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कविता

तरुण प्रेमी

काज़ी नज़रुल इस्लाम

अनुवाद - सुलोचना


तरुण प्रेमी, प्रणय वेदना
बताओ बताओ बे-दिल प्रिया को
ओ विजयी, निखिल हृदय
करो करो जय मोहन माया से।

नहीं वो एक हिया समान
हजार काबा, हजार मस्जिद
क्या होगा तुम्हारे काबा की खोज से
आश्रय ढूँढ़ो तुम्हारे हृदय की छाँव में।

प्रेम की रोशनी से है जो दिल रोशन
जहाँ हो समान उसके लिए
खुदा की मस्जिद, मूरत मंदिर
ईसाई गिरिजा, यहूदीखाना।

अमर है उसका नाम प्रेम के पन्नों पर
ज्योति से जिसे जाएगा लिखा
दोजख का भय नहीं होता है उसे
नहीं रखता है वह जन्नत की आशा।


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