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कविता

आँसू

प्रतिभा चौहान


मेरा
आँखों से ढलकना
व्यर्थ है
अगर तुम्हारे दिल की गहराई में
कोई आवाज न हो
बदल जाते हैं हर्फ किताबों के भी
दिल में शिद्दत से
जज्बातों का गर तूफान हो
बेकार है सारी दुनिया के रिश्ते
जिनकी तर्ज पर होती हैं सियासत की बातें
जिससे चलते हैं सारी दुनिया के व्यापार
एक धागा काफी है
विश्वास का
पिरोने को प्यार के अल्फाज जितने हैं
कबूतरों के पाँव कभी बांधे नहीं समय ने
उड़ जाते हैं वो परिंदे हैं
जो लौट आए हैं वो अपने हैं


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हिंदी समय में प्रतिभा चौहान की रचनाएँ