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कविता

गरमी

पंकज चौधरी


भीषण गरमी है
आग के गोले बरस रहे हैं
पत्‍ता तक नहीं हिल रहा
पाताल भी सूख गया होगा

पिछले पच्‍चीस सालों का रिकार्ड भंग हो रहा है...

बड़े-बूढ़ों की गरमी
ऐसे ही निकल रही थी
और दूधमुँहे बच्‍चों की गरमी
घमोरियों में निकल रही थी!


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