आते-आते आकृति एक बलिष्ठ फौजी युवा में तब्दील हो जाती है जिसने लाँग बूट और ब्रीचेज के ऊपर हल्की ऊनी शर्ट पहन रखी है। अभी तक उसके लापता होने का रहस्य भी लपटें खोलती हैं। उसके एक हाथ में बन्दूक है और दूसरे हाथ में लटका एक छोटा-सा जानवर है जो रोशनी पड़ने पर स्पष्ट होता है कि खरगोश है।

लड़की समझ गयी कि फौजी आग जलाकर जंगल में शिकार करने चला गया था और अब एक खरगोश मारकर लौटा था। इसके बाद फिर कल वाला अनुभव। फर्क सिर्फ इतना था कि चट्टान से पीठ टिकाकर गिटार बजाते हुए परिचित स्वर लहरियों में गीत गाता फौजी आज ऐसे कोण पर था कि उसका चेहरा साफ दिखाई दे रहा था। लड़की चकित थी कि एक बलिष्ठ जवान शरीर पर एक भोले-भाले छोटे बच्चे का चेहरा कैसे चिपका हुआ था।

एकटक उसे गाते हुए वह देखती है। कल की ही तरह वह पूरे शरीर से सुन रही है। दूरी और बंद खिड़कियाँ गीत के बोल टूट-टूट कर पहुँचने दे रही हैं पर काँपती स्वर लहरियाँ इतनी परिचित-सी हैं कि लड़की कल की तरह आज भी जोड़-तोड़ कर हर गीत पूरा कर ही ले रही है। गाने का क्रम बीच-बीच में टूटता। फौजी शिकार को काटने, छीलने, भूनने जैसे कामों में लग जाता लेकिन लड़की खिड़की से हट नहीं पाती। कोई अबूझ आकर्षण उसे खिड़की से हटने नहीं दे रहा। बाहर ठंड बूँद-बूँद कर टपक रही है। खिड़की के काँच जमी बूँदों के कारण अपारदर्शी हुए जा रहे हैं। लड़की व्यतिक्रम नहीं बर्दाश्त कर पाती है और बीच-बीच में खिड़की खोलकर बाहर शीशों की बाहरी पर्त साफ कर देती है। हर बार सर्द हवा उसके हाथ सुन्न कर देती है पर हर बार शीशे के धुँधलाने पर वह यही क्रिया दुहराती है।

अचानक लड़की जड़ हो जाती है। क्या यह वही गीत नहीं है जिसको उसके पिता ने उस समय गाया था जब लौटते समय उनका जहाज अपना लंगर उठा रहा था? लड़की की स्मृति में अब भी वह दृश्य साफ अंकित है। पिता डेक पर खड़े हैं और रेलिंग पकड़कर थोड़ा आगे को झुके हुए हैं। बगल में माँ और उससे सटकर छोटी लड़की। समुद्री हवाएँ थपेड़ों की तरह चेहरे से टकरा रहीं हैं और तीनों के बाल अस्त-व्यस्त हो रहे हैं। बिल्कुल आज की तरह। फर्क सिर्फ इतना है कि आज इस गीत को सुनने के लिए लड़की ने खिड़की पूरी तरह खोल ली है और चौखट को पकड़ कर आगे को झुके उसके चेहरे से जो हवा टकरा रही है वह बर्फीली है और बार-बार अपने बाल ठीक करती आज की लड़की उस छोटी लड़की की तरह खिलखिला नहीं रही है जो समुद्र से आने वाली हल्की ठंडी हवाओं के झोकों से बिगड़ते अपने बालों को ठीक करते हुए शरारत से भरी हुई थी।

रात और शीत एक साथ झर रहे हैं। सामने एक पुरुष शरीर है जो अलाव की मचलती लपटों में जल-बुझ रहा है। खुली खिड़की पर कुहनी टिकाये आगे को झुकी लड़की ठण्डी हवा के थपेड़ों के बीच न जाने कब से खड़ी है और अन्दर बाहर भीग रही है।

दृश्य 3

एक बड़ा हार्स चेस्ट का छतनार दरख्त।

कई दिनों बाद आज फिर वही दृश्य! फर्क सिर्फ इतना है कि खिड़की और अलाव के बीच की दूरियाँ मिट गयी हैं! लड़की अलाव से थोड़ी दूर एक चट्टान पर बैठी है। अलाव की लपटें तेज हवा से बहक रही हैं। लपटों की काँपती परछाइयाँ लड़की के चेहरे पर अग्नि नृत्य का भ्रम पैदा कर रही हैं। थोड़ी दूरी पर फौजी शिकार में मारे गये खरगोश को पहाड़ी दाव से छील रहा है। वह एक ऐसे कोण और दूरी पर है जहाँ आग अपनी ऊष्मा के साथ तो है पर लड़की के चेहरे पर खेलती अग्नि शिखाओं के साथ उसके पूरे शरीर को घूँट-घूँट कर पीने से फौजी को रोक भी नहीं रही। सिर्फ वही बोल रहा है और लड़की चुपचाप सुन रही है - एकटक... अपलक। बीच-बीच में अगर बर्फानी हवाओं से अस्त-व्यस्त होती अपनी लटों को ठीक करने के लिए लड़की के हाथ हरकत न करते तो किसी को भी तेज और मध्यम होते अलाव के प्रकाश में शिला पर अवस्थित एक बुत का आभास हो सकता था।

लड़की चुपचाप सुन रही है और सिर्फ फौजी बतिया रहा है। कितना कुछ कहने को है उसके पास। पेशावर से काबुल के बीच फैली कठोर और दुर्गम पहाड़ियों के नीचे के भू-प्रांत में लड़े गये युद्ध, मृत्यु के बीच से बार-बार निकलना और फिर-फिर लौटकर उसके करीब पहुँच जाना। बर्बरता, बहादुरी, कायरता, घात-प्रतिघात - लड़की पलक झपकाना भी भूल चुकी है। कैसा तो अद्भुत किस्सागो है फौजी! बातों के लच्छों से कहानियों के सूत कातता है। लड़की के लिए अन्दाज लगाना मुश्किल है कि उसके वृत्तांत में कितना सच है और कितना अतिशयोक्ति। उसे सब कुछ सच जैसा ही लगता है।

अचानक फौजी उठता है और लड़की की चट्टान के पास उकड़ूँ बैठ जाता है। लड़की थोड़ा असहज होती है पर फौजी की आँखों और चेहरे पर न जाने ऐसा क्या है जो उसे आश्वस्त करता है। वह फिर एकटक उसे सुनने लगती है।

युद्ध गाथाएँ - मारकाट की कहानियाँ लड़की को कभी अच्छी नहीं लगतीं। कई बार पिता ने नौसैनिक बेड़ों और समुद्री लुटेरों की कथाएँ उसे सुनानी शुरू की थी पर कभी भी उनके वृत्तांत समाप्त नहीं हो पाते। पिता लड़की की ऊब और अनिच्छा भाँप जाते और वापस राजकुमारियों और परियों की दुनिया में उठा ले जाते। आज क्यों लड़की को युद्ध की गाथाएँ आकर्षक लग रही है? क्यों मन कर रहा है कि ये कहानियाँ कभी खत्म न हों ?

फौजी लड़की से दो बालिश्त लम्बा है। उकडूँ बैठ-बैठे भी वह लगभग उसके बराबर का लगता है। पता भी नहीं चला कि कब किस्सागोई के बीच उसका हाथ लड़की के बालों तक पहुँच गया। उसकी उँगलियाँ तब तक लड़की के बालों में फिरती रहीं जब तक उसके जूड़े की पिन खुल नहीं गयी और घने रेशमी बाल गहरे काले बादलों की तरह उसके कन्धों पर फैल नहीं गये।

फौजी ने उन प्रहारों का जिक्र किया जिन्हें उसके मजबूत शरीर ने काबुल और पेशावर की खड़ी चट्टानों में झेला था। लड़की सिहर-सिहर उठी! फौजी ने कमीज के बटन खोल कर उसे अपने पीठ और सीने के वे जख्म दिखाये जो लैण्डोर छावनी के अस्पताल में भर तो गये थे लेकिन अपने ऐसे निशान छोड़ गये थे जिन पर हाथ फिराते हुए लड़की की आँखें डब-डब करने लगीं।

ऊपर मरियल पीला चाँद था, नीचे झरे सूखे पत्ते और थोड़ी दूर पर हवा के थपेड़ों से नाचती आग की लपटों और उनके बीच किसी फ्रेम में जड़ी-सी लड़की एकटक फौजी को सुनती रही, सुनती रही, जब तक फौजी ने हौले से खींचकर उसे अपने बगल में चटखते हुए पत्तों की सदा के बीच लिटा नहीं लिया। लाँग बूट, ब्रीचेज और वर्दी की खाकी कमीज पहने लम्बे गलमुच्छों और ऊपर के ऐंठे हुए दोनों किनारों वाली मूँछों वाला कारपोरल एलन जमीन पर चित पड़ा हुआ है। एक लड़की है जो औंधी उसके ऊपर लेटी है। कमीज की ऊपर की तीन बटनें खुली हुई हैं। लड़की की दो उँगलियाँ बटनों के बीच से रेंगती हुई एलन के सीने पर रेंग रही हैं। उनींदा एलन बीच-बीच में चिहुँक उठता है। लगता है लड़की उसके सीने में अपने नाखून गड़ा दे रही है। अचानक एलन छटपटाकर आधा उठता है, वापस गिरता है और इस बार उसकी बलिष्ठ बाँहों में बँधी हुई लड़की उसमें समा जाती है। देर तक नीचे पड़े सूखे पत्ते, हरी घास और पूरी धरती काँपती रह्ती है।

दृश्य 4

"तू परसों क्यों नहीं आयी?"

"क्यों आती?"

"मेरे खत का जवाब क्यों नहीं दिया?"

"क्यों देती?"

"क्यों-क्यों क्या लगा रखा है, सीधे-सीधे जवाब क्यों नहीं देती?"

"क्यों दूँ?"

"फिर क्यों...?" लड़की खिलखिलाती है पर एलन के सीने पर दबे-दबे उसका दम घुट रहा है। वह एलन के पेट में जोर से घूँसा मारती है और ढीली पड़ गयी जकड़ तोड़कर झटके से बाहर निकल भागती है। ढलवाँ पहाड़ियों पर दोनों दौड़ रहे हैं। धीरे-धीरे घाटी में डूब रहा सूरज अपनी शाख से टूटकर कब छपाक से घने दरख्तों में समा गया, पता ही नहीं चला। दौडती हुई लड़की अँधेरे में ठोकर खाकर नर्म दूब पर गिरी पर ऐसा कैसे हुआ कि जहाँ गिरी वहाँ एलन की मजबूत बाँहें उसे थामने के लिए मौजूद थीं? देर तक धरती, आकाश, जंगल-तारे एक दूसरे में गड्ड-मड्ड होते रहे।

दृश्य 5

"बीच-बीच में तू कहाँ गुम हो जाती है, उठते, बैठते, चलते, बोलते अचानक खामोश हो जाती है। लगता है मुझे जानती ही नहीं।"

"कितना जानती हूँ मैं तुम्हें? सिर्फ इतना कि जिस जमीन से मेरे पिता आये थे तीस साल पहले, तुम भी वहीं से आये हो। पर इससे ज्यादा क्या जानती हूँ?"

"पगली, हम जिन्हें बहुत जानते हैं, उन्हें कितना जानते हैं? तूने एक बार लिखा भी था कि तुझे सोचकर डर लगता है कि तेरे पास तो सिर्फ एक कागज का टुकड़ा भर है जिस पर मेरा नाम और पता लिखा है। किसी दिन तेरी हथेलियों से फिसलता हुआ यह टुकड़ा अनंत में खो जायेगा और उसी के साथ मैं भी कहीं गायब हो जाऊँगा।"

"और तुमने लिखा था कि हम जिनके साथ बरसों रहते हैं, उन्हें भी कितना जानते हैं? सालों साल साथ उठते, बैठते, सोते, जागते अचानक लगता है कि जो बगल में है वह नितांत अपरिचित और अनजाना है। पर इससे मेरा डर कम तो नहीं हो जाता। तुम छुट्टी जा रहे हो...।"

एलन ठहाका मार कर हँसता है और लड़की को बाँहों में जकड़ लेता है। लड़की तो यही चाहती थी। उसके सीने में मुँह गड़ाये सिसक रही है लड़की।

"वहाँ सिल्विया है।"

"हाँ है... तो?"

" तो क्या... ?"

एलन की जकड़ मजबूत होती जाती है। लड़की का दम घुट रहा है। उसका पुराना हथियार है एलन के पेट में घूँसा मारना। इस बार एलन उसे यह मौका भी नहीं दे रहा। उसका बाँया हाथ लड़की की पीठ पर और दाहिना कमर को इस तरह जकड़े हुए है कि लड़की की कलाइयाँ बहुत कम हिल-डुल पा रही हैं। अंत में बड़ी मुश्किल से लड़की अपनी उँगलियाँ एलन के पेट तक पहुँचा सकी। उँगलियाँ पेट गुदगुदाती हैं और एलन की हँसी छूट जाती है। पकड़ ढीली पड़ते ही लड़की उसे ढकेल कर परे हटा देती है। लड़खड़ाने का अभिनय करता हुआ एलन जमीन पर लेट जाता है और लड़की उसके पास बैठ जाती है। लड़की की आँखें और मुँह सूजा हुआ है।

"तूने सिल्विया का नाम क्यों लिया?"

"क्यों! नहीं है सिल्विया वहाँ?"

"है तो पर चार साल से उसने कभी कोई खत नहीं लिखा। माँ ने लिखा था कि पिछले कई सालों से उससे भी नहीं मिली। तुझे क्या लगता है कि वहाँ बैठकर मेरा इंतजार कर रही होगी।"

"और अगर कर रही हो तो...?"

"तुझे मेरे ऊपर कब यकीन आयेगा?"

एलन झुँझलाकर उठने की कोशिश करता है। लड़की उसे हाथ के हल्के-से दबाव से फिर लिटा देती है। इस बार एलन का मुँह फूला हुआ है। लड़की उसे हल्की-हल्की थपकियाँ देती है। एलन थोड़ी देर तक आँखें बंद कर पड़ा रहता है। फिर आधा उठकर लड़की को अपने हाथों के घेरे में लेकर धीरे-धीरे अपने बगल में लिटा लेता है।

दृश्य 6

सितार की तरह बज रहे थे दो शरीर... खिंचे हुए तारों को छूते ही जो स्वर-लहरी निकलती उसमें बहुत कुछ भरा होता - आह्लाद, सीत्कार, विलाप और लास्य। शरीर सधी हुई जुगलबन्दी कर रहे थे।

अद्भुत थी यह जुगलबन्दी भी। कभी एक द्रुत में होता और दूसरा इतना मध्यम कि लगता स्थिर है और कभी दोनों द्रुत और कभी दोनों मध्यम।

इस जुगलबन्दी के दोनों पात्रों के शरीर में मानो संगीत बह रहा था। संगीत क्या, समय बह रहा था या समय स्थिर था और सिर्फ संगीत बह रहा था... समय और संगीत दोनों में डूबते-उतराते दो शरीर बह रहे थे... एक शरीर में दूसरा बह रहा था... समय, संगीत, शरीर इन सबके बीच कहीं आनन्द बह रहा था... दो पुष्ट जाँघें सितार के तारों की तरह खिंची हुई थीं और दो जोड़ी ओठ जल रहे थे।

तार खिंचे, कुछ इस तरह से खिंचे कि लगभग टूट-से गये। जुगलबन्दी द्रुत हुई, मध्यम हुई और धीरे-धीरे स्थिर हो गयी। दोनों शरीर एक-दूसरे में गुँथे खामोश पड़े रहे हार्स चेस्टनट के छतनार दरख्त के नीचे। ऊपर गुच्छों में खिले हार्स चेस्टनट के फूलों और नीचे झरे पत्तों के ऊपर, निरावरण, थोड़ी दूर जल रही आग की गर्मी से ऊष्मा हासिल करते हुए।

लड़की हल्की-सी सिहरी। थोड़ी देर पहले सक्रिय शरीर आग की आँच से झुलस-झुलस जा रहे थे। निष्क्रिय एक-दूसरे से चिपटे शरीरों को अचानक लकड़ी के सुलगते कुन्दे अपर्याप्त लगने लगे। लड़के ने बाँहों के घेरे में लड़की को इतने जोर से जकड़ रखा था कि कई बार वह हिचकियाँ लेने लगती। लगता उसका दम घुट जाऐगा। अलसाया लड़का जकड़न कुछ ढीली कर देता।

ऊपर से शीत झर रहा था। सर्दियाँ अभी दूर थीं लेकिन खुले में निर्वस्त्र सोना मुश्किल था। लड़की सिहरी तो लड़के ने बाँहें ढीली कीं, उठा और आग के करीब जाकर उसमें कुछ सूखे पत्ते और लकड़ियाँ डाल दीं। लड़की एकटक उसकी सुडौल मांसपेशियाँ निहारती रही। उसकी पीठ, नितम्ब, टाँगें सभी जख्मों के निशानों से भरी थीं। धूप और श्रम से तपे उसके शरीर पर मांसपेशियाँ मछलियों-सी खेल रहीं थीं।

लपटें तेज हुईं और वह वापस लड़की के बगल में लेट गया। लड़के ने एक बार फिर लड़की को अपनी बाँहों में भर लिया। इस बार उसके हाथ हरकत करते रहे। लपटें जब तक तेज थीं उसके स्पर्श को सुख से भरती रहीं। हाथ शरीर की गोलाइयों और गहराइयों को नापते रहे। तेज हवा में नाचती लपटें कई बार उनकी नग्नता को पूरे जंगल की थाती बना देतीं तो कई बार इस कोण से गिरतीं कि दोनों शरीर अँधेरे-उजाले का अजीब रहस्य लोक बन जाते।

लड़की फिर सिहरी। आग कमजोर पड़ रही थी। लड़के ने बाँहों की पकड़ ढीली की पर इस बार लड़की ने उसे उठने नहीं दिया। ठण्ड आग की मोहताज नहीं थी। ठण्ड में धीरे-धीरे धनुष की तरह अर्द्धचन्द्राकार होता उसका शरीर, जिसके निचले हिस्से में दोनों घुटने लड़के की नाभि से जुड़ गये थे और ओठ लड़के के सीने पर पैबन्द थे, तड़प कर सीधा होने लगा। उसने अपनी कमजोर बाँहें लड़के के इर्द-गिर्द लपेट दीं। लड़के का चेहरा उसके दोनों स्तनों के बीच वक्ष पर टिक गया। जैसे-जैसे ठण्ड बढ़ती गयी बाँहों का घेरा कसता गयाइस बार दम घुटने की बारी लड़के की थी। साँस लेने के लिए उसने मुँह खोला और एक स्तनाग्र उसके ओंठों से टकराया वह धीरे-धीरे उसे चूसने लगा।

इस बार सितार बना लड़का। कुशल वादक की तरह लड़की उसे बजाती रही।

दृश्य 7

चीड़ के जंगलों के बीच खिले जाड़ला के पौधे। लड़की फौजी को बताती है कि ये फूल बारह वर्ष बाद खिलते हैं। आज पहली बार लड़की साहस कर दिन में बाहर निकल आयी है। फौजी को इन्हीं फूलों को दिखाने जिनके खिलने पर पहाड़ी फूलों का कुंभ कहते हैं। फूलों के इस कुंभ पर असंख्य मधुमक्खियाँ थीं, तितलियाँ थीं और तरह-तरह के कीट-पतंगे थे जिनके नाम लड़की पहेलियों की तरह फौजी से पूछती है और उसके न बता पाने पर खिलखिला कर हँसती है और फिर तरस खा कर बताती है।

वे चीड़ की पत्तियों से ढँकी धरती पर बैठ जाते हैं। खिलवाड़ करते-करते लड़की को अचानक कुछ याद आता है।

"तुमने लिखा था कि तुम्हारे पहाड़ी साईस ने एक गीत सुनाया था, उसे तुम मुझे सुनाओगे गाकर?" फौजी शरारत से पूछता है।

"हाँ, गाकर।" लड़की उसी शरारत से कहती है।

"पर मुझे तो गाना आता ही नहीं।" फौजी नर्वस हो जाता है।

"पर मुझे तो गाकर ही सुनना है।" देर तक खिलवाड़ चलता है। अंत में एलन जितनी याद है उतनी ही कथा गद्य में सुनाता है।

कथा एक सुन्दर पहाड़ी लड़की फ्यूली की थी। वह इतनी सुन्दर थी कि दूर-दूर से उसको ब्याहने की इच्छा लिए गबरू जवान उसके माँ-बाप के पास पहुँचने लगे। पर वह प्यार तो भूपू से करती थी। दोनों के परिवार एक-दूसरे के दुश्मन थे, इसलिए उनका ब्याह नहीं हो सका और फ्यूली कहीं और ब्याह दी गयी। विवाह के बाद भी दोनों का प्यार समाप्त नहीं हुआ। एक दिन जब फ्यूली भूपू से मिलकर लौट रही थी तो पति ने उसे जान से मार दिया। तब से फ्यूली फूल बन कर पहाड़ों पर खिलती है। लोक कथा के अनुसार फ्यूली सिर्फ एक साधारण पीला फूल नहीं है बल्कि अधूरी कामनाओं को पूरा करने की उद्दाम लालसा का प्रतीक भी है।

फ्यूली की कथा सुनकर न जाने क्यों लड़की उदास हो जाती है। एलन निरा फौजी जरूर है पर यह समझना उसके लिए मुश्किल नहीं है कि लड़की किस संभावना से उदास हुई है। वह धीरे-धीरे उसकी पीठ सहलाता रहता है।

दृश्य 8

"तुम मुझे छुटकू क्यों कहते हो? क्या मैं इतनी छोटी लगती हूँ?"

"तू बातें तो करती है बूढ़ी दादी की तरह, पर है छुटकू ही। मैं तुझे छुटकू ही कहूँगा। पर तूने मेरे लिए कोई नाम नहीं तलाशा?"

"तलाश लिया, पर बताऊँगी नहीं।" लड़की शरारत पर उतारू है।

"बता न।" एलन उसे गुदगुदाता है। लड़की हँसती है और इनकार में सिर हिलाती रहती है।

एलन के सामने अधिक देर तक यह इनकार नहीं चल पाता।

"मैंने पहाड़ियों के गीतों में एक संबोधन सुना है। तुम्हारे लिए वही इस्तेमाल करूँगी। अगले खत में देख लेना।"

एलन नहीं मानता। फिर से गुदगुदाना शुरू कर देता है। आखिर जब हँसते-हँसते आँखों में पानी आ जाता है, लड़की टूट जाती है।

फौजी की छाती में मुँह गड़ाये हुए वह कहती है, "मैं तुम्हें मितवा कहूँगी। हो न तुम मेरे मितवा?" देर तक फौजी उसी अपनी बाँहों में भरे खड़ा रहता है।

दृश्य 9

अगस्त के अंतिम दिन की दोपहर, घर में पिता को दोपहर के भोजन के बाद की तन्द्रा में छोड़कर लड़की भीगती हुई इस घने झुरमुट में आकर बैठ गयी है। बादल अभी-अभी टूट कर बरसे हैं। लड़की जब घर से निकली, बारिश रुकी हुई थी, पिता सो रहे थे पर कभी भी जग सकते थे। बारिश भी कभी भी फिर से शुरू हो सकती थी। हड़बड़ाहट में वह घर से निकली तो छाता लेने की सुध भी नहीं रही। एलन आज रात जा रहा है, लम्बी छुट्टी पर अपने वतन। आम तौर से वे दिन में नहीं मिलते पर आज जोखिम उठाकर भी वह मिलने आयी है।

मसूरी का मौसम - थोड़ी देर पहले जम कर बरसते बादल न जाने कहाँ गायब हो गये थे पर अचानक वे फिर कब कहाँ से आ टपकेंगे इसे कोई नहीं जानता! लड़की जब घर से निकली थी बादल उसके घर में भरे थे। जब बाहर निकली तब भी बादलों के बीच से आयी और थोड़ी ही देर में जब बादल बरसे तब उसे याद आया कि हड़बड़ी और उत्तेजना में वह छाता लेना तो भूल ही गयी थी। लड़की जहाँ बैठकर एलन का इंतजार कर रही थी वह चार-पाँच घने दरख्तों और उन पर लिपटी लताओं से बना था जिसकी खोज एलन ने अपनी छोटी-सी प्रेमयात्रा के दौरान की थी।

शिकार का शौकीन एलन छावनी से निकल भागने की फिराक में रहता था। शाम की रोल-कॉल के बाद अक्सर वह बैरक से गायब हो जाता। वह एक खुशमिजाज खिलन्दड़े सिपाही के रूप में जाना जाता था और उसके दोस्तों की संख्या इतनी बड़ी थी कि रात-बिरात चेकिंग पर वह कभी पकड़ा नहीं गया और अगर पकड़े जाने की नौबत आयी भी तो उसका कोई न कोई दोस्त किसी न किसी तिकड़म से उसे बचा लेता। छुट्टियों में, खास तौर से रविवार को गिरजाघर जाने की जगह वह शिकार की तलाश में लैण्डोर के आसपास भटकता।

ऐसे ही भटकते हुए उसने एक बार लड़की को ढूँढ़ा था और एक दोपहर इस रहस्य लोक तक पहुँचा था जहाँ दिन में भी इतना सन्नाटा और अँधेरा होता कि बगल से पूरी पलटन गुजर जाए और उसमें छिपे दो प्रेमियों को तलाश न पाये।

दो-तीन बार उसके बहुत जोर देने पर लड़की इस अँधेरे एकांत में आयी थी। एक तो दिन में निकलना बहुत मुश्किल था; दूसरे, लड़की उन कीड़े-मकोड़ों से डरती थी जो हर समय किसी वनस्पति से टपकने को तैयार दिखते थे और एलन जिन्हें उसे चिढ़ाने के लिए कभी भी अपनी हथेलियों पर उठाकर उसकी तरफ बढ़ा सकता था। हर बार वह चिहुँकती, एलन खिलखिलाता और जब उसकी हथेली का कीड़ा उड जाता तब लड़की उसकी पीठ और पेट पर मुक्के बरसाती और तब तक बरसाती रहती जब तक एलन उसे अपनी बाँहों में भर नहीं लेता।

आज तो लड़की ने ही दिन में मिलना तय किया था। रात में तो मिलना ही था पर लड़की हर मुमकिन समय उसके साथ बिताना चाहती थी।

बाहर फिर बारिश शुरू हो गयी। अन्दर सघन छतनार आश्रय में लड़की एलन का इंतजार कर रही है। बाहर पानी गिरने की तेज आवाज आ रही है। चारों तरफ वनस्पतियों का इतना मजबूत आवरण है कि न सिर्फ उनसे छन कर आना प्रकाश के लिए मुश्किल है बल्कि बारिश की बूँदें भी ज्यादातर हिस्सों को नहीं भिगो पा रहीं। लड़की भी ऐसे ही एक सूखे हिस्से में एक मोटे दरख्त की जड़ पर बैठी है। बाहर जितनी तेज आसमान की बारिश है उससे तेज उसका मन भीग रहा है। वह सख्ती से मुँह भींचे अपनी रुलाई रोक रही है।

एलन छुट्टियों में घर जा रहा है। आज उसकी रवानगी है। हालाँकि अब वह स्वस्थ हो चुका है और उसे अपनी पलटन वापस जाना है लेकिन अफसरों से अपने सम्बन्ध के कारण उसने उन्हें मना लिया है कि वह विलायत छुट्टी मना कर वापस लैण्डोर आयेगा और फिर यहाँ से पलटन के लिए उसकी रवानगी होगी। कारण एक ही है। पलटन वापस जाने के पहले वह लड़की के साथ थोड़ा और वक्त गुजारना चाहता है। दोनों के साझे सपने हैं। इस बार एलन लड़की के पिता से मिलेगा और उनसे उसका हाथ माँगेगा। लड़की को पता है कि थोड़ी मुश्किल होगी। पिता की निगाह में उसके लिए जो लड़का है उसे भी वह जानती है, पर उसे यह भी पता है कि माँ के मरने के बाद अब कोई जिद ऐसी नहीं है जिसे वह पिता से मनवा न सकेगी।

विलायत से जो तार आया है, उसके मुताबिक एलन की माँ सख्त बीमार हैं। पता नहीं लम्बी समुद्री यात्रा के बाद जब एलन वहाँ पहुँचेगा वह जीवित उसकी प्रतीक्षा कर रही होगी भी या नहीं! वह यह भी जानती है कि एलन अपनी माँ से कितना प्यार करता है। लम्बी रातों में उसकी बाँहों में भिंची उसने घंटों उसे अपनी माँ के बारे में बातें करते सुना है। कई बार चिढ़ कर उसने ऊबने का नाटक भी किया है पर एलन को अच्छा लगेगा यह सोचकर फिर उसे कुरेद-कुरेद कर माँ के बारे में बोलने को प्रोत्साहित किया है और सप्रयास एकाग्रता से उसे सुना है। अचानक माँ की बीमारी के तार ने उनकी योजना गड़बड़ा दी।

एलन के पलटन वापसी के दिन करीब आ रहे थे और वह किसी भी दिन लड़की के पिता के पास जाने की तैयारी कर रहा था। लड़की लगभग रोज उसे अपने पिता के स्वभाव और आदतों के पाठ पढ़ाती और खिलखिलाते हुए उसे वे संवाद रटाती जिसे एलन को उनके सामने दोहराना था और जिसे वह हर बार भूल जाता। शायद जान-बूझकर! माँ की बीमारी का तार मिलने पर लड़की समझ गयी कि अब वह उसे नहीं रोक पायेगी। उसने कोशिश भी नहीं की बावजूद इसके कि विलायत में बीमार माँ के अलावा सिल्विया भी है। आज लड़की के आँसू रुक नहीं रहे हैं। एलन से बिछुड़ने के दर्द के साथ कहीं यह सिल्विया के वहाँ होने का डर तो नहीं है? लड़की जानती है कि सिल्विया का नाम लेने पर एलन हँसता है। कई बार उसे चिढ़ाने के लिए जानबूझ कर सिल्विया का जिक्र करता है। लड़की नहीं चिढ़ती और बनावटी उपेक्षा से कंधे उचकाती है तो फिर-फिर ऐसे प्रसंग ले आता है जिनमें सिल्विया हो और जब लड़की रुआँसी हो जाती है तो उसे बाँहों में भरकर सिर्फ हँसता रहता है।

उसकी हँसी से लड़की भ्रमित हो जाती है। कई बार यह हँसी इतनी निश्छल और निष्पाप लगती है कि उसे खुद पर कोफ्त होने लगती है। पर कई बार एलन उसे जादूगर की तरह लगता है जो उन्मुक्त हँसी से उसे छल-छल जाता है।

कहीं वह एलन को खोने तो नहीं जा रही?

मुलाकातों के शुरुआती दिनों में एक बार उसने कहीं पढ़ा कि यू लव टु लूज ऐंड देन यू अगेन लव ऐंड यू अगेन लूज। पढ़ते ही उसकी आँखें छलछला उठीं थीं। उसी शाम उसने एलन को ये पक्तियाँ सुनायीं। पर वह तो निरा फौजी था। सिर्फ खुलकर हँस सकता है। इस तरह के वाक्यों को अर्थाना उसके बस का नहीं। लड़की ने चिढ़ कर तय किया कि कभी कोई गंभीर चीज उसे पढ़कर नहीं सुनायेगी। तो क्या वह एलन को खोने जा रही है?

"हाँ ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ।"

लड़की नहीं डरती। आज वह डरना भी नहीं चाहती। उसे पता है कि यह एलन है। उसका पुराना तरीका है। अचानक प्रकट होकर हा ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ कह कर लड़की को डराना और फिर अपने वक्ष से चिपटा उसे हौले-हौले आश्वस्त करना।

आज उसे डरने का भी होश नहीं है। पहले भी दो-तीन बार वे उस झुरमुट में मिले हैं पर लड़की कभी भी अन्दर अकेले नहीं घुसी है। अगर कभी उसके पहले पहुँची भी है तो बाहर ही मँडराती रही है। अन्दर साँप, बिच्छू, कीड़ों-मकोड़ों - न जाने किन-किन जानवरों की कल्पना करती रही है। आज तो कब से अकेले अन्दर बैठी है। प्रिय को खोने के भय ने तो कहीं उसे सुन्न नहीं कर दिया है?

एलन खुद उदास है। लड़की नहीं डरती तो वह और उदास हो जाता है। उसका हाथ पकड़कर एक बड़े पेड़ की जड़ों पर अपने बगल में बैठा लेता है।

"छुटकू, मैं आज आते समय सोच रहा था कि इस करोड़ों करोड़ इंसानों वाली दुनिया में क्या यह भी हो सकता था कि हम कभी नहीं मिलते। बिना एक-दूसरे को जाने यहाँ से विदा हो जाते?" लड़की कुछ नहीं बोलती। चुपचाप बायें पैर के अँगूठे से जमीन कुरेदती रहती है।

"मैं जल्दी लौटूँगा।"

"मुझे पता है।"

डबडबायी आँखों से लड़की एलन को देखती है।

"खाक पता है। मैं नहीं लौटूँगा।" एलन को शरारत सूझती है।

"मुझे पता है... "लड़की किसी तरह रुँधे गले से कह पाती है।

"क्या पता है? वहाँ सिल्विया मेरा इंतजार कर रही है - ये पता है तुझे?"

एलन उसे हँसाने की कोशिश करता है।

"मुझे पता है," लड़की दृढ़ता से अपने आँसू रोकने की कोशिश कर रही है, "तुम लौट आओगे।"

एलन खुद उदास हो जाता है। उसका बेफिक्र खिलन्दड़ापन न जाने कहाँ गायब हो जाता है। चुपचाप अपनी बायीं बाँह पर टिके उसके सर को दाहिने हाथ से सहलाता रहता है देर तक... पता नहीं कितनी देर तक।

"मुझे तैयारी करनी है।"

"तैयारी करके क्यों नहीं आये..." लड़की रूठती है।

"पागल... तैयारी क्या इतनी जल्दी हो जाती है। मुझे वर्दी के बहुत-से आइटम स्टोर में जमा कराने हैं। जाने के पहले एडजुटेंट के सामने पेश होना है। रास्ते के लिए अपना सामान बाँधना है और फिर... और फिर... "

एलन वाक्य अधूरा छोड़कर शरारत से मुस्कुराता है। लड़की अचकचाकर उसकी तरफ देखती है।

"जेम्स से भी तो मिलना है।"

लड़की रोना भूलकर उसकी पीठ और पेट पर मुक्के बरसाने लगती है। एलन यही तो चाहता था। वह तब तक मुक्के खाता रहता है जब तक लड़की हँसने नहीं लगती, "मेरी सौतन सिल्विया नहीं, जेम्स है।"

एलन खिलखिलाकर हँसता है। दोनों हँसते हैं। आज वे उस सावधानी को भी भूल जाते हैं जिसके तहत रोज उनके संवाद लगभग फुसफुसाते हुए या बहुत धीमी आवाज में होते हैं।

जेम्स से लड़की शुरू से चिढ़ती है। उसे कभी भी समझ नहीं आया कि जेम्स में ऐसा कौन- सा चुम्बक है कि एलन और दूसरे फौजी उसकी तरफ खिंचे चले जाते हैं। एलन ने जितना कुछ बताया है उसके अनुसार जेम्स यारों का यार है। फौजी उसके साथ बैठकर शराब पीते हैं, जुआ खेलते हैं और हार जाने पर उससे उधार लेते हैं। एलन की उससे कुछ खास ही पटती है। जेम्स के चलते कई बार लड़की से वादा करके एलन नियत समय पर नहीं पहुँचा और कई बार मुलाकात जल्दी खत्म करके भाग गया। हर बार वह झूठ बोलता है और हर बार उसका झूठ पकड़ा जाता है। लड़की रूठने लगती है तो वह अपना कान पकडकर झूठ कबूल करता है और लड़की हर बार उसकी इस बात पर विश्वास कर लेती है कि वह आइंदा जेम्स के चक्कर में नहीं पड़ेगा। आज भी एलन एक बार जेम्स से मिलने जा रहा है। लड़की को गुस्सा आ जाता है। अब पता नहीं कब मुलाकात हो पर उसे पता है कि एलन उसे मना लेगा। काफी मनुहार के बाद लड़की मान जाती है। एलन अभी सीधे छावनी जायेगा, अपना सामान पैक करेगा, एडजुटेंट के सामने पेशी कराकर अपनी रवानगी करायेगा, थोड़ा समय जेम्स के साथ बितायेगा और फिर वापस लड़की के पास आयेगा। सब कुछ भगदड़ में होगा लेकिन दूसरा कोई उपाय भी नहीं है। यहाँ से पूरी रात चलकर सुबह राजपुर रोड पहुँचा जा सकता है। वहाँ दिन भर आराम कर देहरादून के लिए बैलगाड़ी मिल सकती है। लड़की जानती है कि और कोई उपाय नहीं है, कि बातों का धनी एलन छलिया है। उसे मना ही लेता है। लड़की को कुछ नहीं पता कि क्या कहना है। वह जाने के लिए उठ खड़े हुए एलन से चिपट कर सिर्फ रोती रही।


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