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कविता

गाँठ

प्रतिभा चौहान


पड़ गई गाँठ टूटे प्रेम के धागे में
दर्द के जल्लाद ने
रिश्तों को गाँठ पर लटकाया

अभी तक वह सीख भी नहीं पाई थी
टाई में गाँठ लगाना
कि झूल गई एक लड़की गाँठ पर
काँटों भरी जिंदगी लेकर

खोल दो पुराने दरख्त की गाँठें
लगा दो जूड़े की गाँठ में कोई फूल

पिरोई है सात फेरों की गाँठ
इस वर्षगाँठ पर
और भुला दी तुमने गले और दिल की गाँठें

निरपराध होना
बहुत बड़ा अपराध है प्रेम में
गाँठ बन जाती है अनकहे जज्बातों से
और सरकती है जो नसों की गलियों से पाँव तक

गाँठ बाँध लेते हैं बात बात पर
पत्थर दिल सभी
तब गाँठें दर्द करती हैं शरीर की शाम आते-आते
सबूत के तौर पर उनके एक्सरे में गाँठें गिन सकते हैं आप


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