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कविता

रंग रोगन

मंजूषा मन


दीवाली की सफाई में
इस बार खोला
वर्षों से बंद
मन कमरा...
सोचा इस दफा
इसे ही साफ करूँ
और जुट गई...
झाड़-बुहारकर
साफ कर दी
गमों की धूल,
कोनों-कोनों में झूलते
दर्द के जाले छुड़ा दिए...
सहेज कर बक्से में रखा
चुभती यादों का कबाड़
बाहर फेंक दिया,
मन के एलबम में जड़ी
दर्द देती तस्वीरें
आज सब निकाल फेंकी।
कड़वे बोलो की सब कीलें
उखाड़ दी,
दीवारों पर उधड़ी-पपड़ी से
सब जख्मों पर
भर दी है पुट्टी...
पुरानी यादों के
दर्दीले अतीती रंग पर
रँग दिया
आज का नया रंग...
किया है आज
मन कमरे का
रंग रोगन।।


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