एक रोज
बहुत-बहुत पूछा था उसने
कि क्रोध क्यों मर जाता है
छूट जाती हैं ऐषणाएँ
ये पूछने का कोश क्यों रिक्त पड़ जाता है
क्यों खो जाया करती हैं पड़तालें
निपट एकांत में चुप लेटा मैं...
पूछती तुम...
समय बीतता रहा तुम्हें सुनते
और तैरते रहे कितने ही सवाल ...यूँ ही
सवालों के खालीपन से अब अकेला बातें करता हूँ ...रोजाना
अतृप्ति की नोंक चाहे चुभा करे गहरे
किंतु बहुत सारे निष्कर्षों के ढेर पर तुम्हारा बैठना
मुनासिब तो नहीं
एक तुम्हारा गुम हो जाना अँधेरों में
उन सारे सवालों का इकट्ठा जवाब है
है ना... ?