hindisamay head


अ+ अ-

कविता

वापस भेज दो

राहुल कुमार ‘देवव्रत’


मेरी जमीन पकने लगी है
इसे थोड़ा पानी दे दो

फसल ...त्योहार ...लोग ...घाव ...दर्द
कि कोई तारतम्य होता तो नहीं
तुम गए तो जाना

ये चीजें भी पक जाती हैं एक-न-एक दिन
और डाल से टूटकर बिखर जाते हैं सारे प्रश्न

सुना है...
आज कुछ लोग मिलने आए हैं ...तुमसे ...तुम्हारे गाँव
अदहन खदकाने
रद्दी सरोसामान की वही गाँठें खोलने-बाँधने ...फिर से

कभी चीमड़, चपाट आदि-आदि
तुम्हारे ही कोश के निरे बोगस
और आखरी पंक्ति में रेंगनेवाले लोग
आजकल छप जाने लगे हैं तुम्हारे अंतरंग पन्नों में

मुझे पता है...
कि पीला पड़ चुका है प्रेम
शायद अब हमारे बीच का संबंध पक चुका है

सुनो !
ये हमारी गुजिश्ता इच्छाओं की लाश है
इसे यूँ बार-बार चिने जाने से रोक दो
कि अब इन रुदालियों को वापस भेज दो


End Text   End Text    End Text