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बाल साहित्य

दो दोस्तों की कहानी

संजीव ठाकुर


एक कुत्ता था और एक बिल्ली थी। दोनों अभी छोटे थे। आपस में लड़ते-झगड़ते रहते थे। एक बार क्या हुआ कि कुत्ता नाली में गिर गया। वह निकलने के लिए छटपटा रहा था। कूँ-कूँ कर रहा था। बिल्ली उसे देखकर खुश हो रही थी। वह सोच रही थी, 'आज इसे मजा आया होगा! बहुत परेशान करता था हमें तो!'

कुत्ते की कूँ-कूँ बढ़ती जा रही थी। वह नाली से निकलने को बेचैन हो रहा था, लेकिन निकल नहीं पा रहा था। आखिर बिल्ली को दया आ गई। उसने उसे समझाया, "रुको! मैं तुम्हें निकालने की कोशिश करती हूँ।"

बिल्ली इधर-उधर घूमने लगी। उसे लकड़ी का एक टुकड़ा नजर आया। वह उस टुकड़े को घसीटते हुए नाले के पास ले गई। कुत्ता जहाँ गिरा था, किसी तरह वहाँ तक लकड़ी के टुकड़े को पहुँचा दिया। लकड़ी का सहारा लेकर कुत्ता बाहर निकल आया। बिल्ली ने कहा - "जाओ, कहीं से साफ पानी में नहा आओ। कितने गंदे लग रहे हो?"

कुत्ता नहाकर आया। उसने बिल्ली से दोस्ती कर ली। दोनों दोस्त साथ-साथ रहने लगे, साथ-साथ घूमने लगे, साथ-साथ खेलने लगे। कभी मन होता तो एक साथ चूहे पकड़ते, कभी नदी किनारे जाकर मछलियों का शिकार करते।

बिल्ली तो लोगों के घरों में भी घुस जाती थी, कुत्ते के लिए यह मुश्किल था। बिल्ली घर के अंदर का हाल-चाल कहती, दूध-दही के स्वाद के बारे में सुनाती। कुत्ता दूध-दही खाने को मचल उठता। लेकिन बिल्ली के लिए यह मुश्किल था कि वह किसी के घर से दूध-दही लाकर कुत्ते को चखाती।

एक दिन बिल्ली ने कुत्ते से कहा - "क्या बताऊँ दोस्त? मुझे भी मुश्किल से मिल पाता है दूध-दही। कभी खराब होने पर नाले में फेंक दें तो ठीक, नहीं तो दिक्कत है। अब तो लोग दूध-दही एक बड़े ठंडे डिब्बे में रखने लगे हैं। बिजली से चलता है वह डिब्बा! मुझे तो उसके पास जाने में ही डर लगता है। और कभी उसके पास चली भी जाऊँ तो वह मुझसे खुलता नहीं है।"

कुत्ते ने कहा - "बहुतों के घर में तो वह डिब्बा नहीं भी है।"

बिल्ली बोली - "हाँ, सो तो है। मगर वैसे लोग दरवाजे, खिड़कियाँ बंद रखते हैं। और जिनके दरवाजे, खिड़कियाँ खुली रहती हैं, उनके घर दूध-दही होते ही नहीं!"

"खैर! छोड़ो, एक दिन हम लोग चाय चखेंगे। उसमें भी तो दूध होता ही है?" कुत्ते ने बिल्ली की परेशानी दूर करने के खयाल से कहा।

"मगर चाय कहाँ से लाओगे? घरों में तो वैसे पीते हैं लोग!" बिल्ली ने चिंता जाहिर की।

"बाजार में भी तो मिलती है? एक दिन मैं दुकान से लेकर आऊँगा।" कुत्ते ने आश्वासन दिया।

एक दिन दोनों मित्र बाजार की तरफ गए। दोपहर का समय था। चाय की दुकान पर कोई नहीं था। दुकानदार ऊँघ रहा था। कुत्ता चाय की केतली लेकर भाग पड़ा। बिल्ली पीछे-पीछे चली। एक झाड़ी में छुपकर दोनों ने चाय को पीना चाहा। चाय गर्म थी, दोनों के मुँह जल गए। मजा नहीं आया। बिल्ली ने कहा - "बेकार चीज है ये तो! लोग इसे कैसे पीते हैं?"

"हाँ, तुम ठीक कहती हो।" कुत्ते ने कहा।

बिल्ली बोली - "चलो, हम लोग जलेबी खाएँगे।"

"कैसे लाओगी?"

"मैं ले आऊँगी। तुम चिंता मत करो।"

बिल्ली हलवाई की दुकान के चक्कर लगाने लगी। हलवाई उसे भगा देता - 'कहीं दूध न पी ले?'

एक दिन बिल्ली को मौका मिल ही गया। किसी ग्राहक को जलेबी देते वक्त एक जलेबी बेंच के नीचे गिर गई। बिल्ली हलवाई से आँख बचाकर जलेबी ले भागी। कुत्ते को जलेबी खाने में बहुत मजा आया लेकिन बिल्ली को कुछ खास नहीं लगा। उसने कहा - "मछली में जो स्वाद है दोस्त, वो और कहीं नहीं है।"

कुत्ते ने उसे तसल्ली दी - "चिंता मत करो, मैं तुम्हें खिलाऊँगा मछली।"

"कहाँ से? फिर नदी-किनारे जाना होगा न? ...नदी तो बहुत दूर है।"

"अरे, तुम बुद्धू हो! उधर मछली बेचने वाले बैठते हैं न? मैं वहाँ से एक-दो ले भागूँगा।"

मछली बाजार के एक कोने में कुत्ता जीभ निकालकर लार टपकाता बैठ गया। दुकानदार डंडी मारने में व्यस्त था कि कुत्ता एक मछली पर झपटा। मुँह में मछली लेकर भागा। मछली बेचने वाले ने जब देखा तो उसके पीछे लपका। कुत्ता भागने लगा। दुकानदार ने एक ईंट उठाकर उसके पेट पर दे मारी। फिर भी उसने मछली मुँह से नहीं गिरने दी। वह अपने ठिकाने पर किसी तरह पहुँच ही गया। बिल्ली भी पहुँच गई। दोनों ने मिलकर मछली खाई। कुत्ते के पेट में चोट लगी थी। उसे दर्द हो रहा था। बिल्ली ने उसे समझाया - "कोई बात नहीं। कोई अच्छी चीज पाने के लिए कष्ट तो सहना ही पड़ता है न?"

"हाँ, सो तो है। मगर जमाना कितना खराब आ गया, देखो? एक मछली क्या ले ली, आफत आ गई! वह जो डंडी मारकर ग्राहकों से मछली की चोरी करता है, उसे कोई ईंट से क्यों नहीं मारता?" कुत्ता बोला।

"जमाना सचमुच बहुत बुरा आ गया है। घरों में अब दूध-दही खुले में नहीं रखते।" बिल्ली ने कहा।

"और दो-चार दिन का सड़ा-गला खाना बाहर फेंक देते हैं। हमसे खाया नहीं जाता।" कुत्ते ने जोड़ा।

"छोड़ो, जमाने के बारे में क्या सोचना? सो जाओ अब। कल से हम लोग खेत में चलेंगे। चूहे पकड़ेंगे। चूहे पकड़ने में मजा भी आता है और खाने में स्वाद भी लगता है।"

"हाँ, और नदी किनारे भी जाएँगे। ताजा मछलियाँ कितनी अच्छी लगती हैं?"

भविष्य के कार्यक्रम बनाकर दोनों मित्र सो गए।


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