निर्धन हों धनवान, परिश्रम उनका धन हो। निर्बल हों बलवान, सत्यमय उनका मन हो।।
हों स्वाधीन गुलाम, हृदय में अपनापन हो। इसी आन पर कर्मवीर तेरा जीवन हो।।
तो, स्वागत सौ बार करूँ आदर से तेरा। आ, कर दे उद्धार, मिटे अंधेर-अँधेरा।।
हिंदी समय में सुभद्रा कुमारी चौहान की रचनाएँ