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कविता

स्मृति

लीना मल्होत्रा राव


अचानक
कोई स्मृति ऐसे आती है
चलते हुए
निकट से
राहगीर कोई
अपनी टूटी साईकिल पर
ट्रांसिस्टर बजाता हुआ निकल जाए
जैसे
जिसका कोई सुर
राख की तरह उड़ लिपट जाए आत्मा से
आत्मा को माँजने के लिए
सारी कालिख पुँछ जाती है
नए चमकदार बर्तन की तरह लश्कारे मारती है आत्मा
देह चौंक कर


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