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कविता

औरतें - 2

संध्या नवोदिता


औरतों ने अपने तन का
सारा नमक और रक्त
इकट्ठा किया अपनी आँखों में

और हर दुख को दिया
उसमें हिस्सा

हज़ारों सालों में बनाया एक मृत सागर
आँसुओं ने कतरा-कतरा जुड़कर
कुछ नहीं डूबा जिसमें
औरत के सपनों और उम्मीदों
के सिवाय


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