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कविता

इस लोकतंत्र में

पंकज चौधरी


क्या सबको रोजी मिल गई?
क्या सबको रोटी मिल गई?
क्या सबकी छत तन गई?
क्या सबके तन ढक गए?
क्या सबके मन भर गए?
क्या सबका मान हो गया?
क्या सबको सम्मान मिल मिल गया?
क्या सबको प्यार मिल गया?
क्या सबके मन से डर भाग गया?
क्या सबको इन्साफ मिल गया?
क्या सबकी बेबसी कम गई?
क्या सबकी बेकसी कम गई?

अगर नहीं
तो कहाँ है आवाज?
कहाँ है आंदोलन?
कहाँ है विरोध?
कहाँ है जुलूस?
कहाँ है धरना?
कहाँ है प्रदर्शन?
कहाँ है हड़ताल?

क्यों है इतना सन्नाटा?
क्यों सबकी बोलती बंद हो गई?


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