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वैचारिकी

फेंस के उस पार

विभूति नारायण राय

अनुक्रम शरीफ से शरीफ तक पीछे     आगे

भारत और पाकिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों के बीच सोमवार 24 अगस्त को दिल्ली में निर्धारित बैठक नहीं हो सकी - इस पर किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए। ऊफा में जहाँ इन दोनों की बैठक तय हुई थी वही यह भी निश्चित हो गया था कि बैठक नहीं होगी। सब कुछ पूर्व निर्धारित था।

नरेंद्र मोदी और उनकी टीम के सदस्य भूल गए थे कि पाकिस्तान में दो शरीफ रहते हैं। प्रधानमंत्री शरीफ़ ऊफा में मौजूद थे लेकिन सेनाध्यक्ष शरीफ़ वहाँ नहीं थे। संयोग से दोनों के नाम मिलते-जुलते हैं पर इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। यदि सेनाध्यक्ष का नाम जहाँगीर करामत या परवेज़ मुशर्रफ होता तब भी यही होता। भारत और पाकिस्तान के बीच कोई भी समझौता वैध नहीं हो होगा अगर उसे पाकिस्तानी फौज की मान्यता नहीं मिलती। और ऊफा में तय किए गए कार्य क्रम के साथ यही हुआ।

ऊफा से लौटकर नवाज़ वापस पाकिस्तान गए तो उनकी बड़ी छीछालेदर हुई। कश्मीर और आतंकवाद को लेकर भारत पाकिस्तान के नैरेटिव अलग हैं। पाकिस्तानी मीडिया ने खुले आम आरोप लगाया कहा कि नवाज ने पाकिस्तानी नैरेटिव गिरवी रख कर भारतीय नैरेटिव को मान्यता दे दी। मसलन दोनों प्रधान मंत्रियों के संयुक्त बयान में कही भी कश्मीर का जिक्र नहीं आया, मुंबई हमले के मुकदमें के शीघ्र निस्तारण और उसके लिए आवश्यक आवाज का नमूना देने की भी बात की गई पर समझौता एक्सप्रेस में हुए बम विस्फोटों से संबंधित मामले का उल्लेख नहीं तक नहीं है। बलूचिस्तान या कराची में रा की गतिविधियों के बारे पाकिस्तानी चिंता को जगह नहीं दी गई।

सेना के जनरलों ने भी मिलकर नवाज़ से अपना विरोध प्रकट कर दिया था।

ऊफा में दोनों नेताओं के मुलाकात की शुरुआत ही गलत हुई। पाकिस्तान में चैनलों पर एक विजुअल बार बार दिखाया गया। नवाज़ मोदी से मिलने आते हैं और एक हाल का लंबा गलियारा पार कर उन तक पहुँचते हैं। गर्वीली मुखमुद्रा और अहंकारी शारीरिक भाषा का प्रदर्शन करते हुए मोदी अपने स्थान पर खड़े हैं और अपने अतिथि का स्वागत करने के लिए एक कदम भी आगे नहीं बढ़ाते। पता नहीं नवाज़ को छोटा साबित करने के लिए यह सलाह मोदी को उनकी टीम के किसी सदस्य ने दी थी या उन्होंने नवाज़ को भी अपने मंत्रिमंडल का एक सदस्य समझ लिया था जिसे बीच-बीच में वे उसकी हैसियत समझाते रहते हैं। कम से कम अंतरराष्ट्रीय राजनय के लिहाज से तो यह अविश्वसनीय था जहाँ अमेरिकी राष्ट्रपति या ब्रिटिश महारानी तुच्छ से तुच्छ अतिथि का भी दो कदम आगे बढ़ कर स्वागत करते हैं।

वापसी पर मिली आलोचना ने नवाज़ की स्थिति और कमजोर कर दी। यह तय हो गया कि वे और उनके सुरक्षा सलाहकार सरताज अज़ीज़ वार्ता के दौरान ऐसा कुछ करेंगे जो अतिवादियों को संतुष्ट कर सके। उफ़ा में दोनों प्रधानमंत्रियों की बातचीत के बाद पाँच सूत्री कार्य योजना के साथ के साथ जो वक्तव्य जारी हुआ था उसका पहला सूत्र ही दोनों देशों के सुरक्षा सलाहकारों के मध्य नई दिल्ली में होने वाली बातचीत थी और इसके लिए सिर्फ एक ही विषय आतंकवाद तय था। मजेदार बात है कि इन पाँच सूत्रों में कश्मीर कही नहीं था फिर पाकिस्तान ने एजेंडे में कश्मीर भी रखने की ज़िद क्यों की? यह ज़िद भी इस हद तक कि भारत के न मानने पर वार्तालाप टूटने की नौबत आ गई।

पाकिस्तानी दैनिक डान के एक कालमिस्ट के अनुसार ऊफा में लिए गए किसी फैसले का कोई अर्थ नहीं है क्योंकि वहाँ 'लड़के' तो थे ही नहीं। 'लड़के' मतलब फ़ौजी और बिना उनको साथ लिए किसी समझौते को लागू नहीं किया जा सकता। यह बात अमेरिका और चीन समझते हैं और इसी लिए उनके अधिकारी इस्लामाबाद के दौरों पर एक चक्कर रावलपिंडी का जरूर लगाते हैं जहाँ सेना मुख्यालय है। पता नहीं दिल्ली के साउथ ब्लाक में बैठे नौकर शाह इसे क्यों नहीं समझते?

मोदी सरकार को पारंपरिक रूप से कमजोर लेकिन परमाणु हथियार संपन्‍न पाकिस्तान की संवेदनशीलता को भी समझना पड़ेगा। हाल में पाकिस्तानी नेताओं और उसके सैनिक असैनिक अधिकारियों ने बात बात पर परमाणु बम का जिक्र करना शुरू कर दिया है। उनके चैनलों पर चल रही बहसों में आप इसे शिद्दत से महसूस कर सकते हैं।

यह एक खतरनाक स्थिति है खासतौर से तब जब हम यह जानते हैं कि सात घोषित परमाणु देशों में सबसे गैर जिम्मेदार पाकिस्तान ही है। सिर्फ वहीं से परमाणु जानकारियों की तस्करी हुई है और केवल वहीं ऐसे घरेलू आतंकी समूह मौजूद हैं जो परमाणु अस्त्रों की चोरी का घोषित इरादा रखते हैं।

यह सोचना मूर्खतापूर्ण है कि यदि वे एक भारतीय शहर पर बम गिराएंगे तो हम उनके सारे शहरों को बरबाद कर देंगे क्योंकि हमारे पास सेकेंड स्ट्राइक क्षमता है। पाकिस्तान भी इसे जानता है। पर उसका बड़बोला और दुस्साहसिक सैनिक नेतृत्व पहले भी आपरेशन जिब्राल्टर और कारगिल जैसी आत्मघाती कार्यवाहियाँ कर चुका है और भविष्य में भी दीवाल तक धकेल दिए जाने पर वह ऐसा कर सकता है। इसलिए जरूरी है की भारत धैर्य के साथ पाकिस्तान को बातचीत में उलझाए रखे।


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