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कविता

रक्त-सने समय में कवि

फ़िरोज़ ख़ान


कविता आकर पूछेगी कवि से
कैसे तुम इतना खुश रह लेते हो भाई
नेता, मंत्री, पुलिस का अफसर, सेठ-व्यापारी, जेलर चाचा
सबको खुश रख लेते हो कैसे
ये हुनर कहाँ से सीखा तुमने

कविता आकर पूछेगी कवि से
जिन जिस्मों पर फटे-पुराने कपड़े-लत्ते माँगे के हैं
दुख की पपड़ी होंठ पर जिनके जमी हुई है
जिनके घर फुटपाथ हैं और डामर जिनके पैखाने हैं
जो सोते-सोते कार के नीचे मर जाते हैं
जो बनाते हैं सड़कें, गलियाँ, महल-अटारी
चौकीदारी करते हैं जो
दफ्तरों में क्लर्की करते-करते जो मर जाते हैं
वे सब तुम्हारी कविता में हैं लेकिन
कविता आकर पूछेगी कवि से
वे सब तुम्हारी कविता में क्यों हैं
कविता केवल करुणा है क्या
और वह पूछेगी कि
जिनकी वजह से हालात हैं ऐसे
उनसे तुम क्यों कुछ नहीं कहते

कविता ये पूछेगी कवि से
किसकी तरफ है चेहरा तुम्हारा
किसकी तरफ से पीठ घुमाए
सवाल तुम्हारे किन से हैं और
कितने तुमने खतरे उठाए
कविता पूछेगी कवि से
कैसे तुम इतना खुश रह लेते हो भाई


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