एक देशभक्त भारतीय का पाकिस्तान को लेकर क्या रवैया होना चाहिए? क्या वही जो
मोदी सरकार का है? बात बात पर धमकी ... छोटे मोटे कारण तलाश कर बातचीत तोड़
देना ... सीमा पर तनाव बनाए रखना और अल्पावधि जंग के लिए सेना की तैयारी की
शेखी बघारना या फिर पाकिस्तान को लगातार बातचीत के मेंज पर बैठाकर उससे अपने
मतभेदों का दायरा कम करते जाना है?
मुझे लगता है कि बातचीत खत्म नहीं होनी चाहिए। इसके दो कारण हैं। पहला तो यह
कि इस समय पाकिस्तान एक विकट लड़ाई में उलझा हुआ है जो न सिर्फ उसके अस्तित्व
के लिए जरूरी है बल्कि पूरे दक्षिण एशिया के लिए महत्वपूर्ण है।इस समय
पाकिस्तानी सेना आपरेशन जर्बे अज्ब चला रही है जिसमें उसका मुकाबला उन इस्लामी
कट्टरपंथियों से हो रहा है जिन्हें उसी ने पैदा किया और पाला पोसा था। यह एक
विकट लड़ाई है क्योंकि अभी भी पाकिस्तानी सेना का एक बड़ा तबक़ा इन जिहादियों से
सहानुभूति रखता है और केवल शीर्ष नेतृत्व ही इसमें ईमानदारी से लगा है। इसकी
सफलता या असफलता पाकिस्तान की राजनीति की दिशा तो तय करेगी ही इससे यह भी
निर्धारित होगा कि दक्षिण एशिया खासतौर से भारत कट्टरपंथियों की हरकतों से किस
कदर प्रभावित होगा।
पाकिस्तान से युद्ध से हमें इसलिए भी बचना चाहिए कि अब दोनों देशों के बीच
पारंपरिक युद्ध नहीं होगा। पिछले दिनों जब भी किसी भारतीय नेता ने भड़काऊ बयान
दिया है उसके जवाब में पाकिस्तानी नेतृत्व का एक ही जवाब रहा है कि किसी भी
युद्ध में भारत को अपूरणीय क्षति होगी। यह प्रच्छन्न रूप से बम के इस्तेमाल की
धमकी है।
इस तथ्य के साथ हमें यह भी याद रखना चाहिए कि सात घोषित परमाणु शक्ति संपन्न
राष्ट्रों में सबसे गैर जिम्मेदार पाकिस्तान ही रहा है। केवल वहीं से परमाणु
तकनीक चोरी होकर उत्तरी कोरिया जैसे राष्ट्र तक पहुँची हैं। उसके परमाणु जखीरे
को कट्टरपंथियों से लगातार खतरा है। आज आंतरिक मजबूरियों के चलते फौज इस्लामी
आतंकियों के खिलाफ कार्यवाही जरूर कर रही है पर कब तक यह सक्रियता बनी रहेगी,
कहा नहीं जा सकता। आज भी पाकिस्तानी फौज इन्हें अपनी कश्मीर नीति या
अफगानिस्तान में स्ट्रेटिजिक डेफ्थ के लिए अपने विस्तार के तौर पर देखती है।
इनका प्रभाव भी पाकिस्तानी सेना में उन तत्वों को बल देता है जो भारत से आर
पार की लड़ाई लड़ना चाहते हैं।
1965, 1971 और कारगिल की लड़ाइयों में पाकिस्तान के सामने यह स्पष्ट हो गया है
कि पारंपरिक युद्धों में वह भारत से पार नहीं पा सकता इसलिए उसका सैनिक और
असैनिक नेतृत्व बात बात में बम का जिक्र कर रहा है और जिन्हें जिहादियों के
काम करने का तौर तरीका पता है वे जानते हैं कि वे आत्म हत्या करने की हद तक
दुस्साहसिक हो सकते हैं। इस तर्क का कोई मतलब नहीं है कि बम तो हमारे पास भी
है। उपलब्ध आँकड़ों के अनुसार परमाणु बमों की संख्या या उनके उपयोग करने की
क्षमता के मामले में दोनों देश बराबर हैं। कई अंतरराष्ट्रीय वाच ग्रुप के
अनुसार तो पाकिस्तान की क्षमता भारत से भी ज्यादा है। दोनों के पास सेकेंड
स्ट्राइक क्षमता है। हम अपने से कमजोर और छोटे पाकिस्तान को पूरा तहस नहस कर
सकते हैं पर इस प्रक्रिया में अगर उसने दिल्ली, मुंबई और बंगलूरु जैसे कुछ शहर
बर्बाद कर दिए तो कौन जीता कहा जाएगा?
देशभक्ति इस में नहीं है की हम पाकिस्तान से बातचीत बंद कर अपनी जनता को
युद्धोन्माद के नशे में डुबो दें, देशभक्ति इसमें है कि भारत पाकिस्तान के साथ
लगातार बातचीत करता रहे। पाकिस्तान के साथ बातचीत जारी रखकर हम कट्टरपंथियों
को कमजोर और अलग-थलग कर सकते हैं और इससे वहाँ के समझदार तत्वों को मजबूती
मिलेगी।