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वैचारिकी

फेंस के उस पार

विभूति नारायण राय

अनुक्रम सबीन महमूद के न होने का अर्थ पीछे     आगे

सबीन महमूद के न होने का क्या अर्थ है? इसके पहले हमें यह जानना चाहिए कि सबीन महमूद होने से कराची की जिंदगी पर क्या फर्क पड़ता था? सबीन (40) T2F (द सेकेंड फ्लोर) नामक कैफेटेरिया की संस्थापक डायरेक्टर थी और यह कैफे 2007 में खुलने के बाद से ही कराची की सांस्कृतिक और प्रगतिशील राजनैतिक गतिविधियों का केंद्र बन गया था। शुक्रवार 24 अप्रैल को जब सबीन महमूद का क़त्ल हुआ तब भी वे T2F में बलूचिस्तान के गायब लोगों पर आयोजित एक सेमिनार को खत्म कराकर वापस जा रहीं थीं। उल्लेखनीय है कि इस सेमिनार के लिए कहीं जगह न मिलने पर इसे T2F में आयोजित किया गया था। इसे लाहौर यूनिवर्सिटी ऑफ मैनेजमेंट साइंस में होना था पर कुछ ही दिनों पहले अंतिम समय पर सरकारी आदेशों के तहत रद्द कर दिया गया था। सबीन महमूद को पाँच गोलियाँ मारी गईं और हत्यारों ने तभी उन्हें छोड़ा जब उन्हें यकीन हो गया कि वे पूरी तरह मर चुकी हैं। सवाल उठता है कि कौन थे वे लोग जो सबीन महमूद को मारना चाहते थे और क्यों वे उसे सहन नहीं कर पा रहे थे?

दरअसल सबीन महमूद कराची के लिए खुली हवा के झोके की तरह थीं। वे एक धर्मांध और कट्टर समाज बनाने वाली शक्तियों के सामने विवेक और तर्क की दीवार थीं। यह भी कहा जा सकता है कि इन दिनों कराची में जो कुछ सुंदर घट रहा था उसमें कहीं न कहीं T2F की उपस्थिति जरूर थी। T2F कराची का काफी हाउस था जहाँ बैठकर आप दुनिया के किसी भी विषय पर बेखौफ बतिया सकते थे। यह विषय धर्म, संगीत, नैतिकता, यौनिकता या एथिनिसिटी - कुछ भी हो सकता था। एक पाकिस्तानी अख़बार के मुताबिक पाकिस्तान में उदार और निर्भीक वक्ता होने का मतलब अपने माथे के बीचोबीच निशाने बाजी के लिए एक वृत्त बनाना है। ऐसा नहीं है कि सबीन को चेतावनी नहीं दी गई थी। दूसरे मानवाधिकार कार्यकर्ताओं तथा पत्रकारों की तरह उन्हें भी बलूचिस्तान जैसे संवेदनशील मुद्दों से दूर रहने के लिए कहा गया। सभी को पता है कि बलूचिस्तान में लापता हो रहे लोग किसकी शह पर गायब हो रहें हैं? पाकिस्तानी फौज और उसकी एजेंसियों पर खुले आम लोगों को गायब करने का आरोप लगता रहा है। सबीन का अपराध यह था कि उसने चेतावनी की सरासर उपेक्षा की और बलूचिस्तान वाले सेमिनार में मामा कदीर जैसे जुनूनी बलोच मानवाधिकार कार्यकर्ता को निमंत्रित किया। मामा कदीर का अपना बेटा फरवरी 2009 में गायब हो गया था और उसका क्षत-विक्षत शव सन 2011 में मिला। तब से मामा कदीर के जीवन का एकमात्र उद्देश्य बलूचिस्तान के गायब लोगों के लिए पूरे पाकिस्तान में अभियान चलाना और इसके खिलाफ माहौल बनाना रह गया है।

दरअसल कराची पिछले दो दशकों में कट्टर पंथी संघटनों का मुख्यालय बन गया है और अकसर उदार संस्कृति कर्मी उनका निशाना बनते रहते हैं। सबीन इस पागल पन का सबसे ताजा शिकार है।

कराची में इन दिनों और भी बहुत कुछ घट रहा है जिसका दूरगामी असर आने वाले दिनों में पाकिस्तान के राजनैतिक, आर्थिक और सामाजिक हलकों पर महसूस किया जाएगा। उल्लेखनीय है कि कराची 1960 तक पाकिस्तान की राजधानी रही है और आज भी उसकी आर्थिक राजधानी है। भारत से विभाजन के समय गए उर्दू भाषी मोहाजिरों के समर्थन से कराची की राजनीति में दबदबा रखने वाली अल्ताफ हुसैन की पार्टी एम.क्यू.एम. लगभग वैसी ही राजनीति करती है जैसी मुंबई में शिव सेना की है। उद्योगपतियों और व्यापारियों से हफ्ता वसूली तथा अपने मुखालिफों के खिलाफ हत्या की हद तक हिंसा इसकी राजनीति का अंग है।

सिंध की कोई भी सरकार एम.क्यू.एम. के समर्थन के बिना नहीं चलती। इसके बावजूद हाल में सेना और अर्ध सैनिक बल पाकिस्तान रेंजर्स ने उसके विरुद्ध अभियान सा छेड़ रखा है। एक के बाद कई मामलों में उसकी भद्द पिट चुकी है। सबसे पहले कई वर्षों से फाँसी के फँदे का इंतजार कर रहे सौलत मिर्ज़ा का जेल से एक वीडियो बाहर आया जिसमें स्वीकारोक्ति थी कि कुछ सालों पहले कराची के एक वरिष्ठ अधिकारी की हत्या उसने अल्ताफ हुसैन के आदेश पर की थी। फिर अल्ताफ हुसैन के पैतृक आवास और एम.क्यू.एम. के दफ्तर पर रेंजर्स का छापा पड़ा जहाँ से कई फरार अपराधियों को पकड़ने का दावा किया गया। रेंजर्स की प्रेस कांफ्रेंस में यह भी कहा गया कि वहाँ से बरामद हथियारों में कुछ तो अफगानिस्तान भेजे जाने वाल नाटो के काफिलो से लूटे गए थे। बल्दिया टाउन में 11 सितंबर 2012 में एक कपड़ा फैक्टरी में लगी आग के मामले में भी एक खौफनाक तथ्य सामने आया है। विशेष जाँच दल ने अदालत को बताया है कि यह एक हफ्ता वसूली का मामला था जिसमें फैक्टरी मालिकों द्वारा हफ्ता देने से इनकार करने के बाद अल्ताफ हुसैन के आदेश से वहाँ आग लगाई गई थी जिसमें 257 लोगों की जल कर मौत हो गई।

जाहिर है कि एम.क्यू.एम. के विरुद्ध कार्यवाही प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ की रजामंदी के बिना नहीं चल रही होगी। अभी तो अल्ताफ हुसैन लंदन से अपने समर्थकों के सामने टेलीफोन पर दिए जाने वाले भाषणों में सिर्फ गाली गलौज ही कर रहे हैं पर कब उनके लोग कराची को एक बार फिर टार्गेट किलिंग और लूट पाट की अंधी सुरंग में धकेल देंगे, कहा नहीं जा सकता।


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